पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४४

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पांचवां बयान अब हम फिर रोहतासगढ की तरफ मुड़ते है और वहॉ राजा वीरेदसि के ऊपर जो जो आफतें आई उन्हे लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद जो अभी तक छिपे पड़े है खोलते हैं। हम ऊपर लिय आय है कि रोहतासगढ़ फतह कार के बाद राजा दोर गिः वगैरह उसी किले में जाकर मेहमान हुए वहीं एक छोटी सी कमेटी की गई तथा उसी समय कुअर इन्दजोगसिर का पता लगाने और उन्हें ले आने के लिए शेरसिह और देवीसिह रवा किए गए। जादोनों क चले जाने के बाद यह राय ठहरी किया का हाल पाल और रोहतासगट यतहका समाचार धुनारगह महाराज सुरेदसिह के पास भेजना चाहिए । यद्यपि या राबर उन्हें पहुंच गई होगी तथापि किसी ऐयार को वहा भेजा मुनासिब है और इस काम क लिए भेरोसिह चुन गए। राजा चौर द्रसिह ने अपने हाथ स पिता को पत्र और भैरारोह को तलय करके चुनारगढ़ जाने के लिए कहा। भैरो-में घुगारगढ जाने के लिए तैयार परन्तु वो बातो पीवस जो मे रह जायेगी। वीरेन्द्र-वह क्या? भैरो-एक तो फतह की शुशी का इनाम घेटन के समय में न रहा इसका धीरेन्द्र-यह हवस तो अभी पूरी जायगी दूसरी क्या है? तेज-यह लडका बहुत ही लालपी ! यह नहीं सोचता कि यदि भन र ग ( मर बदल का मेरे पिता ! भैरो-(हाथ जोड कर और तेजसिंह की तरफ दयपर यह उम्मीरता परन्तु इस समय में आपरे भी कुछ इनाम लिया चाहता हूँ। वीरेन्द्र-अवश्य ऐसा हो। चाहिए क्योकि तुम्हार लिए हम और य एक समार। तेज-आप और भी शह दीजिए जिसमें प्रादे और कुछ मिट 50 मरा ऐयारी की साल ले ? भैरो मेरे लिए वही बहुत है। वीरन्द-दा अब सरते मे छुटत हा बटुआ म उन करो। तेज-जध आप ही इसकी मदद पर तालाचार रोकरदापड़ा। राजा पारदस्ति । अपना सार सन्दूक भगाया और उसमें से एक जडाऊ डिव्या जिसके अन्दर न मालूम क्या चीज बो मिसिलसि को दिया। मेरासिह न इशाम पाकर सलाम किया और अपने पिता जसिट की तरफ उन्गी लागर कर एप का आ जिसे । कुरदम अपने पास रखते थे भैरोसिर के हवाले कराहीपक्षा राजा बीर दसिह ने नैरासिर से काम ना तुम पा चुके जाललाको तुम्हारी दूसरा हवस क्या है जो पूरी को भेरो-गेर पाने के बाद आप यहा कEिT) की सैर करेग, अफसामग्री कि इसका आनन्द मुझ कुछ भीन मिलगा। वीरेन्द-खैर इसके लिए भी हम वादा करते है कि यह चुसर TER लोट आआ (पि यहा के तहया की सैर करेंगे मगर जहा तक हो स तुम जल्द लोटा भैरोरिस सलाम करके विदा हुए भगर दो ही चार कदम आगपढ कि तेजसिह ने पुकारा और कहा 'सुनो सुनो बदए में से एक चीज मुझे ले लेन दो क्याकि वह मेरे ही काम को है। भैरो-( वापस लौटकर गदुआ तेजसिह के सामने रखकर }क्स अब भ या बटुमान लूंगा जिसके लोभ से मैने बटुआ लिया जब वही आप निकाल लेग तो इसमें रह ही क्या जायेगा। वीरेन्द-ही जी ले जाओ अब राजसिह उसमें से कोई चीज न निकालने पायेगे जो चीज यह शिकालना चाहते है तुम भी उस चीज को रखने योग्य पात्र हो। भैरोसिह ने खुश हाकर बटु1 उदा लिया और सलाम करने के बाद तेजी के साथ वहाँ से रवाना हो गये। पाठक तो समझ ही गए होंगे कि इस बटुए में कौन सी ऐसी चीज थी खिसक लिए इतनी खिचाखची हुई और शक मिटाने के लिए हम उस भेद को खोल ही देना मुनासिब समझत है। इस बटुए में वे ही तिन्निस्सी फूल थे जो युनारगढ के इलाके में तिलिस्म के अन्दर से रोजातिह के हाथ लगे और जिस किसी प्राचीन वैध ने बड़ी मेहनत से तैयार किया था। अब हम भैरोसिह के चले जाने के बाद तीसरे दिन का हान लियत है। दिग्विजयसिह अपो कमरे में मसहरी पर लेटा लंटा न मालूम क्या क्या सोच रहा आधी रात से ज्यादे जा चुकी है मगर अभी तक उसकी आँधों में नींद नहीं है दाजे के देवकीनन्दन बत्री समग्र ३२०