पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४५८

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पशि को इसी। पल्पक पवन की तरफ दीवार नरदनों क दुतने लायक राला हो गया था अर्थतन्डो क्षारापल्लनतरह यूनरल में इट 74 या उत्त अदनोनयहाशमायागनो को धरस स्टा कर उन्की सरफाइपर डाल दिया इन्कन्द कर दवाजे ने जो ताला हुआ था खाल कर अपने पास रखा और फिर नुनीरजमाकर उसदरारकी राह दीवार क अन्दर उक्त मया । उत्तक जान के साथ ही लकडोजातनी दरवर हा गया घन्टनर कफद मायाराने हाशमई और अउजालकर दखने लगे मगर अभी तक कमरे में स्वरा ही था। डायस टालने और जाच करने समातून हा गया कि वह कारलाई परडी हुई है। डर के मारे दर तक चारपाई पर पडीरही जब कित्तो के पैर को लास्ट मालूम हुई तो जो कडा करके तो और दर्दाजे के पास आई।बुडीचुली हुई थी झटदर्शनाखोलकर कमरे के बाहर निकल आई कई तौड़ियों को नगो तलदार लिए दाजे पर पहरा देते पाया। उस्न लाडियो ते यूज कमरे के अन्दर कौन गया था ! जिस जवाब में उन्होंने ताज्जुब के साथ कहा कोई नहीं। लंडियों कहने का विश्वात्तमयागनी को न हुआ वह दर तक उन लोगों पर गुत्ता करतो और यक्ती झलती रही। उसे शक हा गया कि इन लागों न मेरे साथ दगा को और कुल लौडिया दुश्मनों स मिली हुई है मगर कनूर साबित दिये बिना उन त्तनो दो सजा दनामी उस्न उचित न जाना। डर के मरनयारामो कर कमर के अन्दर न गई बाहर हो एक अरान कुत्तों पर बैठ कर उत्सने रची हुई रात विताइ। रतलबेन गई मगर सुयह की तुपदी ने अस्मान पर अपना दखल अनी नहीं जमाया था कि एक गलिन का हाय पडे धनात आपहुची और मायारानेको बाहर बैठ हुए देखना-जुब के साथ वालो 'इन्न समय आप यहा क्यों बैठी है? माया (घबडाई हुई आवाज में ) क्या कह आज ईश्वर न ही मरी जान बचाई नहीं तो मन में कुछ कही न था ! घनपत (ताज्जु क साथ चौक पर साम? माया-पहिले यह ता क्हो शि इस मालिन को कैदियों की तरह पकड कर यहा लाने का क्या स्वय है? धनपत-हीने पहले आपन हाल सुन लूगी तो कुछ कहूगो। मापार नी ने धीरे धीरे अपना पूरा हाल विस्तार के साथ धनपत सक्हा जिसे सुन कर धनपत नी डरी और बाली ‘इन लौडियों पर शक करना मुनात्तिव नहीं है हा जय इत्त कन्यज मालिन का हाल आप तुझेगी जित्त नै गिरस्तार कर साइ हूँ तो आप का जी अवश्य दुखगा और इस प शक करना अल्कि यह निश्चय केर लना अनुदित न हागा कि यह दुरन्नो त मिली हुई है।ये लौडिया जिनके सुपुद पहरे का काम है और जिन पर आपशक करतो हे बहुत ही नेक और इमानदार है में इन लोगों को अच्छी तरह आजमा चुकी हूँ। माया और मै इस विषय में अच्छी तरह सोच कर और इन सभों को आजमा कर निश्चय करूंगी तुम यह हो कि इस मलि ने क्या कसूर लिया है ? यह ता अपने कान में बहुत तेज और हाशियार है ! धनप्त-हाबाग की दुरुस्ती और गूलबूटों के सवारने का काम ता यह बहुत ही अच्छी तरह जानती है मगर दिल नुकीले और दिपैले कटोने भरा हुआ है। आज रात को नींद न आने और कई तरह की चिन्ता के कारण नै चारपाई पर आराम न कर सको और यह सोचकर बाहर निक्षलो कि याग में टहल कर दिल बहलाजगी मै चुपचाप बाग में टहल्न लीनगर मेरा दिल तरह तरह के विचारों से खाली न था यहा तक कि सिर नीचे दिये टहलते मै हन्माम के पास जा पहुची और वहा अतर को टट्टी में पत्तों की खडखडाहट पाकर घबडा के रुकगई।थोडो ही देर में जर चुटको बजग्न की अवाज मरे कान में पड़ी तर तो ने चौकी और सोचने लगी कि बेशक यहा कुछ दाल में दाला है। माया उन तमय तू असूर को टट्टी स कितनी दूर और कित्त तरफ थी ? धनन्त-मैटहीक पूरय तरफ पास ही वाली चमेली की झडी तक पहुच चुकी थी जब पत्तों की खडखडाइट सुनो तारुक गई और जब चुटकी की आवाज कानों में पड़ी तो झट झाडी के अन्दर छिप गई और बड़े गौर स अगूर को टट्टी की तरफ ध्यान देकर दखन लगी। यद्यपि रात अधेरी थी मगर मेरी आखों ने युटकों को आवाज से साथ ही दो आदमियों का टट्टी के अन्दर घुसते देख लिया। माया-युटको बजाने की आवाज कहा स आई थी? घनश्त-अगूर की टट्टी के अन्दर त्त। माया अच्छा तर क्या हुआ? धनस्त में उन पर लेट कर धीर धीरे टट्टी की तरफ घसकने लगी और उत्तके बहुत पास पहुंच गई अन्त में किसी की आवाज नी मेरे कान में पजे और मै ध्यान देकर तुन्ने लगी। बातें करे धीरे हो रही थी मगर मैं बहुत पात पहुच उने के कारण साफ साफ सुन सकती थी। सबस पाहिल जित्तको अग्दजमेरे कानों में पडो वह यही कम्बख्त मालिन थी। देवकीनन्दन खत्री समग्र ४४२