पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४९३

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दूसरा बयान pe अब हम फिर मायारानी की तरफ लौटत है और उस का हाल लिख कई गुप्त भेदों को खोलत है।मायारानी भी उस चोटी का पूरा पूरा पढ न सकी और बदहवास होकर जमीन पर गिर पडी । नागर तुरन्त उठी और भडरिये में से एक सुराही निकाल लाई जिसमें बदमुश्क का अक था। वह अर्क मायारानी के मुंह पर छिडका जिससथाडी दर बाद वह होश ने आई और नागर की तरफ देख कर बाली हाय अफसोस क्या सोचा था और क्या हो गया । नागर-खेर जा हाना था सा हा गया अव इस तरह बदहवास होन से काम नहीं चलेगा उठी और अपन को सम्हाला साचा विचारा और निश्चय करा कि अब क्या करना चाहिए। माया-अफसोस उस कम्बख्त एयार न वडा भारी धोखा दिया और मुझस भी बड़ी भारी भूल हुई कि लक्ष्मीदेवी पाला भेद उसक सामन जुवान स निकाल येठी यद्यपि उस इशारे से वह कुछ समझ न सकेगा परन्तु जिस समय मापालासह के सामान लक्ष्मीदवी का नाम लेगा और वे बातें कहेगा जो मैन उस दारोगा रूपधारीऐयार से कही थी तो वह बखूदा समझ जायगा और मेरे विषय में उसका क्रोध सौगुना हो जायगा। यदि मेरे बारे में वह किसी तरह की बदनामी स्मशता भी था ता अब न समझगा । हाय अव जिन्दगी की काई आशा न रही। नागर-लक्ष्भादवा का नाम ले क जा कुछ तुमने कहा उसस मुझे भी शक हा गया। क्या असल में माया-आफ यह मद रिम्पाय असला दारोगा क किसी को भी मालूम नहीं। आज -(कुछ रुक कर ) नहीं अब भी में उस भेद को छिपान का उद्योग करूँगी और तुझसे कुछ भी न कहूगी बस अब लक्ष्मीदेवी का नाम तुम मेरे सामने मत ला: चार्टी की तरफ इशारा करके ) अच्छा इस पीता का तुम एक दफे फिर से पढ जाआ । नागर न यह वाटी उठा ली जिसक पठन से मायारानी की वह हालत हुई थी और पुन उसे पढने लगी- चीठी- बुर कामों का करने वाला कदापि सुख नहीं भोग सकल्म । तू समझती होगी कि मैं राजा गोपालसिंह देवीसिह भूकनाय कालनी और लाडिली को मार क निश्चिन्त हा गइ अव मुझ सतान वाला कोई भी न रहा। इस बात का तो तुझे गुमान भी न हागा कि मैं सुरग म असर्लदारोगा स नहीं मिली बल्कि एयारों के गुरुघण्टाल तेजसिंह से मिली जो दरागा के बेष में था और यह बात भी तुझे सूझी न होगी कि दारोगा वाले मकान के उड जान से कदियों की कुछ भी हानि नहीं हुई बल्कि व लाग अजायबघर की ताली की बदौलत जो सुरग में मैने तुझसे ले ली थी और भोजन तथा जल पहुचाने के समय कैदियों का होश में लाकर दे दी थी निकल गये। अहा परमात्मा तू धन्य है तेरी अदालत बहुत सच्ची है। ऐ कम्बख्त मायारानी अब तू सब कुछ इसी से समझजा कि मैं वास्तव में तेजसिंह हू। तेरा जो कुछ तू समझे-तेजसिह । इस चीटी को सुनते ही मायारानी का सिर धूमने लगा और वह डर के मारे थर थर कॉपने लगी थोडी देर चुप रहने बाद वह उठ बैठी और नागर की तरफ देख कर बोली- माया-यह तजसिह भी बडा ही शैतान है इसने दो दर्फ भारी धोखा दिया। अफसोस अजायबघर की ताली हाथ आकर फिर निकल गई कवल ये दोनों तिलिस्मीखजर मेरे हाथ में रह गये मगर इनसे मेरी जान नहीं बच सकती। सबसे ज्यादे अफसास तो इस बात का है कि लक्ष्मी देवी वाला भेद अब खुल गया और यह बात मेरे लिए बहुत ही बुरी हुई। कुछ साच कर ) हाय अब मै समझी कि इस तिलिस्मी खजर का असर तेजसिंह पर इसलिए नहीं हुआ कि उसके पास भी जरुर इसी तरह का खजर और ऐसी ही अगूढी होगी। नागर-वशक यही बात है खैर अब यह बहुत जल्द सोचना चाहिये कि हम लोगों की जान कैसे बच सकती है। मायारानी इसका कुछ जवाब दिया ही चाहती थी कि सामने का दर्वाजा खुला और मायारानी के दारोगा साहय अन्दर आते हुए दिखाई पड़े। उन्हें देखते ही मायारानी कोध के मारे लाल हो गई और कडक कर बोली 'तुझ कम्बख्त को यहाँ किसन आने दिवा खैर अच्छा ही हुआ तू आ गया। मुझे मालूम हो गया कि तेरी मौत तुझे यहाँ लाई है हॉ अगर तेरी चीठी मुझे न मिली रहती तो मैं फिर धोखे में आ जाती। कम्बख्त नालायक तूने मुझे बडा भारी धोखा दिया अवत मेरे हाथ से बच कर नहीं जा सकता। दरोगा-तू अपने होश में भी है या नहीं ? क्या अपने को बिल्कुल भूल गई क्या तू नहीं जानती कि किससे क्या कह रही है ? मेरी मौत नहीं बल्कि तरी मौत आई है जो तू जुबान सम्हाल कर नहीं बोलती। माया-(खडी होकर और तिलिस्मी खजर हाथ में लेकर ) हाँ ठीक है. यदि मैं अपने होश में रहती तो तुझ कम्बख्त के फेर में पड़ती ही क्यों ? येईमान कहीं का तैने मुझे बडा भारी धोखा दिया देख अब मैं तेरी क्या दुर्गति करती है। बनकान्ता सन्तति भाग १० ४८५