पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३५६

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दि ht भूत-एसा नहीं तेज-पहिले तुम्हें कसूर साफ साफ कह देना चाहिए। सकता। भूतनाथ की बातें सुनकर सभी हैरान थे और सोचते थे कि यह विचित्र आदमी है जो जबर्दस्ती अपना कसूर माफ करा रहा है और यह भी नहीं कहता कि उसने क्या किया है। इसमें शक नहीं कि यदि हम लोगों को यहाँ से छुड़ा देगा तो भारी एहसान करेगा मगर इसके बदले में यह केवल इतना ही मांगता है कि इसका कसूर माफ कर दिया जाय तो यह मामला क्या है। आखिर बहुत कुछ सोच कर राजा वीरेन्द्रसिह ने भूतनाथ से कहा “खैर जो हो मैंने तेरा कसूर माफ कर दिया। इतना सुनते ही भूतनाथ हॅसा और बारह नम्बर की कोठरी के पास जाकर उसी ताली से जो उसके पास थी कोठरी का दरवाजा खोला। पाठक महाशय भूले न होंगे, उन्हें याद होगा कि इसी कोठरी में किशोरी को दिग्विजयसिह ने डाल दिया था और इसी कोठरी में से उसे कुन्दन ले भागी थी। कोठरी का दर्वाजा खुलते ही हाथ में नेजा लिए वही राक्षसी दिखाई पड़ी जिसका हाल ऊपर लिख चुके है और जिसके सवय स कमला भैरोसिह रामनारायण और चुन्नीलाल किले के अन्दर पहुँचे थे। इस समय तहखाने में केवल एक चिराग जल रहा था जिसकी कुछ राशनी चारो तरफ फैली हुई थी मगर जब वह राक्षसी कोठरी के शहर निकली से उसके नेजे की चमक से तहखाने में दिन की तरह उजाला । गया। मयानक सूरत के साथ उसके नेजे ने समों को ताज्जुब में डाल दिया। उस औरत ने भूतनाथ से पूछा तुम्हारा काम हो गया? इसके जवाब में भूतनाथ ने कहा-हॉ! उस राक्षसी ने राजा बीरेन्द्रसिह की तरफ देख कर कहा समों को लेकर आप इस कोठरी में आवें और तहखाने के बाहर निकल चलें मैं इसी राह से आप लोगों को तहखाने से बाहर कर देती हूँ। यह बात सभी को मालूम ही थी कि इसी बारह नम्बर की कोठरी में से किशोरी गायब हो गई थी इसलिए सभों को विश्वास था कि इस कोठरी में से कोई रास्ता बाहर निकल जाने के लिए जसर है। सों को हथकडी बेड़ी खोल दी गई इसके बाद सब कोई इस कोठरी में घुसे और राक्षसी की मदद से तहखाने के बाहर हो गये। जाते समय राक्षसी ने उस कोठरी को बन्द कर दिया। याहर होते ही राक्षसी और भूतनाथ राजा वीरेन्द्रसिह वगैरह से बिना कुछ कहे चले गए और जगल में घुस कर देखते ही देखते नजरों से गायब हो गए। उन दोनों के बारे में सभों को शक चना ही रहा। बारहवां बयान दो पहर दिन चढने क पहिल ही फौज लेकर नाहरसिह रोहतासगढ़ पहाडी से ऊपर चढ़ गया।उस समय दुश्मनों ने लाचार हाकर फाटक खाल दिया और लड मिड कर जान दन पर तैयार हा गय। किले की कुल फौज फाटक पर उमड आई और फाटक के बाहर मैदान में घार युद्ध हाने लगा। नाहरसिह की बहादुरी दखने योग्य थी। वह हाथ में तलवार लिए जिस तरफ निकल जाता था सफाई कर दता था। उसकी बहादुरी देखकर उसके मातहत फौज की भी हिन्नत दूनी हो गई और ककडी की तरह दुश्मनों को काटने लगे। उसी समय पाँच सौ बहादुरों को साथ लिए राजा वीरेन्द्रसिह कुँअर आउदसिह और तेजसिह वगैरह भी आ पहुंचे और उस फौज में मिल गये जा नाहरसिह की मातहती में लड़ रही थी। ये गाँच मा आटमी उन्हीं की फोजक थ जा दो दो चार चार करके पहाड के ऊपर चढाये गए थे। तहखाने से बाहर निकला पर राजा वीरेन्द्रसिह से मुलाकात हुई थी और सब एक जगह हा गये थे। जिस समय किल वालों को यह मालूम हुआ कि राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह भी उस फौज में आ मिल उस समय उनकी हिम्मत बिल्कुल जाती रही। धिना दिल का हौसला निकाले ही उन लोगों ने हथियार रख दिए और सुलह का डका वजा दिया। पहाडी क नीच स और फौज भी पहुंच गई और रोहतासगढ म राजा वीरेन्द्रसिह की अमलदारी हा गई। जिस समय राजा वीरेन्दसिह दीयानखाने में पहुंचे वहाँ राजा दिग्विजयसिह की लाश पाई गई। मालूम हुआ कि उसने आत्मघात कर लिया। उसकी हालत पर राजा वीरेन्द्रसिह देर तक अफसोस करते रहे। राजा वीरन्दसिह न कुंअर आनन्दसिह को गद्दी पर बैठाया। सभी ने नजरे दी। उसी समय कमला भी आ पहुंची। उसन किल में पहुंच कर काई एसा काम नहीं किया था जो लिखने लायक हा हाँ गिल्लन के सहित गौहर को जरूर गिरफ्तार कर लिया था। दिग्विजयसिह की रानी अपने पति के साथ सती हुई। रामानन्द की स्त्री-भी अपने पति के साथ जल मरा। शहर में कुमार के नाम की मुगादी करा दी गई और यह कहला दिया गया कि जा रोहतासगढ से निकल देवकीनन्दन खत्री समग्र