पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४०९

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ley समाधि के बगल में बैठे धीरे धीरे बातें कर रहे थे। वह आदमी उसी जगह पहुंचा और उन लोगों में से दो ने बढ कर पूछा कहा अबकी दफे किसे लाए? इसके जवाब में उस आदमी ने कहा नानक की मां को। आप ख्याल कर सकत है कि इस शब्द को सुन कर मेरे दिल पर कैसी चोट लगी होगी। अब तक तो मै यही समझ रहा था कि वह चार मेरे यहाँ से माल असबाब चुरा कर लाया है जिसकी मुझे विशष परवाह न थी और मैं उसका पूरा पूरा हाल जानने की नीयत से चुपचाप उसके पीछ पीछे चला गया था मगर जब यह मालूम हुआ कि वह कम्बख्त मेरी माँ को चुरा लाया है तो मुझ वडा ही रज हुआ और मैं इस बात पर अफसोस करने लगा कि उसे यहाँ तक आने का मौका क्यों दिया क्योंकि अब इस समय यहाँ मेरे किये कुछ भी नहीं हो सकता था। चारों तरफ ऐसा सन्नाटा था कि अगर गला फाड कर चिल्लाता ता भी मेरी आवाज किसी के कान तक न पहुँचती इसके अतिरिक्त वे लोग गिनती में भी ज्यादे थे किसी तरह उनका मुकाबला नहीं कर सकता था लाचार उस समय बड़ी मुश्किल से मैंने अपने दिल को सम्हाला और चुपचाप एक पड़ की आड में खडे रह कर उन लोगों की कार्रवाई दखने और यह सोचने लगा कि क्या करना चाहिए। वह समाधि जा आँधी हाडी की तरह थी बहुत बडी तथा मजबूत बनी हुई थी और मुझे उसी समय यह भी मालूम हो गया कि उसके अन्दर जाने के लिए कोई रास्ता भी है क्योंकि मरे देखते देखते वे सब के सब उस समाधि के अन्दर घुस गए और जब तक मैं रहा बाहर न निकले। घण्टे मर तक राह देख कर मैं उस समाधि के पास गया और उसके चारों तरफ घूम घूम कर अच्छी तरह देखने लगा मगर कोई दर्वाजा या छेद ऐसा न दिखाई दिया जिस राह से कोई उसके अन्द जा सकता और न मैने उस जगह कोई दर्वाजे का निशान ही पाया। मैं उस समाधि को अच्छी तरह जानता था उसके बारे में कमी कोई बुरा ख्याल किसी के दिल में न हुआ होगा। देहाती लोग वहाँ तरह तरह की मन्नतें मानते और प्राय पूजा करने के लिए आया करते थे परन्तु मुझे आज मालूम हुआ कि वह वास्तव में समाधि नहीं बल्कि खूनियों का अडडा है। मैन बहुत सिर पीटा मगर कुछ काम न निकला लाचार यह सोच कर घर की तरफ लौटा कि पहिले लोगों को इस मामल को खवर कालें और इसके बाद आदमियों को साथ ला कर इस समाधि को खुदवा अपनी माँ और बदमाशों का पता लगाऊँ। रात बहुत थोडी रह गई थी जब मैं घर पहुंचा। मैं चाहता था कि अपनी परेशानी का हाल नौकरों से कहूँ मगर वहाँ ता मामला ही दूसरा था। वह बूढी दाई जिसने मुझे गोद में खिलाया था और अब बहुत ही यूढी और कमजोर हो रही थी इस समय दर्याज पर बैठी नौकरों पर खफा हो रही थी और कह रही थी कि आधी रात के समय तुमने लडके को अकेले क्यो जान दिया? तुम लोगों में से कोई आदमी उसके साथ क्यों न गया? इतने ही में मुझे देख नौकरों ने कहा लो ननकू वायू आ गये खफा क्यों हाती हो। मैन पास जाकर कहा क्या है जो हल्ला मचा रही हो? दाई-है क्या चुपचाप न जाने कहाँ चले गये न किसी से कुछ कहा न सुना तुम्हारी मॉ बेचारी रो रो कर जान दे रही है एसा जाना किस काम का कि एक आदमी भी साथ न ले गए जा के अपनी मां का हाल तो देखो ! मैं-मॉ कहा है। दाई-घर में और कहाँ है तुम जाओ तो सही । दाई की बात सुनकर मै बडी हैरानी में पड़ गया। वहाँ उस चोर ऐयार की जुबानी जो कुछ सुना था उससे तो साफ मालूम हुआ था कि वह मेरी माँ को गिरफ्तार करके ले गया है मगर घर पहुंच कर सुनता हूँ कि मॉ यहाँ मौजूद है खैर मैने अपने दिल का हाल किसी से न कहा और चुपचाप मकान के अन्दर उस कमरे में पहुंचा जिसमें मेरी मां रहती थी। देखा कि वह चारपाई पर पडी रो रही है उसका सिर फटा हुआ है और उसमें से खून बह रहा हैएक लौडी हाथ में कपडा लिए खून पोंछ रही है। मैने घबडा कर पूछा यह क्या हाल है । सिर कैसे फट गया ? माँ-मैने जय सुना कि तुम घर में नहीं हो ता तुम्हें दूढने के लिए घबरा कर नीचे उतरी अकस्मात सीढ़ी पर गिर पडी । तुम कहाँ गये थे? मै-हाँ घर में से एक चोर को कुछ असयाय लेकर बाहर जाते दख मै उसके पीछे पीछे चला गया था। मों-( कुछ घबडा कर ) क्या यहाँ से किसी चोर को बाहर जाते देखा था? मैं-हाँ कहा तो कि उसी के पीछ पीछे मै गया था। मों-तुम उसके पीछे पीछे कहाँ तक गए? क्या उसका घर देख आए? में नहीं थोडी दूर जाने के बाद गलियों में घूम फिर कर न मालूम वह कहाँ गायब हो गया मैने बहुत दूढ़ा मगर पता न लगा आखिर लाचार होकर लौट आया। (लौडी की तरफ देख कर) कुछ मालूम हुआ घर में से क्या चीज चोरी गई? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ७