पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०७

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Geri वजडे पर ले गये । वह छत पर जा बैठी और किनारे की तरफ देखने लगी,जैसे किसी के आने की राह देख रही हो। देशक ऐसा ही था क्योंकि उसी समय हाथ में गठरी लटकार्य एक आदमी आया जिसे देखते ही दो मल्लाह किनारे पर उतर आये एक ने उसके हाथ से गठरी लेकर बजडे की छत पर पहुचा दिया और दूसरे ने उस आदमी को हाथ का हल्का सहारा देकर बजडे पर चढा लिया। वह भी छत पर उस औरत के सामने खड़ा हो गया और तब इशारे से पूछा कि अब क्या हुक्म होता है ? जिससे जवाब में इशारे ही से उस औरत ने गगा के उस पार की तरफ चलने को कहा। उस आदमी ने जो अभी आया था माझियों को पुकार कर कहा कि बजडा उस पार ले चलो, इसके बाद अभी आए हुए आदमी और उस औरत में दो चार बातें इशारे में हुई जिसे हम कुछ नहीं समझे हा इतना मालूम हो गया कि यह औरत गूगी और बहरी है मुह से कुछ नहीं बोल सकती और न कान से कुछ सुन सकती है। बजडा किनारे से खोला गया और पार की तरफ चला चार माझी डाडे लगाने लगे। वह औरत छत से उतरकर नीचे चली गई और मर्द भी अपनी गठरी जो लाया था लेकर छत से नीचे उतर आया बजर्ड में नीचे दो कोठरिया थीं एक में सुन्दर फैश बिछा हुआ था और दूसरी में एक चारपाई विछी और कुछ असवाय पड़ा हुआ था। यह औरत हाथ से कुछ इशारा करके फैश पर बैठ गई और मर्द ने एक पटिया लकडी की और छोटीसी टुकडी खडिये की उसके सामने रख दी और आप बैठ गया और दोनो में बातचीत होने लगी मगर उसी लकड़ी की पटिया पर खडिया से लिखकर। अब दोनों में जोधातचीत हुई हम नीचे लिखते है परन्तु समझ रखें कि कुल बातचीत लिखकर हुई। पहिले उस औरत ने गठरी खोली और देखने लगी कि उसमें क्या है। पीतल का एक कलमदान निकला जिस उस औरत ने खोला । पाच सात चीठिया और पुर्जे निकले जिन्हें पढ कर उसी तरह रख दिया और दूसरी चीजें देखने लगी। दो चार तरह के रूमाल और कुछ पुराने सिक्के देखने बाद टीन का एक बडा सा डिव्या खोला जिसके अन्दर कोई ताज्जुब की चीज थीं। डिब्ब खोलने वाद कुछ कपडा हटाया जो मैठन की तौर पर लगा हुआ था इसके बाद झाक कर उस चीज को देखा जो उस डिब्ये के अन्दर थी। न मालूम उस डिब्बे में क्या चीजे थी कि जिसे देखते ही उस औरत की अवस्था बिल्कुल बदल गई।झाक के देखते ही वह हिचकी और पीछे की तरफ हट गई, पसीने से तर हो गई बदन कापने लगा चेहरे पर हवाई उडने लगी और आखें वन्द हो गई। उस आदमी ने फुर्ती से वेठन का कपडा डाल दिया और उस डिव्ये को उसी तरह बन्द कर उस औरत के सामने से हटा लिया । उसी समय बजडे के बाहर से एक आवाज आई 'नानकजी । नानकप्रसाद उसी आदमी का नाम था जो गठरी लाया था। उसका कद न लम्बा और न बहुत नाटा था बदन मोटा रग गोरा और ऊपर के दात कुछ खुडबुडे से थे। आवाज सुनते ही वह आदमी उठा और बाहर आया मल्लाहों ने डाड लगाना बन्द कर दिया था और तीन सिपाही मुस्तैद दर्वाजे पर खडे थे। नानक-(एक सिपाही से ) क्या है ? सिपाही-(पार की तरफ इशारा करके ) मुझे मालूम होती है कि उस पार बहुत से आदमी खडे है। देखिये कभी- कभी वादल हट जाने से जब चन्द्रमा की रोशनी पड़ती है तो साफ मालूम होता है कि चे लोग भी बहाव की तरफ हटे ही जाते हैं जिधर बजडा जा रहा है। नानक-(गौर से देख कर ) हा ठीक तो है। सिपाही-क्या ठिकाना शायद हमारे दुश्मन ही हो । नानक-कोई ताज्जुब नहीं अच्छा तुम नाव को बहाव की तरफ जाने दो पारमत चलो। इतना कह कर नानकप्रसाद अन्दर गया तय तक औरत के भी हवास ठीक हो गये थे और वह उस टीन के डिब्बे की तरफ जो इस समय बन्द था बड़े गौर से देख रही थी। नानक को देखकर उसने इशारे से पूछा क्या है ? इसके जवाब में नानक ने लकड़ी की पटिया पर खडिया से लिखकर दिखाया कि पार की तरफ बहुत से आदमी दिखाई पड़ते हैं कौन ठिकाना शायद हमारे दुश्मन हों। औरत-(लिखकर ) बजडे को बहाव की तरफ जाने दो सिपाहियों को कहो बन्दूक लेकर तैयार रहें अगर कोई जल में तैर कर यहा आता हुआ दिखाई पडे ता वेशक गोली मार दें। नानक बहुत अच्छा। नानक फिर बाहर आया और सिपाहियों को हुक्म सुनाकर भीतर चला गया। उस औरत ने अपने आचल से एक ताली खोलकर नानक के हाथ में दी और इशारे से कहा कि इस टिन के डिब्बे को हमारे सन्दूक में रख दो। देवीनन्दन खत्री समग्र २८०