पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४०८

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बहुत सा स्पया और अच्छी अच्छी चीजें उत्त दे जाया करता था और इसलिए हम लोग अमीरी ठाठ के साथ अपना दिन दिलाता जिस दुडडी दाई की गाद म मै खेला करता था वह बहुत ही नेक थी और उसकी रहिन एक जमींदार के यहाँ जिसका घर मेरे पडोस में था रहती और उसकी लड़की को खिलाया करती थी। मेरी दाई कभी मुझे लेकर उस जमींदार के घर जा बैठा करती और कभी उसकी धहिन उस लडकी को लेकर जिसके खिलाने पर वह नौकर थी मेरे घर आ बैठा करती इसलिए मरा और उस लड़की का रोज साथ रहता तथा धीरे धीरे हम दोनों में मुहब्बत दिन दिन बढ़ने लगी। उम लड़की का नाम जो मुझसे उम्र में दो वर्ष कम थी राममोली था और मेरा नाम नानक मगर घर वाले मुझे ननकू कह के पुकारा करते। वह लडकी बहुत खूबसूरत थी मगर जन्म की गूगी बहरी थी तथापि हम दोनों की नुहब्बत का यह हाल था कि उसे देखे चिना मुझे और मुझे देखे बिना उसे चैन न पड़ता। गुरु के पास बैठकर पढना मुझे बहुत बुरा मालूम होता और उस लड़की से मिलने के लिए तरह-तरह के बहाने करने पड़ते। 1 धीर धार मरी उम्र दस वर्ष की हुई और मैं अपने पराये का अच्छी तरह समझने लगा। मेरे पिता का नाम रघुबरसिंह पा। बहुत दिनों पर उसका घर आया करना मुझ बहुत बुरा मालूम हुआ और मै अपनी माँ से उसका हाल खाद खोद के पूछा लगा। मालूम हुआ कि वह अपना हाल बहुत छिपाता है यहाँ तक कि मेरी माँ भी उसका पूरा हाल नहीं जानती तरपि यह मालूम हा गया कि मेरा बाप एयार है और किसी राजा के यहाँ नौकर है। यह भी सुना कि वहाँ मेरी एक सातली मा भी रहती है जिसस एक लडका और एक लड़की भी है। मस चाप जय आता तामहीन दा महीन या कभी कभी केवल आठ ही दस दिन रह कर चला जाता और जितने दिन रहता मुझ एयारी सिखान मे विशष ध्यान दता। मुझे भी पाने लिखने से ज्यादा खुशी ऐयारी सीखने में होती क्योंकि रामनाला स मिलन तथा अपना मतलब निकालन के लिए ऐयारी बड़ा काम देती थी। धीरे धीरे लउकपन का जमाना पहुत कुछ निकल गया और व दिन आ गये कि जब लड़कपन नौजवानी के साथ ऊधम मचाने लगा और मैं अपने को नातावान और ऐयार समझने लगा। एक रात में अपन घर में नीच के खण्ड में कमरे के अन्दर चारपाई पर लेटा हुआ रामभोली के बारे में तरह तरह की दात साथ रहा था। इरक के चपेट में नींद हराम हो गई थी दीवार के साथ लटकती हुई तस्वीरों की तरफ टकटकी वाध कर दख रहा था यकायक ऊपर की छत पर घमघमाहट की आवाज आने लगी। में यह सोच कर निश्चिन्त हो रहा कि शायद काई लौडी जरूरी काम के लिए उठी होगी उसी के पैरों की घमघमाहट मालूम होती है मगर थोडी देर बाद ऐसा मालूम हुआ कि सीदियों की राह कोई आदमी नीचे उतरा चला आता है। पैर की आवाज भारी थीं जिससे साफ मालूम हुआ कि यह काई मर्द है। मुझ ताज्जुब मालूम हुआ कि इस समय मर्द इस मकान में कहाँ से आया क्योंकि मेरा बाप घर म 1 था उस नोकरी पर गय हुए दो महीने से ज्यादा हो चुके थे। भै आहट लन और कमर से बाहर निकल कर दखने की नियत से उठ बैठा। चारपाई की चरमराहट और मेरे उठने की आहट पाकर यह आदमी फुर्ती से उतर कर चौक में पहुंचा और जब तक में कमरे के बाहर हो कर उसे देयूतब तक वह सपर दवाजा खाल कर मकान के बाहर निकल गया। मैं हाथ में खजर लिए हुए मकान के बाहर निकला और उस पाभी को जात हुए देखा। उस समय मेरे नौकर और सिपाही जो दर्वाजे पर रहा कर बिल्कुल गाफिल मा रहे थे भगर में उन्ह सचत करके उस आदमी के पीछे रवाना हुआ। में ही कह सकता कि उस आदमी को जो स्याह कपडा ओढे मेरे घर से निकला था यह खबर थी या नहीं कि मैं उसका पीछ पीछ आ रहा हूँ क्योंकि वह बडी बेफिक्री स कदम बढ़ाता हुआ मैदान की तरफ जा रहा था। याडी दूर जान याद मुझ यह भी मालूम हुआ कि यह आदमी अपनी पीठ पर एक गठरी लादे हुए है जो एक स्याह कपड क अन्दर है। अब मुझ विश्वास हो गया कि यह चोर है और इसने जरूर मेरे यहाँ चोरी की है। जी में तो आया कि गुल मचाऊ जिसमें बहुत से आदमी इकटठ होकर उसे गिरफ्तार कर लें मगर कई याते साच कर चुप ही रहा और उसके पाछपीछ जाना हा उचित समझा। चष्ट भर तक घरावर में उस आदमी के पीछे पीछे चला गया यहाँ तक कि वह शहर के बाहर मैदान में एक ऐसी ufगह जा पहुंचा जहाँ इमली के बडे बडे पेड इतने ज्यादे लगे हुए थे कि उनके समय से मामूली स विशेष अधकार हो रहा था। भाव में उन घरे पेड़ों के बीच पहुंचा तो मालूम हुआ कि यहाँ लगभग दस बारह आदमियों को और भी हैं जो एक देवकीनन्दन खत्री समग्र