पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२१५

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JA एक पल के लिए उसके दिल से दूर न हाती थीं। थोडी दर तक वह किसी सोच-विचार में चैटा रहा आचिर उठा और जसरी कामा म छुट्टी पा स्नान-भाजन कर दीवानखाने ने जा रेटा। अपन मुसाहयों को जा पूर येईमान और हरामजाद थे तलब किया और जब व लोग आ गय तो खडगसिह के नाम की एक चिट्ठी लिखी जिसमें यह पूछा कि आपन आज दवार करन के लिए कहा था तो किस समय होगा? इस चिट्ठी का जवाब लान क लिए सरूपसिंह का कहा गया और वह राजा स विदा हायडगसिह की तरफ रवाना बुलाए जायें।" इस समय खडगसिंह अपने डर में बैठ यहाँ के बड-मड रईसों और भन्दारों से बातचीत कर रहे थे जय दयान ने हाजिर होकर अर्ज किया कि राजा का एक नुसाहव तरूपम्हि मिलने के लिए आया है। वडासिंह न उनके हाजिर हान का हुक्म दिया । सरूपसिह हाजिर हुआ ता रईसों और सरदारों को बैठा हुए देख कर कुढ गया मगर लाचार था क्योंकि कुछ कह नहीं सकता था ! राजा की चिट्ठी खडगसिह के हाथ में दी और उन्होंने पढ़ कर यह जवाब लिखा - 'जहां तक मैं समझता हूँ आजदार करना मुनानिय न होगा क्याकि अभी तक इस बात की खबर शहर में नहीं की गइ इससे मैं चाहता हूँ कि दार का दिन कल मुकर्रर किया जाय और आज इस बात की पूरी मुनादी करा दी जाय। दार का समय रात को और स्थान आपका बडा बाग उचित हागा दार में कवल यहां के रईस और सरदार लाग ही -खडगसिह चिट्ठी का जदाद लेकर सतपसिंह राजा के पास हाजिर हुआ और जो कुछ यहाँ दरक्षा या अर्ज करन के बाद खडगसिह की चिट्ठी राजा क हाथ में दी। चिट्ठी पठन के बाद थोड़ी दर राजा चुप रहा और बाला - राजा--अब ता खडगसिंह के हर काम न मद मालूम होता है दकर का दिन कल मुकर्रर किया गया यह ता मेर लिए भी अच्छा है मगर समय रात का और स्थान बाग इसका क्या सर? सलप०--किसी के दिल का हाल क्यांकर मालूम हो ? मगर यह तो साफ जानता हूँ कि उसकी नियत खराब है जलर वह भी अपन लिए काई बन्दारस्त करना चाहता है। राजा०-खेर जा हागा दखा जायेगा मुनादी के लिए हुक्न द दा हम भी अपन का यहादुर लगात हैं। यकायको इन वाले नहीं हो इतना होगा कि बाग में हमारी पोज न जा सकेगी-खैर वाहर ही रहगी। सत्तप०-उसनं दहा एक सिहासन भजन के वान्त भी कहा है। शायद पदगी देन के बाद आप उस पर बेठाय जायेंग। राजा-हाँ उन सब चीज़ा का जान्ना ला बहुत ही जरूरी है क्याकि इस बात का निश्चय कोइ भी नहीं कर सकता कि कल क्या होगा और उनकी तरफ स क्या-क्या राग रचे जायेंग मगर इतना खूब सम्झे रखना कि करनसिंह उन्न शैतानों से नावाकिफ नहीं है और एमा कमजार माला या दुजदिल भी नहीं है कि जिसका जी चाहे यकायकी धारा दे जाय या खन ठॉक कर मुकाबला करक अपना काम निकाल ल !! चौदहवां बयान रात पहर भर जा चुकी है। खडगसिंह अपन मकान में बैठे इस बात पर विचार कर रहे है कि कल दवार में क्या किया जाएगा। यहाँ के दसवीस सर्दारों के अतिरिक्त खड़गतिह के पास नाहरसिह धीरसिह और वायू साहय नी धेठ है। खडग-बस यही राय ठीक है। दर्वार में अगर राजा के आदमियों से हमारे खैरखाह सर्दार लोग गिनती में कम भो रहेंगे ता काई हर्ज नहीं। नाहर०-जिस समय गरज कर मैं अपना नाम पहूंगा राजा की आधी जान उसी समय निकल जायेगी फिर कसूरवार आदमी का हौसला ही कितना बड़ा ? उसकी आधी हिम्मत तो उसी समय जाती रहती है जब उस्फे दाम उस याद दिलाय जाते है। एक सदार--हम लागों न यह भी साच रक्खा है कि या तो अपन का हमशा के लिए उस दुष्ट गजा की तादारीस छुड़ायेंगे या फिर लड़ कर जान ही दे देंगे। नाहर-ईश्वर चाहे ता ऐसी नौबत नहीं आवेगी और सहज ही में सब काम हो जायेगा। राजा की जान लेना यह ता वीरेन्द्र वीर १२१७ 1७७