पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३५७

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€ जाना चाहे वह खुशी से चला जाय। दिग्विजयसिह के मरने से जिसे कष्ट हुआ हो वह यदि हमारे भरोसे पर यहाँ रहेगा तो उसे किसी तरह का दुख न होगा हर एक की मदद की जायगी ओर जो जिस लायक है उसकी खातिर की जायगी। इन सब कामों के बाद राजा वीरेन्द्रसिह ने कुल हाल की चीठी लिख कर अपने पिता के पास रवाना की। दूसरे दिन राजा वीरेन्द्रसिह ने एकान्त में कमला को बुलाया। उस समय उनके पास कुँअर आनन्दसिह तेजसिह भैरासिह तारासिह वगैरह ऐयार लोग ही बैठे थे अर्थात सिवाय आपुस वालों के बाहरी आदमी कोई भी न था। राजा वीरेन्दसिह ने कमला से पूछा कमला तू इतने दिनों तक कहॉरही तेरे ऊपर क्या क्या मुसीबतें आई और तू किशोरी का क्या क्या हाल जानती है सो मैं सुना चाहता हूँ। कमला-(हाथ जोड कर ) जो कुछ मुसीबतें मुझ पर आई और जो कुछ किशोरी का हाल मै जानती हूँ सब अर्ज करती हूँ। अपनी प्यारी किशारी से छूटने के बाद मैं बहुत ही परेशान हुई। अग्निदत्त की लडकी कामिनी ने जय किशोरी का अपने बाप के पजे से छुडाया और खुद भी निकल खडी हुई तो पुन मैं उन लोगों से जा मिली और बहुत दिनों तक गयाजी में रही और वहीं बहुत सी विचित्र वातें हुई। वीरेन्द्र-हॉ गयाजी का बहुत कुछ हाल तुम लोगों के बारे में दवीसिह की जुबानी मुझे मालूम हुआ था और यह भी जाना गया था कि जिन दिनों इन्द्रजीत बीमार था उसके कमरे में जो जो अद्भुत बातें देखने सुनने में आई वह सब कामिनी की ही कार्रवाई थी मगर उनमें से कई यातों का भेद अभी तक मालूम नहीं हुआ। कमला-वह क्या ? वीरेन्द-एक तो यह कि तुम लाग उस कोठरी में किस रास्ते से आती जाती थी दूसरे लडाई किससे हुई थी वह कटा हाथ जो कोठरी में पाया गया था किसका था और बिना सिर की लाश किसकी थी? कमला-वह भेद भी मैं आपसे कहती हूँ। गयाजी में फलगू नदी के किनारे एक मन्दिर श्री राधाकृष्ण जी का है। उसी मन्दिर म स एक रास्ता महल में जाने का है जो उस कोठरी में निकला है जिसका हाल माधवी अग्निदत्त और कामिनी के सिवाय किसी को मालूम नहीं कामिनी की बदौलत मुझे और किशोरी को मालूम हुआ। उसी रास्ते से हम लोग आते जाते थे। वह रास्ता बडा ही विचित्र है उसका हाल मै जुबानी नहीं समझा सकती गयाजी चलने बाद जब मौका मिलेगा तो ले चल कर उसे दिखाऊँगी। हम लोगों का उस मकान में आना जाना नेकनीयती के साथ होता था मगर जब माधवी गयाजी में पहुंची तो बदला लेने की नीयत से एक आदमी और अपनी ऐयारा को साथ ले उसी राह से महल की तरफ रवाना हुई। उसे उस समय तक शायद हम लोगों का हाल मालूम न था। इत्तिफाक से हम तीनों आदमी भी उसी समय सुरग में घुसे आखिर नतीजा यह हुआ कि उस कोठरी में पहुँच कर लडाई हो गई माधवी के साथ का आदमी मारा गया। वह कलाई माधवी की थी और मेरे हाथ से कटी थी। अन्त में उसकी ऐयारा उस आदमी का सर और माधवी को लेकर चली गई हम लोगों ने उस समय रोकना मुनासिब न समझा। वीरेन्द्र-हॉ ठीक है एसा ही हुआ है यह हाल मुझे मालूम था मगर शक मिटाने के लिए तुमसे पूछा था। कमला-(ताज्जुब में आकर ) आपको कैसे मालूम हुआ? वीरेन्द-मुझसे देवीसिह ने कहा था और देवीसिह को उस साधु ने कहा था जो रामशिला पहाडी के सामने फलगू नदी के बीच वाले भयानक टीले पर रहता था। देवीसिह की जुवानी बावाजी ने मुझे एक सन्देशा भी कहला भेजा था मौका मिलने पर मैं जरुर उनके हुक्म की तामील करूंगा। कमला-वह सन्देशा क्या था? वीरेन्द्र-सो इस समय न कहूँगा। हॉ यह तो बता कि कामिनी का और उन डाकुओं का साथ क्योंकर हुआ जो गयाजी की रिवाया को दुख देते थे। कमला-कामिनी का उन डाकुओं से मिलना केवल उन लोगों को धोखा देने के लिए था। वे डाकू सब अग्निदत्त की तरफ से तनख्वाह और लूट के माल में कुछ हिस्सा भी पाते थे। वे लोग कामिनी को पहिचानते थे और उनकी इज्जत करते थे। उस समय उन लोगों को यह नहीं मालूम था कि कामिनी अपन याप से रज होकर घर से निकली है इसलिए उससे डरते थे और जो वह कहती थी करते थे। आखिर कामिनी ने धोखा देकर उन लोगों को मरवा डाला और मेरे ही हाथ स उन डाकुओं की जानें गईं। वे डाकू लोग जहाँ रहते थे आपको मालूम हुआ ही होगा। वीरेन्द्र-हाँ मालूम हुआ है जो कुछ मेरा शक था मिट गया अब उस विषय में विशेष कुछ मालूम करने की कोई जरुरत नहीं है। अब मै यह पूछता हूँ कि इस रोहतासगढ वाले आदमी जब किशोरी को ले भागे तब तेरा और कामिनी का ? + क्या हाल हुआ चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५