पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/१९९

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le रामदीन०-हाँ अगर यह ऐसे समय में सुन्दरी के पास पहुंच गया तो इसका मारा जाना ही बेहतर था मगर इसे कित्ती ऐसी जगह गाडना चाहिए कि पता न लगे। शबू साहब०-इससे तुम बेफिक्र रहो, मै वन्दोवस्त कर लूंगा। बाबू साहब जिस तरह इस किले के अन्दर आए थे वह हम ऊपर लिख आये हैं उसके दुहराने की कोई जरूरत नहीं है, सिर्फ इतना लिख देना बहुत है कि पीठ पर गट्ठर लादे वे उसी तरह किले के बाहर हो गये और मैदान में जाते हुए दिखाई देने लगे। सिर्फ अवकी दफे इनके साथ गोद में लडके को उठाए एक लौड़ी मौजूद थी। पानी का बरसना बिल्कुल बन्द था और आसमान पर तारे छिटके हुए दिखाई देने लगे थे। बाबू साहब न शिवालय की तरफ न जाकर दूसरी ही तरफ का रास्ता लिया मगर जब वह सन्नाटे खेत में निकल गये तो हाथ में गॅडासा लिए दो आदमियों ने इन्हें घेर लिया और डपट कर कहा, 'खबरदार, आगे कदम न बढाइयो !गट्ठर मेरे सामने रख और बता तू कौन है वेशक किसी की लाश लिए जाता है। चावू साहब०-हॉहॉ बेशक इस गट्ठर में लाश है और उस आदमी की लाश है जिसने यहाँ की कुल रिआया को तग कर रक्खा था जहॉ तक मै ख्याल करता हूँ इस राज्य में काई आदमी ऐसा न हागा जो इस कम्बख्त का मरना सुन खुश न होगा। प० आo-मगर तुम कैस समझते हो कि हम भी खुश होंगे? बाबू साहब०-इसलिए कि तुम राजा के तरफदार नहीं मालूम पडते। दू० आo-खैर जो हो, हम यह जानना चाहते है कि यह लाश किसकी है और तुम्हारा नाम क्या है ? बाबू साहब०-(गट्ठर जमीन पर रखकर) यह लाश हरीसिंह की है मगर मैं अपना नाम तब तक नहीं बताने का जय तक तुम्हारा नाम न सुन लूँ। प० आo-बेशक यह सुनकर कि यह लाश हरीसिह की है मुझे भी खुशी हुई और मैं यह कह देना उचित समझता हूँ कि मेरा नाम नाहरसिंह है। मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम हमारे पक्षपाती हो लेकिन अगर न भी हो तो मैं किसी तरह तुमसे डर नहीं सकता। बाबू साहब०-मुझे यह सुन कर बडो खुशी कि आप नाहरसिह है। बहुत दिनों से मैं आपसे मिला चाहता था मगर पता न जानने से लाचार था। अहा. क्या अच्छा होता इस समय बीरसिंह से भी मुलाकात हो जाती । दू० आo-धीरसिंह से मिल कर तुम क्या करत? बाबू साहब०-उस होशियार कर देता कि राजा तुम्हारा दुश्मन है और कुछ हाल उसकी बहिन सुन्दरी का नी बताता जिसका उसे ख्याल भी नहीं है, और यह भी कह देता कितुन्हारी स्त्री तारा यच गई है मगर अभी तक मौत उसके तामने नाच रही है। (नाहरसिंह की तरफ देखकर) आपकी कृपा होगी तो मैं वीरसिंह से मिल सकूगा क्योंकि आज ही आपने उन्हें कैद से छुडाया है। नाहर०-अहा अब मैं समझ गया कि आप का नाम बाबू साहब है नाम तो कुछ दूसरा ही है मगर दो चार आदमी आपका बाबू साहब के नाम से ही पुकारते है, क्यों है न ठीक ! बाबू साहब०-हाँ है तो ऐसा ही! नाहर०-मैं आपका पूरा-पूरा हाल नहीं जानता हॉजानने का उद्योग कर रहा हूँ, अच्छा अब हमको भी साफ-साफ कह देना मुनासिब है कि मेरा नाम नाहरसिंह नहीं है, हम दोनों उनके नौकर है हाँ यह सही है कि वे आज वीरसिंह को छुड़ा के अपने घर ले गए हैं जहाँ आप चाहें तो नाहरसिंह और वीरसिंह से मिल सकते है। बाबू साहबo-मै जलर उनसे मिलूगा । प० आo-और यह आपके साथ लडका कौन है? बाबू साहब०-इसका हाल तुम्हें नाहरसिंह के सामने ही मालूम हो जायेगा। प० आ०-तो क्या आप अभी वहीं चलने के लिए तैयार है। बाबू साहब०-बेशक! प० आo अच्छा तो आप इस गट्ठर को मेरे हवाले कीजिए. मै इसे इसी जगह खपा डालता हूँ, केवल इसका सिर मालिक के पास ले चलूँगा, इस लड़के को गोद में लीजिए और इस लौडी को विदा कीजिए, चलिए सवारी भी तैयार है। वीरेन्द्र वीर १२०१