पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५४

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eri खडा देख भय और लज्जा से मुंह फेर लिया और उसी समय उसकी निगाह शिवनन्दनु रामसिह, सूरजसिह और कल्याणसिह पर पड़ी जिन्हें देखते ही ता वह एक दम घवडा गया । अब हम थोडी सी रहस्य की बातों का लिखना उचित समझते है। सुलतानी असल में बॉदी की लौडी न थी। उसे रामसिह ने बॉदी के यहॉ रहकर भेदों का पता लगाने के लिए मुकर्रर किया था और रामसिह की इच्छानुसार सुलतानी ने बडी खूबी के साथ अपना काम पूरा किया। वह हरनन्दन के हाथ की लिखी हुई केवल उसी चिट्ठी को लेकर सरला के पास नहीं गई थी जो बॉदी ने लिखवाई थी बल्कि और भी एक चिट्ठी लालसिह के हाथ की लेकर गई थी जिसमें लालसिह ने सच्चा सच्चा हाल लिखकर सरला को ढाढस दी थी और यह भी लिखा था कि तुम्हारा याप वास्तव में सन्यासी नहीं हुआ बल्कि समयानुसार काम करने के लिए छिपा हुआ है, अस्तु इस समय जो कुछ सुलतानी कहे उसके अनुसार काम करना तुम्हारे लिए अच्छा होगा। यही सवव था कि सरला ने सुलतानी की बात स्वीकार कर ली और जो कुछ उसने मन्त्र पढाया उसी के अनुसार काम किया। शिवनन्दनसिह रामसिह के आधीन था और जो कुछ उसने किया वह सब रामसिह की इच्छानुसार था। दूलह बन कर दुष्टों के घर जाने के समय शिवनन्दन अलग हो गया और दूलह का काम हरनन्दन ने पूरा किया। सेहरा इत्यादि बंधे रहने के सबब किसी तरह का गुमान न हुआ और तब तक राजा साहब की भी मदद आन पहुँची जिसका बन्दोबस्त पहिले ही से सूरजसिह ने कर रखा था । यद्यपि यह सब बातें उपन्यास में गुप्त थीं परन्तु ध्यान देकर पढने वालों को ऊपर के बयानों से अवश्य झलक गया होगा तथापि जिन्होंने न समझा हो,उनके लिए सक्षेप में लिख देना हमने उचित जाना। पारसनाथ धरणीधर और हरिहरसिह इत्यादि जेल में पहुँचाये गये और हरनन्दनसिह सरला तथा अपने मित्रों को लिये लालसिह अपने घर पहुंचे। उस समय उनके घर में जिस तरह खुशी हुई उसका बयान करना व्यर्थ कागज रगना है. मगर बाजार में हर एक की जुबान से यही निकलता था कि अपनी रडी बादी की बदौलत हरनन्दनसिह ने सरला का पता लगा लिया। समाप्त गुप्तगोदना पहिला बयान सध्या हाने में कुछ विलम्ब नहीं है नियमानुसार पूरव तरफ से उमडकर कमश घिर आन वाली अँधियारी ने अस्त होते हुए सूर्य भगवान की किरणों द्वारा आकाश के पश्चिमीय खण्ड में फैली हुई लालिमा पर अपनी स्याह चादर का पर्दा बढाना आरभ कर दिया है। समय पर बलवान होकर विजय-पताका लिये हुए शीघता से बढती हुई अपनी सहायक अँधियारी और उसके डर से अपनी हुकूमत छाड कर भागी जाती हुई शत्रु लालिमा की विकल अवस्था देख दो-एक बलवान तारे मन्द मन्द हॅसते हुए आकाश में दिखाई देने लगें है। जाड के दिनों में कलेजा दहलाने वाली ठढी हवा आज जगली फूलों की महक से सौंधी हुई अठखेलियों के साथ मन्द मन्द चलकर खुशदिलों और नौजवानों की तबीयत में गुदगुदी पैदा कर रही है । वरसात में उमग के साथ बढ कर दानों किनारों पर लगे हुए सायेदार पेड़ों को गिरा कर भी सतोष न पाने वाली पहाडी नदी आज किसी की जुदाई में दुबली भई हुई बडे बडे ढोकों से सर टकराती शिथिलता के कारण डगमगा कर चलती हुई भी प्रेमियों के हृदय का प्रफुल्लित कर रही है। चारा चुगने के लिए सवेरा होने के साथ ही उड कर दूर-दूर की खबर लाने वाली खूबसूरत चिडियाए घिरी आने वाली अँधियारी के डर से लोट कर कोमल-कोमल पत्तों की आड मेंअपने-अपने घोंसलों के बाहर बल्कि चारों तरफ फुदक मुदकर मन भावन शब्दों से चहचहा रही है। ऐसे समय में एक खुशरू खुशदिल खुश-पोशाक और नौजवान मुसाफिर चौकन्ना होकर इधर-उधर देखता और एक पत्ते के भी खडखडाने से चौकता हुआ इस तरह चारो तरफ घूम रहा है जैसे कोई शिकारी कब्जे में आकर निकल गये हुए शिकार की खोज में फिर-फिर कर टोह लगाता हो। जिस जगल में यह नौजवान घूम रहा है, पहाडी-नदी ने बीच में पड. कर उसके दा हिस्से कर दिये हैं। पूरव वाले हिस्से में तो बहुत ही भयानक और घना जगल है मगर पश्चिमी हिस्से वाला वह जगल बहुत धना नहीं है जिसमें हमारा नौजवान घूम रहा है। नौजवान की उम्र लगभग बीस वर्ष के होगी। चेहरा खूबसूरत हाथ-पैर गठील पाशाक अमीराना मगर शिकारियों और सवारों के ढग की सी तलवार कमर से लटकती हुई और नेजा हाथ में लिये हुए था। जिस घोड़े पर वह यहाँ तक आया था वह थोडी ही दूर पर एक पेड के साथ वागडोर के सहारे बँधा हुआ था और उससे थोडे ही फासले पर एक जख्मी हरिण जमीन पर बेदम दिखाई दे रहा था। देयकीनन्दन खत्री समग्र १२५६