पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४१२

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मैं-यदि उस पुस्तक में उस भारी तिलिस्म के भेद लिखे हुए थे तो राजा वीरेन्द्रसिह ने उस तिलिस्म को क्यों छोड दिया। बाप केवल उस किताब की सहायता से यह तिलिस्म टूट नहीं सकता हॉजिसके पास वह पुस्तक हो उसे तिलिस्म का कुछ हाल जरूर मालूम हो सकता है और यदि वह चाहे तो तिलिस्म में जाकर वहाँ की सैर भी कर सकता है। इस कमबख्त औरत ने यही कहा कि मुझे तिलिस्म की सैर करा दो। उसी जिद्द ने मुझसे यह अपराध कराया लाचार मैने वह किताब चुराई। मैने सोच लिया था कि इसकी इच्छा पूरी करने के बाद मै वह पुस्तक जहाँ की तहों रख आऊँगा मगर जब यह औरत कोई दूसरी ही है तो बेशक मुझे धोखा दिया गया तथा इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि यह औरत उस तिलिस्म से कोई सम्बन्ध रखती है और यदि ऐसा है तो अब उस पुस्तक का मिलना मुश्किल है। अफसोस जब मैं किताव धुरा कर राजा बीरेन्द्रसिंह के शीशमहल से बाहर निकल रहा था तो उनके एक ऐयार ने मुझे देख लिया था मैं मुश्किल से निकल भागा और यह सोचे हुए था कि यदि मैं पुस्तक फिर वहीं रख आऊँगा तौफिर मेरी खोज न होगी, मगर हाय यहाँ तो कोई दूसरा ही रग निकला। मै-आपने उस पुस्तक को पढ़ा भी था ? याप-(आँखों में आँसू भर कर ) उसका पहला पृष्ठ देख सका था जिसमें इतना ही लिखा था कि जिसके कब्जे में यह पुस्तक रहेगी उसे तिलिस्मी आदमियों के हाथ से दुख नहीं पहुंच सकता। जो हो परन्तु अब इन सब बातों का समय नहीं है यदि हो सके तो उस औरत के हाथ से किताब ले लेना चाहिए उठो और मरे साथ चलो। इतना कह कर मेरा बाप उटा और मकान के अन्दर चला मैं भी उसके पीछे पीछे था। अन्दर से मकान का दर्वाजा बन्द कर लिया गया मगर जब मेरा बाप ऊपर के कमरे में जाने लगा जहाँ मेरी मॉ रहा करती थी तो मुझे सीढी के नीचे खडा कर गया और कहता गया कि देखो जय में पुकारूँ तो तुरत चले आना। घण्टे भर तक मैं खड़ा रहा। इसके बाद छत पर घमघमाइट मालूम होने लगी मानों कइ आदमी आपस में लड रहे है। अब मुझसे रहा न गया हाथ में खजर लेकर मैं ऊपर चढ गया और बेधडक उस कमरे में घुस गया जिसमें मेरा बाप था। इस समय घमघमाहट की आवाज बन्द हो गई थी और कमरे के अन्दर सन्नाटा था। भीतर की अवस्था देख कर मैं घबडा गया। वह औरत जो मेरी माँ बनी हुई थी वहाँ न थी। मेरा बाप जमीन पर पड़ा हुआ था और उसके बदन से खून बह रहा था। मै घयडा कर उसके पास गया और देखा कि वह बेहोश पड़ा है और उसके सिर और बाएं हाथ में तलवार की गहरी चोट लगी हुई है जिसमें से अभी तक खून निकल रहा है। मैंने अपनी धोती फाडी और पानी से जख्म धोकर बाँधने के बाद बाप का होश में लाने की फिक्र करने लगा। थोड़ी देर बाद वह होश में आया और उठ बैठा। 1 मैं-मुझे ताज्जुब है कि एक औरत के हाथ स आप चोट खा गए बाप केवल औरत ही न थी यहाँ आने पर मैने कई आदमी देखे जिनके सबब से यहाँ तक नौबत आ पहुँची। अफसोस वह किताब हाथ न लगी और मेरी जिन्दगी मुफ्त में बाद हुई । मै-ताज्जुब है कि इस मकान में लोग किस राह से आकर अपना काम कर जाते हैं पहिले भी कई दफे यह बात देखने में आई। बाप-खैर जो हुआ सो हुआ अब मैजाता हूँ गुमनाम रह कर अपने किये का फल भोगूंगा यदि वह किताब हाथ लग गई और अपने माथे से बदनामी का टीका मिटा सका तो फिर तुमसे मिलूंगा नहीं तो हरि-इच्छा। तुम इस मकान को मत छोड़ना और जो कुछ देख सुन चुके हो उसका पता लगाना । तुम्हारे घर में जो कुछ दौलत है उसे हिफाजत से रखना और होशियारी से रह कर गुजारा करना तथा बन पडे तो अपनी मॉ का भी पता लगाना। बाप की बातें सुन कर मेरी अजब हालत हो गई दिल धड़कने लगा गला भर आया आसुओं ने आँखों के आगे पर्दा डाल दिया। मै बहुत कुछ कहा चाहता था मगर कह न सका। मेरे बाप ने देखते देखते मकान के बाहर निकल कर न मालूम किधर का रास्ता लिया। उस समय मेरे हिसाब से दुनिया उजड गई थी और मैं बिना माँ बाप के मुर्दे से बदतर हो रहा था। मेरे घर में जो उपद्धव हुआ था उसका कुछ हाल नौकरों और लौडियों को मालूम हो चुका था, मगर मेरे समझाने से उन लोगों ने छिपा लिया और बड़ी कठिनाई से मैं उस मकान में रहने और बीती हुई बातों का पता लगाने लगा। प्रतिदिन आधी रात के समय में ऐयारी के सामान से दुरुस्त होकर उस समाधि के पास जाया करता जहाँ पहिले दिन उस आदमी के पीछे पीछे गया था जो मेरी माँ को चुरा कर ले गया था। अब यहाँ से मै अपने किस्से को बहुत ही सक्षेप में कहा चाहता हूँ क्योंकि समय बहुत कम है। एक दिन आधी रात के समय उसी समाधि के पास एक इमली के पेड़ पर चढ़ कर बैठा हुआ था और अपनी देवकीनन्दन खत्री समग्र ३९२