पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३९३

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8 कमालनी ने अपना वादा पूरा किया और कागजों के सहित तुझे मेरे हाथ फसाया । अब तू मुझे धोखा नहीं दे सकती और न तलाशी लेने की नीयत से मै तुझे कब्जे से छोड ही सकता हूँ। तेरा जमीन से उठना मेरे लिए काल हो जायगा क्योंकि तू हाथ नहीं आवेगी। नागर--(चौंक कर और ताज्जुब से) है तो क्या वह कम्बख्त कमलिनी थी जिसन मुझे धोखा दिया ! अफसास शिकार घर में आकर निकल गया। खैर जो तेरेजी में आवे कर यदि मरे मारने ही में तेरी मलाई हो तो मार मगर मेरी एक बात सुन ली भूत-अच्छा कह क्या कहती है ? थोड़ी दर तक ठहर जाने में मेरा कोई भी हर्ज नहीं। नागर-इसमें ता काई शक नहीं कि अपने कागजात जिसे तरा जीवन चरित्र कहना चाहिए लेन के लिए ही तू मुझे मारना चाहता है। भूत-घेशक ऐसा ही है यदि वह मुट्ठा मेरे हाय का लिखा हुआ न होता तो मुझे उसकी परवाह न होती। नागर-हा ठीक है, परन्तु इसमें भी कोई सन्दह नहीं कि मुझे मार कर तू वे कागजात न पावेगा। खैर जब मैं इस दुनिया से जाती ही हूवा क्या जरूरत है कि तुझे भी वर्षाद करती जाऊ? मै तेरी लिखी चीजें खुशी से तेरे हवाले करती हूँ, मर। दाहिना हाथ छोड मै तुझ यता दू कि मुझे मारने के बाद के कागजात तुझे कहा से मिलेंगे। भूतनाथ इतना डरपोक और कमजार भी न था कि नागर का केवल दाहिना हाथ जिससे हर्ष की किस्म स एक काटा भी न था छाडने से डर जाय दूसर उसने यह भी सोचा कि जब यह स्वय ही कागजात देने को तेयार है तो क्यों न ले लिया जाय कौन टिकाना इसे मारने के बाद कागजात हाथ न लगें। थोडी दर तक कुछ साच विचार कर भूतनाथ ने नागर का दाहिना हाथ छोड दिया जिसके साथ ही उसने फुर्ती से वह हाथ भूतनाथ के गाल पर दया कर फेरा। भूतनाथ को ऐसा मालूम हुआ कि नागर ने एक सुई उसके गाल में चुभो दी मगर वास्तव में एसा न था। नागर की उगली में एक अगूठी थी जिस पर नगीने की जगह स्याह रग का कोई पत्थर जडा हुआ था यही भूतनाथ के गाल में गडा जिससे एक लकीर सी पड़ गई और जरा खून भी दिखाई देने लगा। पर मालूम होता है कि वह नोकीला स्याह पत्थर जो अगूढी में जडा हुआ था किसी प्रकार का जहर हलाहल था जो खून के साथ मिलते ही अपना काम कर गया क्योंकि उसने भूतनाथ को बात करने की मोहलत न दी। वह एक दम चक्कर खा कर जमीन पर गिर पड़ा और नागर उसके कब्ज से छूटकर अलग हो गई। नागर ने घाडे की बागडार जा चारजाम से बंधी हुई थी खोली और उसी से भूतनाथ के हाथ पैर बाधने के याद एक पड के साथ कस दिया इसके बाद उसने अपने ऐयारी के बटुए में से एक शीशी निकाली जिसमें किसी प्रकार का तेल था। उसन थोडा तेल उसमें स भूतनाथ के गाल में उसी जगह जहा लकीर पी हुई थी मला। देखते ही देखत उस जगह एक बड़ा फफोला पड़ गया। नागर ने खजर की नोक से उस फफोले में छेद कर दिया जिससे उसके अन्दर का बिल्कुल पानी निकल गया और भूतनाथ होश में आ गया ! नागर--क्यों वे कम्बख्त अपने किये को सजा पा चुका था कुछ कसर है ? तून देखा मेर पास कैसी अद्भुत चीज है। अगर हाथी भी हा ता इस जहर को बर्दाश्त न कर सके और मर जाय तेरी क्या हकीकत है! भूतनाथ येशक ऐसा ही है और अब मुझे निश्चय हो गया कि मेरी किस्मत में जरा भी सुख भोगना बदा नहीं है। नागर-साथ ही इसके तुझे यह भी मालूम हो गया कि इस जहर को मैं सहज ही में उतार भी सकती हूँ। इसमें सन्देह नहीं कि तू मर चुका था मगर मैने इसलिए तुझे जिला दिया कि अपने लिखे हुए कागजो का हाल दुनिया में फैला हुआ तू स्वयम देख और सुन ले क्योंकि उससे बढ़ कर कोई दु खतरे लिए नहीं है पर यह भी देख ले कि उस कम्बख्त कमलिनी के साथ मैने क्या किया जिसने मुझे धोखे में डाला था। इस समय वह मेरे कब्जे में है क्योंकि कल वह मेरे घर में जरूर आकर टिकेगी । अहा अब मैं समझ गई कि रात वाले अद्भुत मामले की जड भी वही है। जरूर ही इस मुर्दे शेर को रास्ते में तूने ही बैठाया होगा । भूतनाथ-( आखों में आसू भर कर }अबकी दफे मुझे माफ करा जो कुछ हुक्म दो मैं करने को नागर-मै अभी कह चुकी हूँ कि तुझ मारूगी नही फिर इतना क्यों डरता है ? भूतनाथ-नहीं नहीं मैं वैसी जिन्दगी नहीं चाहता जैसी तुम देस हो हो यदि इस बात का वादा करा कि वे कागजात किसी दूसरे को न दोगी तो मैं वे सब काम करने को तैयार हूँ जिनसे पहिले इनकार करता था। नागर-मै ऐसा कर सकती हूँ क्योंकि आखिर तुझे जिन्दा छोईंगी ही और यदि मेरे काम से तू जी न चुरावेगा लो मैं तेरे कागजात भी बड़ी हिफाजत से रक्यूंगी हो खूब याद आया-उस चीठी को तो जरा पढना चाहिए जो उस कम्बख्त कमलिनी न यह कह कर दी थी कि मुलाकात होने पर मनोरमा को दे देना । नैयार हूँ। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग.७