पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०३

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R हाय हाय करो मै महाराज से बातचीत करूगा । थोड़ी देर में महाराज उस तहखाने में उसी राह से आ पहुंचे जिस राह से तेजसिह को साथ लाए थे। महा-(तेजसिह की तरफ दखकर ) रामानन्द तुम दोनों को हम अपने पास आने को लिए हुक्म द गये थे क्यों नहीं आये और इस दारोगा को क्या हुआ जो हाय हाय कर रहा है ? तेज-महाराज इन्हीं के सबब से तो आना नहीं हुआ। यकायक बेचारे के पेट में दर्द पैदा हो गई बहुत सी तीवें करने के बाद अब कुछ आराम हुआ है। महा-( दारोगा के हाल पर अफसोस करने के बाद ) उस ऐयार का कुछ हाल मालूम हुआ? तेज-जी नहीं उसने कुछ भी नहीं बताया खैर क्या हर्ज है दो एक दिन में पता लग ही जायेगा। ऐयार लोग जिद्दी तो होते ही है। थोडी देर बाद महाराज दिग्विजयसिह यहां से चले गये महाराज के जाने के बाद तेजसिह भी तहखाने के बाहर हुए और महाराज के पास गये। दो घण्टे तक हाजिरी देकर शहर में गश्त करने के बहाने से विदा हुए। पहर रात से कुछ ज्यादा गई थी कि तेजसिह फिर महाराज के पास गये और बोले- तेज-मुझे जल्द लौट आते देख महाराज ताज्जुब करते होंगे मगर एक जरूरी खबर देने के लिए आना पड़ा। महा-वह क्या ? तेज-मुझे पता लगा है कि मेरी गिरफ्तारी के लिए कई ऐयार आये हुए हैं महाराज होशियार रहें। अगर रात भर में उनके हाथ से बच गया तो कल जरूर कोई तर्कीय करूगा यदि फस गया तो खैर । महा-तो आज रात भर तुम यहीं क्यों नहीं रहते? तेज-क्या उन लोगो के खौफ से बिना कुछ कार्रवाई किये अपने को छिपाऊँ ? यह नही हो सकता। महा-शाबाश ऐसा ही मुनासिब है खैर जाओ जो होगा देखा जायगा . तेजसिह घर की तरफ लौटे रामानन्द के घर की तरफ नहीं बल्कि अपने लश्कर की तरफ। उन्होंने इस बहाने अपनी जान बचाई और चलते हुए। सवेरे जब दार में रामानन्द न आए महाराज को विश्वास हो गया कि बीरेन्द्रसिंह के ऐयारों ने उन्हें फसा लिया । चौथा बयान अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिह ने सोचा कि अब असली रामानन्द को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिसमें महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेन्दसिह के ऐयार लोग घुसे है या तहखाने का हाल किसी दूसरे को मालूम हो गया है यह तभी हो सकता है जब कोई ताजा मुर्दा हाथ लगे। रोहतासगढ से चलकर तेजसिह अपने लश्कर में पहुंचे और सब हाल वीरेन्द्रसिह से कहने के बाद कई जासूसों को इस काम के लिए रवाना किया कि अगर कहीं कोई ताजा मुर्दा जा सडन गया हो या फूल न गया हो मिले तो उठा लाये और लश्कर के पास ही कहीं रखकर हमें इत्तिला दें। इत्तिफाक से लश्कर से दोतीन कोस की दूरी पर नदी के किनारे एक लावारिस भिखमगा उसी दिन मरा था जिसे जासूस लोग शाम होते-होते उठा लाये और लश्कर से कुछ दूर रख तेजसिह को खवर की। भैरोसिह को साथ लेकर तेजसिह मुर्दे के पास गए और अपनी कार्रवाई करने लगे। तेजसिह ने उस मुर्दे को ठीक रामानन्द की सूरत का बनाया और भैरोसिह की मदद से उठाकर रोहतासगढ़ तहखाने के अन्दर ले गये और तहखाने के दारोगा (ज्योतिषीजी) के सुपुर्द कर और उसके बारे में बहुत सी बातें समझा- बुझा कर असली रामानन्द को अपने लश्कर में उठा लाये । "मुर्दा अक्सर ऐंठ जाया करता है इसलिए गठरी में बध नहीं सकता लाचार दो आदमी-मिलकर उठा ले गये। देवकीनन्दन खत्री समग्र