पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३७१

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LE उन दसों ने शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया और मुश्क बाध ली। रुहा ने कहा, बस अब आप चुपचाप इन लोगों के साथ सुरग में चले चलिए नहीं तो इसी जगह आपका सिर काट लिया जायगा।" इस समय शिवदत्त रहा और उसके साथियों का हुक्म मानने के सिवाय और कुछ भी न कर सकता था। सुरग में उतरने के बाद लगभग आध कोस के चलना पड़ा इसके बाद सब लोग बाहर निकले और शिवदत्त ने अपने को एक सूनसान मैदान में पाया। यहाँ पर कई साईसों की हिफाजत में बारह घोडे कसे कसाय तैयार थे। एक पर शिवदत्त को सवार कराया गया और नीचे से उसके दोनों पैर बाध दिए गये बाकी पर कहा और वे दसों नकाबपोश सवार हुए और शिवदत्त को लेकर एक तरफ को चलते हुए। कुँअर इन्द्रजीतसिह पर आफत आने से वीरेन्द्रसिह दुखी होकर उनको छुडाने का उद्योग कर ही रहे थे परन्तुबीच में शिवदत्त का आ जाना बडा ही दुखदाई हुआ। ऐसे समय में जब कि यह अपनी फौज से बहुत ही दूर पड़े है सौ दो सौ आदमियों को लेकर शिवदत्त की दो हजार फौज से मुकाबला करना बहुत ही कठिन मालूम पडता था, साथ ही इसके यह सोच कर कि जब तक शिवदत्त यहाँ है कुँअर इन्द्रजीतसिह के छुडाने की कार्रवाई किसी तरह नहीं हो सकती वे और भी • उदास हो रहे थे। यदि उन्हें कुंअर इन्द्रजीतसिह का खयाल न होता तो शिवदत्त का आना उन्हें न गढाता और वे लडने से बाज न आते नगर इस समय राजा बीरेन्द्रसिह बड़े फिक्र में पड़ गये और सोचने लगे कि क्या करना चाहिए। सबसे ज्यादा फिक्र तारासिह को थी क्योंकि वह कुंअर इन्दजीतसिह का मृत शरीर अपनी आँखों से दख चुका था। राजा वीरेन्द्रसिह और उनके साथी लोग तो अपनी फिक्र में लगे हुए थे और खण्डहर के दरवाजे पर तथा दीवारों पर से लड़ने का इन्तजाम कर रहे थे परन्तु तारासिह उस छोटी सी बावली के किनार जो अभी जमीन खोदने से निकली थी बैठा अपने खयाल में ऐसा डुवा था कि उसे दीन दुनिया की खबर न थी। वह नहीं जानता था कि हमारे सगी साथी इस समय क्या कर रहे है 1 आधी रात से ज्यादे जा चुकी थी मगर वह अपने ध्यान में डूबा हुआ बावली के किनारे बैठा है। राजा धीरेन्दसिह ने भी यह सोच कर कि शायद वह इसी वावली के विषय मे कुछ सोच रहा है तारासिह को कुछ न टोका और न कोई काम उसफे सुपुर्द किया। हम ऊपर लिख आये है कि इस बावली में से कुल मिट्टी निकल जाने पर वावली के बीचोबीच में पीतल की मूरत दिखाई पडी। उस मूरत का भाव यह था कि एक हिरन का शेर ने शिकार किया है और हिरन की गर्दन का आधा भाग शेर के मुह में है। मूरत बहुत ही खूबसूरत बनी हुई थी। जिस समय का हाल हम लिख रहे है अर्थात आधी रात गुजर जाने के बाद यकायक उस मूरत में एक प्रकार की चमक पैदा हुई और धीरे धीरे वह चमक यहा तक यदी कि तमाम बावली बल्कि तमाम खण्डहर में उजियाला हो गया जिसे देख सब के सब घबरा गए। वीरेन्द्रसिह तेजसिह और कमला तीनों आदमी फुर्ती के साथ उस जगह पहुचे जहाँ तारासिह बैठा हुआ ताज्जुब में आकर उस मूरत को देख रहा था। घण्टा भर बीतते बीतते मालूम हुआ कि वह मस्त हिल रही है । उसशेर की दोनों आखें ऐसी चमक रही थी कि निगाह नहीं ठहरती थी। मूरत को हिलते देख समों को बड़ा ताज्जुब हुआ और निश्चय हो गया कि अब तिलिस्म की कोई न कोई कार्रवाई हम लोग जस्तर देखेंगे। यकायक मूरत बडे जोर से हिली और तब एक भारी आवाज के साथ जमीन के अन्दर धस गई। खण्डहर में चारों तरफ अन्धेरा हो गया। कायदे की बात है कि आखों के सामने जब थोडी देर तक कोई तेज रोशनी रहे और वह यकायक गायब हो जाय या युझा दी जाय तो ऑखों में मामूली से ज्यादा अधेरा छा जाता है वही हालत इस समय खण्डहर वाला की हुई। थोडी देर तक उन लोगों को कुछ भी नहीं सूझता था। आधी घडी गुजर जाने के बाद वह गड़हा दिखाई देने लगा जिसके अन्दर मूरत धस गई थी। उस गडहे के अन्दर भी एक प्रकार की चमक मालूम होने लगी और देखते देखते हाथ में चमकता हुआ नेजा लिए वही राक्षसी उस गड़हे में से बाहर निकली जिसका जिक्र ऊपर कई दफे किया जा चुका है। हमारे बीरेन्दसिह और उनके ऐयार लोग उस औरत को कई दफे देख चुक थे और वह औरत इनके साथ अहसान भी कर चुकी थी इसलिये उसे यकायक देख कर वे लोग कुछ प्रसन्न हुए और उन्हें विश्वास हो गया कि इस समय यह औरत जरूर हमारी कुछ न कुछ मदद करेगी और थोडा बहुत यहा का हाल भी हम लोगों को जरूर मालूम होगा। उस औरत ने नजे को हिलाया। हिलने के साथ ही बिजली सी चमक उसमें पैदा हुई और तमाम खण्डहर में उजाला हो गया। वह बीरेन्द्रसिह के पास आई और बोली आपको पहर भर की मोहलत दी जाती है। इसके अन्दर इस खण्डहर के हर एक तहखाने में यदि रास्ता मालूम है तो आप घूम सकते हैं। शाहदवाजा जो बन्द हो गया था उसे आपकी खातिर से पहर भर के लिये मैंने खोल दिया। इससे विशेष समय लगाना अनर्थ करना है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ६ ३४७