पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२९

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तहखाने में पहुच कर सुरग का दूसरा दर्वाजा बन्द किया गया और फिर ऊपर पहुच कर तारा न तहखाने का दवाजा भी बन्द करक ताला लगा दिया। इधर तालाब का जल तजी के साथ सूख रहा था क्याकि तालाब के ऊपरी हिस्से में लम्बान चौडान ज्यादे हाने के कारण जल भी ज्याद ॲटता है इसी तरह निचले हिस्से में लम्बान चाडान कम होने के कारण जल कम रहता है इसीलिए बनिरयत ऊपरी हिस्स के तालाँच के निचले हिसा का जल क्रमश तजी के साथ कम होता गया यहाँ तक कि जव तास सुरग और तहखान से निकल कर मकान की छत पर पहुची तो उसने तालाब को सूखा हुआ पाया। मकान के चारों तरफ धूमन बाल लोह क चक्र तजी के साथ घूम रहे थे और दुश्मन लोग यह सोच कर कि उन चक्रों की बदौलत मकान तक पहुंचना बहुत कठिन बल्कि असम्भव है उन चकों को ताज्जुब के साथ देख और उनको रोकने की तर्कीब साच रह था इधर किशारी कामिनी और तारा भी उनकी इस अवस्था का मकान की छत पर से दीवार के उन छेदों की राह दख रही थी जा दुश्मनों पर ताप बरसान के लिए बने ये इस समय रात दा घण्ट स ज्याद जा चुकी थी मगर पहर ही भर तक दर्शन देकर अस्त हो जाने वाले चन्द्रमा की राशनी दुश्मना की किसी कार्रवाई को अन्धेरे के पर्दे में छिपी रहन नहीं देती थी। दुश्मनों ने जब देखा कि चक्रा के समय से मकान तक पहुचना असम्भव है तो उन्होंने उद्योग का एक मजेदार ढग निकाला जिम देख तारा किशारी और कामिनी के दिल में खौफ पैदा हुआ अर्थात दुश्मनों ने तालाब को मिट्टी से पाटना शुरु किया। वशफ यह तीच बहुत ही अच्छी थी क्योंकि तालाब पट जाने पर उन चक्रों का घूमना न घूमना बरावर था और आश्चर्य नहीं कि मिट्टी के अन्दर दव जान के कारण व रुक भी जाते मगर इस काम के लिए दुश्मनों को मामूली से यहुत ज्याद समय नष्ट करन्प पडा क्योंकि उन लोगों के पास जमीन खादन क लिए फर्सा या कुदाली के किस्म की कोई चीज थी खजर तलवार और ना ही स व लोग जा कुछ कर सकते थे करने लग। दुश्मनों के इस उद्याग का देख कर सारा का कलजा दहल गया और उसने अफसास के साथ किशोरी की तरफ दख कहा- तारा-कहो अब इस उद्योग का क्या जवाब दिया जाय ? किशोरी-यद्यपि वे लोग एक दिन में तालाव नहीं पाट सकते मगर हम लोगों को बचाव के लिए अब कोई तर्फीच सोचना चाहेए क्योंकि तालाव पट जाने पर ये चारों चक्र जमीन के अन्दर हो जायगे और उस समय इस कान में दुश्मनों का घुस आना कुछ कठिन न होगा। कामिनी-उस सुरग की राह भाग जाने के सिवाय हम लोग और कुछ भी नहीं कर सकेंगे। तारा-क्या दुश्मन लोग सुरग के उस मुहाने को सूना छोड देंगे जिसका पूरा पूरा हाल उन लोगों को मालूम हो चुका कामिनी-इसकी आशा भी नहीं हो सकती बेशक भागना मुश्किल हा जायगा। खैर जो कुछ होगा देखा जायगा इस समय लो मैं यही मुनासिब समझती हू कि तीर मार कर दुश्मनों की गिनती कम करनी चाहिए। वे लोग हम लोगों पर कोई हवा नहीं चला सकते। तारा-हा इस समय ता यही करना मुनासिब होगा इसके बाद जो राय होगी किया जायगा ममर वहिन मैं फिर भी कहती हू कि तुम मुझे तिलिस्मी नेजा हाथ में लेकर सुरग की राह से निकल जाने दो फिर देखो तो सही कि मैं अकेली इतन दुश्मनों को क्याकर बात की बात में मार गिराती हू, तुम्हें इस नेजे का हाल पूरा पूरा मालूम हो ही चुका है अतएव उस पर भरासा करक तुम्हें उचित है कि मुझेन रोको मैं नहीं चाहती कि यह तालाय पट जाय और फिर सफाई कराने के लिए तकलीफ उठानी पड। कामिनी-तुम्हारा कहना ठीक है इस नेजे की जहाँ तक तारीफ की जाय कम है और तुम उन सभी को जहन्नुम में पहुचा सकांगी जो दुश्मनी की नीयत से तुम्हारे पास आयेगे मगर उनका तुम क्या बिगाड सकोगी जो दूर ही से तुम्हे तीर का निशाना बनावगे। तारा-(कुछ साथ कर ) बेशक यह एक एसी बात तुमने कही जिस पर विचार करना चाहिए अच्छा खूब याद आया। इस मकान में फौलाद का एक कवच ऐसा है जो बदन पर ठीक आ सकता है मैं उसे पहिर कर जाऊगी और तीर की घाट स येफिक्र रहूगी। यद्यपि इस पर भी तुम कह सकती हो कि आख नाक मुझे इत्यादि किस किस जगह की तुम हिफाजत कर सकती हो मगर इसके साथ ही इस बात को भी सोचना चाहिए कि अगर तालाब पाट कर दुश्मन यहा घुस आवेंगे और हम लोगों को पकड लेंगे तो क्या होगा? अपनी बेइज्जती कराना और वेहुर्मती के साथ जान देना अच्छा होगा या वहादुरी के साथ सौ पचास का मार कर लडाई के मैदान में मिट जाना उचित होगा। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ ५२१