पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५३७

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car रास्ता था। ताला ताड़ा गया और वे तीनों उस कोठरी के अन्दर पहुचे। तहखाने के अन्दर जाने वाला रास्ता दिखाई पड़ा जिसका दाजा जमीन के साथ सटा हुआ और ताला भी लगा हुआ था। उस जगह खडे होकर तीनों सिपाही आयुस में बातचीत करन लगे। एक-येशक इसी तहखाने में महाराज शिवदत्त कैद होंगे बड़ी मुश्किल से इसका पता लगा। दूसरा-मगर हम लाग जा यह साचे हुए थे कि किशोरी कामिनी और तारा भी उसी तहखाने में छिप कर बैठी होगी यह यात अदिल से जाती रही क्योंकि वे भी अगर इसी तहखाने में होती तो हम लोगों को ताला तोड़ना न पडता! तीसरा-ठीक है मै भी यही सोचता है कि वे लोग किसी दूसरे गुप्त स्थान में छिप कर बैटी होंगी,खैर पहिलेअपने मालिक को तो छुडाओ फिर उन तीनों को भी दूर निकालेंगे. आखिर इस मकान के अन्दर ही तो होंगी। दूसरा-हा जी दखा जायगा यस अब इस ताल को भी झटपट ताड डालो। वह ताला मी ताडा गया और हाथ म लालटन लेकर एक आदमी उसके अन्दर उतरा तथा दो उसके पीछे चले। पाच चार सीढ़ियों से ज्याद न उतरे होंगे कि कइ आदमियों के टहलने और बातचीत करने की आहट मिली जिससे ये तीनों बड गौर स नीर की तरफ देखन लगे मगर जो सिपाही सबसे आगे था उसके सिवाय और किसी को भी कुछ दिखाई न दिया। उसने तहखाने में तीन आदमियों को देखा जो इन सिपाहियों के आने की आहट पाकर और लालटेन की राशनी देखकर ठिठक हुए ऊपर की तरफ देख रहे थे। इनमें एक मर्द और दो औरतें थी। तीनों सिपाहियों को निश्चय को गया कि बेशक यही तीनों माधवी मनोरमा और शिवदत्त है। इन सिपाहियों ने छठी सीढी पर पैर नहीं रखा था कि नीचे स आवाज आइ ठहरो हम लोग खुद ऊपर आत है। उन सिपाहियों में से एक आदमी जिसका नाम रामचन्दर या शिवदत का पुराना खैरख्वाह मुलाजिम था और बाकी के दानों सिपाही मनोरमा के नौकर थे। आवाज सुन कर तीनों सिपाही ऊपर चले आये और तहखाने के अन्दर वाले टीनो व्यक्ति भी जिन्ह सिपाहियों ने अपना मालिक समझ रक्खा था बाहर हाकर क्रमश उस कमरे में पहुचे जिसमें कम्लिनी रहा करती थी और जिस एक तौर पर दीवानवाना भी कह सकते हैं। यद्यपि लूट खसोट का दिन था मगर फिर भी वहा इस समय रोशनी बखूबी हो रही थी और उस राशनी में सभों ने बखूबी पहिचान लिया कि वे वास्तव में माधवी मनारमा और शिवदत्त है। इस समय दुश्मनो की खुशी का अन्दाजा करना बडा ही कठिन है क्योंकि जिसे छुडाने के लिए उन लोगों ने उद्योग किया था उत्त अपन सामने मौजूद देखते है लाखों रुपए का माल जो लूट में मिला था अब पूरा पूरा हलाल समझते है इसके अतिरिक्त इनाम पाने की प्रबल अभिलाषा और भी प्रसन्न किये देती है। चारो तरफ से भीड़ उमड़ी पड़ती है और शिवदत्तक पैरों पर गिरन क लिए सभी उतावले हो रहे है। शिवदत्तन सभों की तरफ देखा और नर्म आवाज में कहा शाबाश मर बहादुर सिपाहियों आज जो काम तुमने किया वह मुझ जन्म भर याद रहगा नि सन्दह तुमने मेरी जान बचाई। दया इस कैद की सख्ती न मेरी क्या अवस्था कर दी है मेरी आवाज कैसी कमजोर हो रही है मेरा शरीर कैसा दुर्बल और बलहीन हा गया है मगर खेर काई चिन्ता नहीं जान बची है ता नाकत भी हो रहेगी यह मत समझो कि मैं इस समय हर तरह से लाचार हा रहा हूँ अतएव तुम्हारी आज की कारवाई के बदले मे कुछ इनाम नहीं दे सकूगा। नहीं नहीं एसा कदापि न सोचना । तुम लोग स्वय देखोगे कि कल जितनी दौलत मैं इनाम में तुम लोगों को दूगा वह उस लूट के माल से सौगुना ज्याद होगी जो सुमन मकान में से पाई हागी। मैं भर्द हू और तुम लाग खूब जानत हो कि मदों की हिम्मत कभी कम नहीं हाती जिसने हिम्मत ताड दी वह मर्द नहीं औरत है। इसमें तुम इस बात पर भी विश्वास रखना कि मैं अपने पुराने दुश्मन बीरन्दसिह का पीछा कदापि न छोडूगा सा भी ऐसी अवस्था में कि जब तुम लोगों ऐसे मर्द दिलावर और निमकहलाल सिपाही मरे साथी हाँ अच्छा यह सब बाते तो फिर हो रहेगी इस समय मै भकान से बाहर निकल कर अपन वीरो का देखा और उनस मिलना चाहता हूँ क्योंकि यह मकान इतना वडा नहीं है कि सय सिपाही इसमें समाजाय और में इस जगह बैठा बेटा सबसे मिल लू । चला तुम लाग तालाब के पार चलो मै भी आता हूँ शिवदत्त की बातें सुन कर ये सिपाही लाग बहुत ही प्रसन्न हुए और जल्दी के साथ उस मकान से निकल कर तालाब के बाहर हो गये जहा और सिपाही सरखडे बेचैनी के साथ इन लागों की राह देख रहे थे और यह जानन के लिए उत्सुक थे कि मकान क अन्दर क्या हा रहा है। सिपाहियों के बाहर हो जाने बाद शिवदत्त भी मकान से निकला और तालाब से बाहर हो गया। माधवी और मनोरमा उस मकान के अन्दर ही रह गई। अव त्तवेरा हा चुका था। पूरब तरफ आसमान पर भगवान सूर्यदेव का लाल पेशखेमा दिखाई देने लगा। शिवदत्त मैदान में राडा हा गया और खुशी के मार उसकी जयजयकार करते उसके सिपाहियों ने चारा तरफ से उसे घेर लिया तथा यह सुनने के लिए उत्सुक होने लगे कि देखें अब हमारी तारीफ में हमारे राजा साहब क्या कहते हैं। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ ५२९