पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नि जाओगे पर तुम्हार लिए कुछ भी न होगा ! मै तुम लोगों का समझती हू और कहती हूं कि अपने मालिक के पास चला और उससे माफी माग कर अपनी जान बचाआ। इसी तरह की उँच नीच की बहुत सी बातें लीला सिपाहियों से दर तक कहती रही और सिपाही लाग भी लीला की बात पर गौर कर ही रह थे कि यकायक बाई तरफ स एक शख के बनने की आवाज आई धूम कर देखा तो व ही दोनों नकावयोश दिखाई पड़ जो हाथ के इशार से उन सिपाहियो का अपनी तरफ बुला रह थे। उन्हें देखते ही सिपाहियों की अवस्था बदल गई आर उनके दिल के अन्दर उम्मीद रज उर और तरदुद का चर्या तेजी के साथ घूमन लगा। लीला की बातों पर जर कुछ सोच कर रहे थे उसे छोड़ दिया आर धनपत को साथ लिए हुए इस तरह दानों नकाबपोशा की तरफ यढे जैसे प्यास पसाल (पौसर ) की तरफ लपकत है। जब उन दोनों नकाबपोशों के पास पहुच ता एक नकाबपाश न पुकार कर कहा इस बात से मत घबराआ कि मायारानी ने तुम लोगों का मजबूर कर दिया और इस वाग स बाहर जान लायक नहीं रक्खा । आओ हम तुम समा का इस वाग स बाहर कर दते है मगर इसके पहिले तुम्ह एक एसा तमाशा दिखाया चाहते है जिस देख कर तुम बहुत ही खुशहा जाओगे और हद स ज्यादे बेफिक्री तुम लोगों के भाग में पड़गी, मगर वह तमाशा हम एक दम स सभों का नहीं दिखाया चाहते । मैं एक कोठरी में { हाथ का इशारा करके) जाता है, तुम लोग यारी गरी से पाच पाच आदमी आआ और अनुत अद्वितीय अनूटा तथा आश्चर्यजनक तमाशा दखा। इस समय दानों नकाबपोश जिस जगह खडे थ उसक पीछ की तरफ एक दीवार थी जो वाग के दूसरे और तीसर दर्जे की हद को अलग कर रही थी और उसी जगह पर एक मामूली काठरी भी थी। बात पूरी होत ही दोनो नकायमांश पाच सिपाहियों को अपन साथ आत के लिए कह कर उस काटरी के अन्दर घुस गए । इस समय इन सिपाहियों की अवस्था केसी यी इसे दिखाना जरा कठिन है। न तो इन लोगों का दिल उन दोनों नकाबपोशों के साथ दुश्मनी करने की आज्ञा देता था और न यही कहता था कि उन दानों को छोड दा और जिधर जाए जानदार जय दोना नकाबपाश कोठरी के अन्दर घुस गए ता उसक याद धाच सिपाही जा दिलावर ओर ताकतवर थ काटरी में घुस और चौथाई घड़ी तक उसके अन्दर रहे। इसके बाद जब उस कोठरी के बाहर निकले तो उनके साथियों न दखा कि उन पाँचों के चहरे से उदासी झलक रही आटों से आसू की चूदे टपक रही है और सिर झुकाए अपन साथियो की तरफ आ रह है। जच पास आए ता उन पाँचों की अवस्था एकदम बदल जान का सवय सिपाहियों ने पूछा जिसके जवाब में उन पाचों ने कहा पूछन की काई आवश्यकता नहीं है तुम लाग पाच पाच आदी चारी बारी में जा ओर जा कुछ है अपनी आँखों से देख लो हम लामो से पूछोग तो कुछ भी न बतायेंगे हॉ इतना अवश्य कहेंगे कि वहाँ जाने में किसी तरह का हर्ज नहीं है। आपुस में ताज्जुब भरी बातें करन के बाद और पाच सिपाही उस काटरी के अन्दर घुसे जिसमे दानों नकाबपोश ये और पहिले याचों की तरह ये पाचो भी चौथाई घडी तक उस काठरी के अन्दर रहे। इसके बाद जब बाहर किले का इन पाचो भी वही अवस्था थी जसी उन पाँचों की जा इन पहिले कालरी के अन्दर सहा कर आए थे। इसके बाद फिर पाच सिपाही कोठरी के अन्दर घुस और उनकी भी वही अवस्था हुई यहा तक कि जितन सिपाही यहा मौजूद थे पाच पाच करके सभी कोठरी के अन्दर स हा आए और सभों ही की यही अवस्था हुई जैसी पहिल गए हुए पाचौ सिपाहियों की हुई थी। धनपत ताज्जुब भरी निगाहों से यह तमाशा देख और असल मे जान कोलिये बेचैन हो रहा था मगर इतनी हिम्मत न पडती थी कि किसी से कुछ पूछता काफि नकाबपोशों कि आज्ञानुसार सिपाहियों की तरह वह उस कोटरी के अन्दर जाने नहीं पाया था जिसमें दाना नकाबपोश थे । अन्त में सब सिपाहिया न आपुस में बातें करके इशार में इस बात की निश्चय कर लिया कि कोटरीक अन्दर उन सभा ने एक ही रग दग का तमाशा देखा था। थोडी देर बाद दोनों नकाबपाश उस कोठरी के बाहर निकल आए और उनमें सन्धट नकाबपाश ने सिपाहियों की तरफ देख कर कहा धनपत को मेरे हवाले करा। सिपाडियों न कुछ भी उजन किया बल्कि अदब के साथ आगे बढ़ कर धनपत को नकाबपाश के हवाले कर दिया। दानों नकाबपोश उस साथ लिए हुए फिर काठरी के अन्दर घुस गय और आधे घटे तक वहा रह इसके बाद जब कोठरी के बाहर निकले तो नाटे नकाबपोश ने सिपाहियों से कहा धनपत को हमने ठिकाने पहुंचा दिया अब आओ तुम लोगों को भी इस याग के बाहर कर दें। सिपाहियो न कुछ भी उत न किया और दो तीन झुण्डों म होकर नकाबपोश के साथ उस काठरी क अन्दर गए और गायब हो गया दोनों नकाबपोश भी उसी कोठरी के अन्दर जाकर गायब हो गये और उस कोठरी का दर्वाजा भीतर से बन्द हो गया । इस पचड़े में दोपहर दिन चढ आया लीला दूर से खड़ी यह तमाशा देख रही थी जब सन्नाटा हो गया तो वह लौटी और उसने इन बातो की खबर मायारानी तक पहुंचाई। 1 देवकीनन्दन खत्री समग्र