पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२७९

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तकलीफे उठा चुके थे। अस्तु, हमने भी ऐसे ऐसे मौकों पर उन्हीं की किताब का सहारा लेना उचित समझा, परन्तु "सैरउलमुताखरीन ऐसे नामी इतिहास को भी आखों से नहीं गिराया। हम ऊपर भी लिख चुके है कि शाहजहा के चार लडके और दो लडकिया थी सबसे बड़े बेटे का नाम दाराशिकोह, दूसरे का शुजा तीसरे का औरगजेब और सबसे छोटे चौथे लड़के का नाम मुरादबख्श था। दोनों लड़कियों में से 'बेगम साहब' और छोटी का नाम रोशनआरा" था। 'दाराशिकोह"वातचीत में बड़ा ही मीठा और हाजिर जवाब था सखी भी पहले सिरे का था, लोगों को उसके हाथ से बहुत कुछ मिला करता था इसलिये लोभी और लालची लोग हरदम उसे घेरे रहा करते थे। साथ ही साथ इसके वह अपने को बडा अक्लमद और मुन्तजिम समझता था। अपनी राय के सामने किसी की राय को पसन्द नहीं करता और उसे इस बात का पूरा विश्वास था कि हम किसी से सलाह लिये बिना हर एक काम का अच्छा बन्दोबस्त और इन्तजाम कर सकते है बल्कि उसका ऐसा कथन था कि 'हमको सलाह देने लायक कोई आदमी ही नहीं है । अगर कोई उसका खैरख्वाह रहता और किसी तरह की सलाह देता भी था तो वह उसे बेइज्जती की निगाह से देख के मुस्करा देता था। इन्हीं सवयों से उसके खैरख्वाह लोग उसके भाइयों की चालाकियों से उसे होशियार न कर सके और यह न बता सके कि तुम्हारे भाई लोग छिप-छिपे क्या रंग बैठा रहे है। वह लोगों को धमकाने में बडा ही तेज था, यहा तक कि बडे-बडे उमरा और दर्बारी लोगों को बुरा-भला कह बैठता और जरा-जरा सी बात में बेइज्जत कर देता था, लेकिन उसका गुस्सा ज्यादे देर के लिये नहीं होता था। 'सुल्तान शुजा की आदतें कुछ-कुछ अपने बड़े भाई से मिलती थीं परन्तु यह उसकी अपेक्षा विशेष बुद्धिमान और अपने विचारों पर दृढ रहता था और बातचीत तथा यदि वैसा ही अच्छा था जैसा कि वादशाह के लड़कों को होना चाहिये। साथ ही इसके अपना काम साधने के लिये लोगों को मिला लेने मे वह बडा ही तेज और धूर्त था और ऐसे कामों के लिये गुप्त रीति से इनाम भी बहुत दिया करता था और बड़े बडे राजाओं, सरदारों और दर्वारियों को दोस्ती और मेल जोल के सहारे अपना पक्षपाती बनाए रहता था। इतना होने पर भी शौकीन और ऐयाश बहुत बड़ा था खूब शराब पीना और जब नाच -मुजरे में बैठना तो तमाम दिन और रात बिता देना उसके लिये कोई बड़ी बात न थी। जो मुसाहब लोग अपनी इज्जत बचाये रहना चाहते थे वे ऐसे मौकों पर उसे रोकने या टोकने की हिम्मत नहीं कर सकते थे। इन्हीं सबबों से उसके (राजकीय ) काम धन्धे प्राय बिगड़े ही रहते थे और रेआया के दिल में भी उसकी मुहब्बत कम रहती थी। 'औरगजेब ' यद्यपि अपने बडे भाइयों की तरह खुशमिजाज और मेल-जोल बढाने वाला आदमी न था मगर वह ऐसे आदमियों को चुनकर छाट निकालने में बड़ा ही होशियार और बुद्धिमान था जो उसका काम ईमानदारी के साथ करते और जी जान से उसके साथी बने रहते। लोगों को इनाम वगैरह तो वह भी बहुत दिया करता मगर मौका मतलक समझ कर । विना मतलय के वह एक कौडी भी किसी को न देता। वह अपने भेदों और विचारों को खूब छिपाये रहता और मक्कारी और दगाबाजी के फन में तो पूरा ओस्ताद था। जब वह अपने बाप के पास या सल्तनत में रहता तो पूरा साधू बना रहता और लोगों के दिल पर यही जमाता कि वह राजपाट और धन-दौलत का तुच्छ समझता है। परन्तु भविष्य के लिये अपनी ताकत बढाने और राज्य पर कब्जा कर लेने की कोशिश भीतर ही भीतर वडी मजबूती के साथ करता था यहा तक कि जब वह दकन (दक्खिन) का सूबेदार बनाया गया था तब भी वह अपने दर्वारियों पर यही प्रकट करता कि यदि मुझे यह दुनिया छोड देने और फकीर बन जाने की आज्ञा मिलती तो बडा ही प्रसन्न होता क्योंकि मुझे सच्चा सुख ईश्वराराधन और एकान्तवास ही में मिलता है। यद्यपि उसका दिन फरेब और साजिशों में गुजरता मगर इस काम को वह ऐसी खूबी के साथ करता कि दबार में उसके भाई दाराशिकोह को छोड के सभों ही ने उसकी चालबाजियों को समझने में धोखा खाया। दाराशिकोह अक्सर अपने मुसाहिबों से कहा करता कि अगर मुझे किसी का डर है तो केवल इस महात्मा, दीनदार और नेमाजी साहब (औरडगजेब ) ही का है। "मुरादयख्श जो शाहजहा का सबसे छोटा लडका था अक्लमन्दी और होशियारी में सब भाइयों से कम था। अच्छी-अच्छी चीजों के खाने और शिकार खेलने का उसे शौक था. हा मुहव्यती और शाहखर्च जरूर था। एकान्त में बैठ- कर सलाह करने, साजिश करने और छिपी चाल चलने को वह तुच्छ समझता था और यही प्रकट करता था कि मैं केवल अपनी ताकत और तलवार पर भरोसा रखता हू और वास्तव में वह दिलेरी और बहादुरी का पुतला था। अगर इसके साथ ही साथ वह बुद्धिमान और चालाक भी होता तो नि सन्देह अपने तीनों भाइयों से बढ जाता और बेखटके हिन्दोस्तान का बादशाह बन बैठता। ऊपर का बयान पढकर पाठक समझ गये होंगे कि चारों भाइयों में औरगजेब बडा ही धूत और चालाक था। जिस जमाने का हम जिक्र कर रहे हैं उसके कुछ वर्ष पहिले बादशाह (शाहजहा) का दिल अपने फसादी लडकों की तरफ से दुखी हो गया था। यद्यपि उसके चारों लडके बड़े होशियार, लायक और बाल बच्चों वाले थे मगर तख्त और सल्तनत की लालच ने उन्हें ऐसा अन्धा कर दिया था कि आपुस में भाई-भाई के नाते को छोड एक दूसरे के दुश्मन हो रहे थे यहा तक कि दर्वार में उनके तरफदारों के अलग-अलग धडे वध गए थे। इन कैफियतों को देख कर बादशाह को अपनी ही जान की फिक्र पड रही थी और वह अपने को एक बड़े सकट में पड़ा हुआ समझता था और बारबार यही गुप्तगोदना १२८१