पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४९४

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- नागर- ताज्जुब है कि इतनी बडी बदमाशी करने पर भी तू निडर होकर यहा कैसे चला आया मालूम होता है अपनी जान से हाथ धो बैठा। कोई हर्ज नहीं अगर तिलिस्मी खजर का असर तुझ पर नहीं होता तो मैं दूसरी तरह से तेरी खबर लूगी। इस समय मायारानी की फुर्ती देखने ही योग्य थी। यह बाघिन की तरह झपट कर दारोगा के पास पहुची। इस समय उसकी उँगली में एक जहरीली अंगूठी उसी तरह की थी जैसी नागर के हाथ में उस समय थी जब उसने सुनसान जगल में भूतनाथ को अंगूढी गाल में रगड़ कर बेहोश किया था। इस समय मायारानी ने भी वहीं काम किया अर्थात् वह अगूठी जिस पर जहरीलानाकदार नगीना जडाहुआ था दारोगा के गाल में इस फुर्ती और चालाकी से गाड दी कि वह बेचारा कुछ भी न कर सका । उस नगीने की रगड से गाल जरा ही सा छिला था मगर जहर का असर पल मर में अपना काम कर गया दारोगा चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा और बहोश होगया । मायारानीने नागर की तरफ देखा और कहा अब इसके हाथ पैर जकड के बाँध दो और तब होश में लाकर पूछा कि कहिय जसिह आपका मिजाज कैसा है ? इसके जवाब में नागर ने कहा- कवल हाथ पैर ही याँध कर के नहीं छोड़ दो बल्कि थोड़ी सी नाक काट लो और नकली दाढी उखाड कर फेंक दा और तब हारा में लाकर पूछो कि कहिए ऐयारों के गुरुघण्टाल तजसिह आप का मिजाज कैसा है ? इस समय मायारानी यही समझ रही थी कि यह दारोगा वास्तव में वहीं तेजसिह है जिसने उस अनूठी रीति से धोखा दिया था बल्कि वह उसके शक पर बागीचे में घूमतें समय हर एक पने से डरती फिरे तो ताज्जुब नहीं परन्तु हमारे पाटक जसर समझते होंगे कि तजसिह एस यवकूफ नहीं है जो मायारानी को धोखा दकर बल्कि अपने घाख का परिचय देकर फिर उसफ सामने इत्ती सूरत में आर्वे जिस सूरत में उन्होंने धोखा दिया था और वास्तव म बात भी ऐसी ही है। यह तजसिह नहीं थे बल्कि मायारानी के असली दारोगा साहब थे मगर अफसास इस समय उनकी दाढी नाचने तथा नाक काटन के लिये वही तैयार है जिनके चे पक्षपाली है। नागर न जा कुछ कहा मायारानी ने स्वीकार किया। नागर ने पहिले तिलिस्मी खजर से दारोगा साहब की नाक काट ली और फिर दाढी नाचने के लिए तैयार हुई। मगर यह दाडी नकली न थी जो एक ही झटके में अलग हा जाती इसलिए इसके नोचने में बेचारी नागर को विशेष तकलीफ उठानी पड़ी । नागर दाढी नोचती जाती थी और यह कहती जाती थी-- तजसिह बड़े मजबूत मसाले से बाल जमाला है । आधी दाढी नुचत नुचते दाराग्ग का चेहरा खून से लालोलाल हो गया। उस समय मावारानी ने चौक करनागर से कहा ठहर ठहर घेशक धोखा हुआ यह तेजसिह नटी वास्तव में बेचारा दारोगा है। नागर--( रुक कर ) हाँ ठीक तो जान पड़ता है। हाय बहुत युरी मूल हा गई । माया-भूल क्या गजब हो गया इस बचारे ने सिवाय नेकी को भरे साथ बुराई कभी नहीं की. अब यह जहर क मारे मरा जा रहा है पहिले जहर दूर करने की फिक्र करनी चाहिए। नागर-जहर तो बात की बात में दूर हा जायगा मगर अब हम लोग इसे अपना मुँह कैसे दिखार्यगे । माया-मैंने तो केवल दाढी नाधन की राय दी थी तूही ने नाक काटने के लिए कहा और अपने हाथ से बचारे की नाक काट भी ली। नागर-क्या खूब ? इस गालियों भी मैन ही दी थी क्या तुम्हारी आज्ञा के बिना मैंने इनकी नाक काट ली? अब कसूर मेरे सिर पर थोप आप अलग हुआ चाहती हा ? सच ही तुम्हें लोग वदनाम करते है। तुम्हारी दास्ती पर भरोसा 'करना वेशक मूर्खता है जब मेर सामन तुम्हारा यह हाल है तो पीछे न मालूम तुम क्या करती खैर क्या हर्ज है, जैसी खुदगर्ज हा में जान गई। इतना कह कर नागर वहा स बली गई और जहर दूर करने वाली दवा की शीशी ले आई। थोड़ी सी दवा उस जगह लगाई जहॉ अंगूठी के सवव से छिल गया था। दवा लगाने के थोड़ी देर बाद उस जगह छाला पड़ गया और उस छाले को नागर ने फाड दिया। पानी निकल जाने के साथ ही दारामा होश में आकर उठ बैठा और आपनी हालत देख कर अफसोस करने लगा। यद्यपि यह कुछ भी नहीं जानता था कि मायारानी ने उसके साथ एसा सलूक क्यों किया तथापि उस इत" क्रोध चढा हुआ था कि मायारानी से कुछ भी न पूछ कर वह चुपचाप उसका मुंह दखता रहा। माया-(दारागा स) माफ कीजिए मैने केवल यह जानने के लिए आपको बहोश किया था कि यह वीरेन्द्रसिह का कोई ऐयार ता नहीं है इसके सिवाय और जो कुछ किया नागर ने किया। नागर-ठीक है बाबाजी इस यात को बखूबी समझते हैं। मैंने ही तो जहरीली अंगूठी से इनकी जान लने का इरादा किया था (यायाजी की तरफ देख कर ) मायारानी की दोस्ती पर भरोसा करना पड़ी भारी भूल है।जब इसने अपने पति ही देयकीनन्दन खत्री समग्र