पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३००

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। जिसमें खजर लिए था मजबूती से पकड ली और एक घूसा उसके मुंह पर दिया। ताकतवर महाराज के हाथ का घूसा खाते ही रामानन्द का सर घूम गया और वह जमीन पर बैठ गया। तेजसिह ने जेब से बेहोशी की दवा निकांनी और जबर्दस्ती रामानन्द को सुघा दी। महा-क्यों इसे बेहोश कर दिया? तेज-महाराज गुस्से में आया हुआ और अपने को फसा जानकर ऐयार न मालूम कैसी-कैसी बेहूदी बातें बकता इसलिये इसे बेहोश कर दिया। कैदखाने में ले जाने के बाद फिर देखा जायेगा। महा-खैर यह भी अच्छा ही किया अब मुझसे ताली ला और तहखाने में ले जाकर इसे दारोगा के सुपुर्द करी । महाराज की बात सुन तेजसिह घबडाये और साचने लगे कि अब बुरी हुई। महाराज से तहखाने की ताली लेकर कहा जाऊ? मैं क्या जानू तहखाना कहा है और दारोगा कौन है । बडी मुश्किल हुई ! अगर जरा भी नास्नूकर करता हू तो उल्टी आते गले पड़ती है। आखिर कुछ सोच-विचार कर तेजसिह ने कहा- तेज महाराज भी साथ चलें तो ठीक है। महा-क्यों? तज-दारोगा साहब इस ऐयार को और मुझे देखकर घबडायेंगे और उन्हें न जाने क्या-क्या शक पैदा हो। यह पाजी अगर होश में आ जायेगा तो जरूर कुछ यात बनावेगा आप रहेंगे तो दारोगा को किसी तरह का शक न होगा। महा-(हसकर अच्छा चलो हम भी चलते हैं। तेज-हा महाराज फिर मुझे पीठ पर यह भारी लाश लादे ताला खोलने और बन्द करने में भी मुश्किल होगी। महाराज ने अपने कलमदान से ताली निकाली और खिदमतगार से एक लालटेन मगवाकर साथले ली। तेजसिह ने रामानन्द की गठरी चाध पीठ पर लादी। तेजसिह को साथ लिए हुए महाराज अपने सोने वाले कमरे में गये और दीवार में जडी हुई एक आलमारी का ताला खोला। तेजसिह ने देखा कि दीवार पोली है और उस जगह से नीचे उतरने का एक रास्ता है। रामानन्द की गठरी लिए हुए महाराज के पीछे-पीछे तेजसिह नीचे उतरे, एक दालान में पहुचने के बाद छोटी सी कोठरी में जाकर दर्वाजा खोला और बहुत बडी बारहदरी में पहुचे। तेजसिंह ने देखा कि बारहदरी के बीचोबीच में छोटी सी गद्दी लगाए एक बूढा बैठा कुछ लिख रहा है जो महाराज को देखते ही उठ खडा हुआ और हाथ जोडकर सामने आया। महा-दारोगा साहब देखिए आज रामानन्द ने दुश्मन के एक ऐयार को फासा है इसे अपनी हिफाजत में रखिये। तेज-(पीठ से गढरी उतार और उसे खोलकर ) लीजिये इसे सम्हालिए अब आप जानिए। दारोगा-(ताज्जुब से ) क्या यह दीवान साहय की सूरत बन कर आया था? तेज-जी हा इसो मुझी को फजूल समझा। महा--( हसकर ) खैर चलो अब दारोगा साहब इसका बन्दोबस्त कर लेंगे। तेज-महाराज यदि आज्ञा हो तो मैं ठहर जाऊ और इस नालायक को होश में लाकर अपने मतलब की बातों का कुछ पता लगाऊ सरकार को भी अटकने के लिए मै कहता परन्तु दर्षार का समय बिल्कुल निकल जाने और दर्यार न करने से रिआया के दिल में तरह-तरह के शक पैदा होंगे और आजकल ऐसा न होना चाहिए। महा-तुम ठीक कहते हो अच्छा में जाता हू, अपनी ताली साथ लिए जाता हूँ और ताला बन्द करता जाता हूँ, तुम दूसरी राह से दारोगा के साथ आना। (दारोगा की तरफ देखकर ) आप मी आइएगा और अपना रोजनामचा लेते आइएगा। तेजसिह को उसी जगह छोड महाराज चले गए। रामानन्द रूपी तेजसिह को लिए दारोगा साहब अपनी गद्दी पर आये और अपनी जगह तेजसिह को बैठाकर आप नीचे बैठे। तेजसिह ने आधे घण्टे तक दारोगा को अपनी बातों में खूब ही उलझाया इसके बाद यह कहते हुए उठे अच्छा अब इस ऐयार को होश में लाकर मालूम करना चाहिए कि यह कौन है और ऐयार के पास आए। अपने जेब में हाथ डाल लखलखे की डिबिया खोजने लगे आखिर बोले ओफ ओह लखलखे की डिपिया तो दीवानखाने में ही भूल आये अब क्या किया जाय ? दारोगा-मेर पास लखलखे की डिविया है हुक्म हो तो लाऊ ? तेज-लाइए मगर आपके लखलखे से यह होश में न आयेगा क्योंकि जो बेहोशी की दवा इसे दी गई वह मैंने नए ढग से बनाई है और उसके लिए लखलखे का नुसखा भी दूसरा है खैर लाइये तो सही शायद काम चल जाय । बहुत अच्छा कहकर दारोगा साहय लखलखा लेने चले गये, इधर निराला पाकर तेजसिह ने दूसरी डिविया जेय से निकाली जिसमें लाल रग की कोई युकनी थी एक चुटकी रामानन्द के नाक में सॉस के साथ चढ़ा दी और निश्चिन्त न्तति भाग ४ २७३