पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४०३

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- जान बचाइए मैने उससे पूछा कि तेरे भाई का क्या हुआ? ? उसने जवाब दिया कि उसे एक बुढ़िया बेतरह मार रही है किसी तरह उसके हाथ से छुडाइये ! वह जमींदार बहुत ही मजबूत और मोटा ताजा था। मुझे ताज्जुब मालूम हुआ कि वह कैसी बुढिया है जो एसे ऐसे दो भाइयों से नहीं हारती | आखिर मैं उसके साथ चलने पर राजी हो गया। वह मुझे शिवालय से कुछ दूर एक झाडी में ले गया जहा कई आदमी छिपे हुए बैठे थे। उस जमींदार के इशारे से सभों ने मुझे घेर लिया और एक ने चॉदी की लुटिया मेर सामने रख कर कहा कि यह भग है इसे पी जाओ'। मुझे मालूम हो गया कि यह वास्तव में कोई ऐयार है जिसने मुझे धोखा दिया। मैने भग पीने से इनकार किया और वहाँ से लौटना चाहा मगर उन सभों ने भागने न दिया। थोडीदर तक मैं उन लोगों से लडामगर क्या कर सकता था क्योंकि वे लोग गिनती में पन्द्रह स कम न थे। आखिर में उन लोगों ने पटक कर मुझे मारना शुरू किया और जब मैं बेदम हो गया हो भग या दवा जा कुछ हो मुझे जबर्दस्ती पिला दी बस इसके बाद मुझे कुछ भी खबर नहीं कि क्या हुआ। थोडी देर तक इसी तरह की ताज्जुब की बातें कह कर बिहारीसिह ने मायारानी का दिल बहलाया और इसके बाद कहा मेरी तबीयत खराब हो रही है यदि कुछ देर तक बाग में टहलू तो बेशक जी प्रसन्न हो मगर कमजोरी इतनी बढ गई है कि स्वय उठने और टहलने की हिम्मत नहीं पड़ती। मायारानी ने कहा कोई हर्ज नही हरनामसिह सहारा देकर तुम्हें टहलावेंगे मै समझती हूँ कि बागकी ताजी हवा खाने और फूलों की खूशबू सूधने से तुम्हें बहुत कुछ फायदा पहुंचेगा। आरि मसिह ने बिहारीसिह का हाथ पकड के बाग में अच्छी तरह टहलाया और इस बहाने से तेजसिह ने उस बाग को तथा वहा की इमारतों को अच्छी तरह देख लिया। ये लोग घूम फिर कर मायारानी के पास पहुंचे ही थे कि एक गडी न जो चाबदार थी मायारानी के सामने आ कर और हाथ जोडकर कहा 'याग के फाटक पर एक आदमी आया है और सरकार में हाजिर हुआ चाहता है। बहुत ही बदसूरत और काला कलूटा है परन्तु कहता है कि मै विहारीसिह हूँ मुझ किसी ऐयार ने धोखा दिया और चहरे तथा बदन को ऐमे रग से रग दिया कि अभी तक साफ नहीं होता। माया-यह अनोखी बात सुनो में आई कि ऐयारों का रगा हुआ रग और धोने से न छूटे | कोई कोई सा पक्षका जरूर होता हे मगर उसे भी ऐयार लोग छुडा सकते हैं। (हॅस कर) बिहारीसिह ऐसा बेवकूफ नहीं कि अपने चहरे का रग नछुडा सके। बिहारी-रहिये रहिये मुझेशक पड़ता है कि शायद यह वही आदमी हो जिसन मुझे धोखा दिया गल्कि ऐसा कहना चाहिए कि मेर साथ जबर्दस्ती की। (लौडी की तरफ देख कर ) उसके चेहरे पर जख्म के दाग भी है ? लौडी-जी हॉ पुराने जख्म के कई दाग है। विहारी-मी क पास भी कोई जख्म का दाग है ? लोडी-एक आडा दाग है मालूम होता है कि कमी लाटी की चोट खाई है। विहारी-बस बस यह वही आदमी है देखो जाने न पावे! चडूल को यह खबर ही नहीं कि बिहार्गसिह यहाँ पहुँच गया है। (मायारानी की तरफ देख कर )यहाँ पर्दा करवा कर उसे बुलवाइये मैं भी पर्दे के अन्दर रहूगा देखिए क्या मजा करता हूँ। हा हरनामसिह पर्दे के बाहर रहें देखें पहिचानता है या नहीं। माया-(लौंडी की तरफ देख कर ) पर्दा करने के लिए कही और नियमानुसार आँख में पटटी बाँध कर उसे यज्ञा लिवा आओ। वह यहा की हर एक चीजों का पूरा पूरा पता देता है और जरूर इस बाग के अन्दर आ चुका है। बिहारी-पक्का चोर है ताज्जुब नहीं कि यहा आ चुका हो खैर तुम लोगों को अपना नियम पूरा करना चाहिए। हुक्म पाते ही लौडियों ने पर्दे का इन्तजाम कर दिया और वह लोडी जिसने बिहारीसिह के आने की खबर दी थी इसलिए फाटक की तरफ रवाना हुई कि नियमानुसार ऑख पर पटटी बाधकर बिहारीसिह को बाग के अन्दर ले आवे और मायारानी के सामने हाजिर करे। इस जगह इस याग का कुछ थोडा सा हाल लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह दो सौ विगहे का बाग मजबूत चहारदीवारी के अदर था। इसके चारों तरफ की दीवारें बहुत माटी मजबूत और लगभग पचीस हाथ के ऊवी थी। दीवार के ऊपरी हिस्से म तेज नोक और धार वाले लोहे के काटे और फाल इस ढग से लगे हुए थे कि काबिल एयार भी दीवार लाघ कर बाग के अन्दर जान का साहस नहीं कर सकते थे। काटों के सबब यद्यपि कमन्द लगाने में सुबीता था परन्तु उसके सहार ऊपर चढना विल्कुल ही असम्भव था। इस चहारदीवारी के अन्दर की जमीन जिसे हम वाग कहते हैं चार हिस्सों में बटी हुई थी। पूरब तरफ आलीशान फाटक था जिसके अन्दर जाकर एक बाग जिसे पहिला हिस्सा कहना चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७