पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५१

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Gri - आग हा जायेगी और हरनन्दन का मुँह देखना भी पसन्द न करेगी। हरिहर - अगर हरनन्दन ने ऐसा लिख दिया है तो कहना चाहिए कि अब हमारे काम में किसी तरह की अण्डस बांकी न रही। पारस-ठीक है मगर दा बातें बादी ने हमारी इच्छा के विरुद्ध की है। हरिहर -वह क्या? पारस- एक तो उसन सरला के गहने मुझसे ले लिए और काम हो जाने पर दस हजार रुपय नकद देन का भी एकरारनामा लिखवा लिया है। हरिहर-खैर इसके लिए कोई चिन्ता नहीं है जब इतनी दौलत मिलेगी तो दस हजार रुपया कोई बड़ी बात नहीं है पारस - यही तो मैंने भी सोचा। हरिहर - और दूसरी बात कौन सी है? पारस-दूसरी यात उसने हरनन्दन की इच्छानुसार की है, क्योंकि अगर वह बात को कबूल न करती तो हरनन्दन उसकी इच्छानुसार चिट्ठी न लिख देता। इसके अतिरिक्त वह हरनन्दन से भी कुछ रूपया ऐंठना चाहती थी। अस्तु लाचार होकर मुझे वह भी कबूल करना ही पडा । हरिहर -खैर वह बात क्या है सो तो कहो? पारस - हरनन्दन ने बॉदी से कहा था कि मैं तो सरला से शादी न करूँगा, मगर ऐसा जरूर होना चाहिये कि उसकी शादी मेरे किसी दोस्त के साथ हो जिससे मैं कभी-कभी सरला को देख सकूँ। अगर ऐसो तुम्हारे किये हो सके तो मै चिट्ठी लिख देने के लिए भी तैयार हूँ और चिट्ठी के अतिरिक्त काम हो जाने पर बहुत सा रुपया भी दूंगा। इसी से बादी को हरनन्दन की बात कबूल करनी पडी। वादी को क्या उस बुढिया खन्नास को भी रुपये की लालच ने घेर लियो और वह इस बात पर तैयार हो गई कि जिस आदमी के साथ शादी करने के लिए हरनन्दन कहेंगे उसी आदमी के साथ शादी करने पर सरला को राजी करूँगी। हरिहर--(रञ्ज से कुछ मुँह बनाकर) खैर जो चाहा सो करी मगर मै तो समझता हूँ कि अगर तुम कुछ और रुपया देने का एकरार बादी से करते तो शायद यह पचड़ा ही बीच में न आन पड़ता। पारस-नहीं नहीं मेरे दोस्त!यह काम मेरे अख्तियार के बाहर था, रुपये की लालच से नहीं निकल सकता था। मैने बहुत कुछ बाँदी से कहा और चाहा, मगर उसने कबूल ही नहीं किया। सब से भारी जवाब तो उसका यह था कि अगर मैं हरनन्दन की बात कबूल नहीं करती और उसकी इच्छानुसार काम कर देने की कसम नहीं खाती तो वह सरला के नाम की चिट्ठी कदापि नहीं लिखेगा और जब तक हरनन्दन की लिखी हुई चिट्ठी सरला को दिखाई न जायेगी तव तक सरला भी बातों के फेर में न आवेगी। और उसका कहना भी दाजिब ही था, इसीसे लाचार होकर मुझे भी स्वीकार करना ही पड़ा। हरिहर-(लम्बी सॉस लेकर) खैर किसी तरह तुम्हारा काम हो जाय यही बडी बात है। मेरे साथ सरला की शादी हुई तो क्या और न भी हुई तो क्या। पारस-(हरिहर का पजा पकडकर) नहीं नहीं मेर दोस्त तुम्हें इस बात से रज न होना चाहिये मैं तुम्हारे फायदे का भी बन्दोवस्त कर चुका हूँ। सरला के साथ शादी होने पर भी जो कुछ तुम्हें फायदा होता सो अब भी हुए बिना न रहेगा हरिहर - (कुछ चिढकर ) सो कैसे हो सकता है ? पारस- ऐसे हा सकता है-जिस आदमी के साथ सरला की शादी हागी वह रुपये के बारे में तुम्हारे नाम से एक वसीयतनामा लिख देगा * हरिहर - यह बात तो जरा मुश्किल है। मगर मुझे उन रुपयों की कुछ ऐसी परवाह भी नहीं है ! में तो इतना ही चाहता हूँ कि किसी तरह तुम्हारा यह काम हो जाय। पारस-- मुझे विश्वास है कि ऐसा हो जायेगा और अगर न मी हुआ तो मै तुमसे इकरार करता हूँ कि मुझे जो कुछ मिलेगा उसमें आधा तुम्हारा होगा। हरिहर-(कुछ खुश होकर) खैर जो होगा देखा जायेगा। अब यह बताओ कि वह बुढिया यहॉ कच आवेगी और सरला के पास कर जायेगी? पारस - वह बुढ़िया आती ही होगी। य बातें हो ही रही थीं कि बाहर से किसी ने दर्वाजा खटखटाया।मामूली परिचय देन के बाद दर्वाजा खोला गया तो हरनन्दन के एक दोस्त के साथ सुलतानी दाजे के अन्दर पैर रखती हुई दिखाई पड़ी। "

  • यह वात पारसनाथ न अपनी तरफ से झूठ कही।

काजर की कोठडी १२५३ 7