पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४००

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६ हरनाम-मायारानी के पार 1 विहारी-तव ता में न जाऊगा क्योंकि में सुन चुका कि मायारा आजकल अपमिया का साया करती है तुमनी तो कल तीन गदहिया या चुके हो ! मायारानो के सामने drila) सही दरयो मे ई का पीसी ही बया तुम्हे छकाने से क्या होगा मायारानी का छकाऊ ता कुछ मजा मिले मामा राम परन सुसाइ । (रजन गाता है) बड़ी मुश्किल से सुरग यात्म किया और बाग में पाय। उस पुरग का दूसरा रिस बाग में एका पाठरी के अन्दर निकलता था। जिस समय व दोनों काठरी के बाहर हुए तो उस बाला में पचसिम मायागनी का दबार हाता था। इस समय मायाराणी उसी दालान मेथी मगर दार का सामान पहा कुछ नया कपल अपनी बहन और सची सहलियों के साथ बैठी दिल बहला रही थी। भायारानी पर निगाह पड़ते ही उसकी पाशाक ओर गम्भीर भाव ने बिहारीसिंह (तेजसिह)को निश्चय करा दिया कि यहा की मालिक यही है। हरनामसिह और विहारीसिह को दयार मायारानी की एक प्रकार की सुशी हुए और उस वितरफ दरर कर पूछा कहा क्या है? विहारी-रात अंधरी हे पानी सूब बरस रस का फट गई दुश्मन सिर काला धार पररारिया भर के मार पेट फूल गया तीन दिास भूधार फल का सा ! अभी जम get Y पर चर का प. अ. टूटा पवाओं बचा 10 विहारीसिह या चतुका जवाव समायारा घबडाग, सा लगा किया गया मतलकाकात कर गया। आखिर हरनामसिट की तरफ र कर पृछा विकास क्या पार गया मरा रम मे 1 आ विहारी-अहाहा क्या बात है! तुमा भारा पसारा धुरा लगाया जा in ARTयागी राम लिखाया नहीं मिटाया फास लगाया आप चुनाया जादा रन माया समक्ष यिलगी 47 ल्ल 17 भला समझोतो. मायारानी और भी चदाइ बिहारीसिंह का मु- दरसन ली। नाति माया पास गया और धार स चाला इस समय मुझे दुख के साथ कहना पडता है कि चारा विहारासि पागल गया मगर सापागल नहीं है कि हथकडी वेड़ी की जरूरत पड क्योकि किसी को सता चल यक 14 और अपपिरास नहीं है कभी बहुत अच्छी तरह भी बात करता है। मालूम हाना है कि वारदसि hfinitोरमा दकर इस मुशिला दिया। माया-तुम्हारा और इसका साथ पाकर शूटा और या युगात हार गया। हर-पहल इसके लिए कुछ पदारस्त कर दीजिय फिर रावला droilmग कर जहात जल्द हा इनका इलाज कराना चाहिये। विहारी-यह काना फुररकी अच्छी नहीं में समझ गया कि तुमरी गला (लिल्ला पार) दाहाइ रानी साहिया की इस कम्बख्त हरनामसिह न मुझे मार डाला जहर पिला कर मार जाला मानन्दानमती मरने के बाद भूत बन कर आया हूँ तुम्हारी कसम रसाकर कहा अब 4 विटाररासि नाम दूसरा ही टू हाय हाय बडा गजब हुआ। या इश्वर उन लागों सही साझिया जा मल आमियों को पक, कर पिंजरे में बन्द किया करत है। माया-अफसास इस बचारे की वगा दशा ! गई मगर हरतासिया ता लम्हारा ही नाम है कहता है हरनामसिह न जहर पिला दिया । हरनाम-इस समय में इसकी बातों स र सकता क्योकि इस बधार की अवस्था दी दूसरी हा रही है। माया-इसकी फिक्र जल्द करना चाहिय तुम जाआ वैद्यजी को बुला लाओं। हर-बहुत अच्छा। माया-(बिहारी से ) तुम मेरे पास आकर बैठा। कहा तुम्हारा लिजाज फरा? विहारी-( मायारानी के पास बैठकर ) मिजाज ? मिजाज है बहुत र अछा है क्या अच्छा है साधक है। माया-क्या तुम्हें मालूम है कि तुम कौन ? बिहारी-हा मालूम है में महाराजाधिराज श्री बीर दत्तिा हूँ। (कुछ सोच कर } नही वह तो अब युद्ध हो गये में कुअर इन्द्रजीतसिह बनूगा क्योंकि वह बड़े खूबसूरत है औरतें देखने के साथ ही सन पर रीझ जाती है अच्छा अब मैं कुअर इन्द्रजीतसिह हूँ। (सोच कर ) नहीं नहीं नहीं वह तो अभी जडफ है और उन्हें ण्यारी भी नहीं आती और मुझे विना ऐसारी के चैन नही अतएव में तेजसिर बनूगा। बस यहीं वात पक्की रही मुनादी फिरवा दीजिए के लोग मुझे - देवकीनन्दन खत्री समग्र ३८०