पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५५२

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आदमी-(खुश होकर ) हा तुमने उसे पहिचान लिया किस तरह पहिवाना? औरत-जब वह मेरे हाथ पैर बाघ रहा था उसी समय इत्तिफाक स उसके चहरे पर से नकाब हट गया और मैने उस अच्छी तरह पहिचान लिया । आदमी-यह बहुत अच्छा हुआ हा तो वह कौन है ? इसके जवाब में औरत ने धीर से उसके कान में कुछ कहा जिसे सुनते ही वह चौंक पडा और सिर नीचा करके कुछ साधन लगा 1 कई पल के बाद यह योला आह मुझे गुमान भी न था कि उस नकाब के अन्दर एक ऐसे की सूरत छिपी हुई है जो अपना सानो नहीं रखता भगर बहुत बुरा हुआ। वह चीज मेरे हाथ में होती तो भूतनाथ को इतना डर न था जितना अहे। खेर क्या हज है जब पता लग गया तो जाता कहा है आज नहीं कल कल नहीं परसो एक न एक दिन बदला ल लूगा । मगर सुनो तो सही मुझे एक नई बात सूझी है । विचित्र मनुष्य ने उस औरत स धीरे धीरे कुछ कहा जिसे वह बडे गौर से सुनती रही और जब बात पूरी हो गई तो चाली ठीक है ठीक है में अभी जाती हू, निश्चय रक्खो कि मरी सवारी का घोडा घटे भर के अन्दर अपनी पीठ खाली कर दगा और बहुत जल्द आदमी-यस बस मैं समझ गया तुम जाओ और में भी अब उसके पास जाता हूँ। उस औरत को विदा कर क वह विचित्र मनुष्य फिर उसी जगह आया जहाँ भूतनाथ अभी तक सिर झुकाये हुए बेट' था मगर उस नकाबपोश का कहीं पता न था। आदमी-( भूतनाथ से) वह नकाबपाश कहाँ गया ? भूत-( इधर उधर देख कर ) मालूम नहीं कहाँ चला गया । आदमी-क्या तुम उसे जानते हो? भूत-नहीं। आदमी-मगर वह तुम्हारा पक्ष क्यों करता है ? भूत-मैन तो कोई ऐसी बात नहीं देखी जिससे मालूम हो कि वह मेरा पक्ष करता। आदमी-तुमन काइ एसी बात नहीं देखी तो में कह देना उचित समझता हूँ कि वह नकाबपोश वह गठरी चगम के हाथ से जबंदरतील मया जिसमें तारा की किरमत बन्द थी। भूत-चलो अच्छा हुआ एक वला से तो छुटकारा मिता। आदमी-छुटकारा नहीं मिला बल्कि तुम और आफत में फंस गये यदि वास्तव में तुम उसे नहीं जानते । भूतनाथ-हाँ ऐसा भी हो सकता है खैर जो कुछ किस्मत में बदा है होगा मगर तुम यह बताओ कि अब मुझस क्या चाहते हो। किसी तरह मेरा पिण्ड छोडागे या नहीं? आदमी-क्या हुआ अगर वह गठरी चली गई मगर फिर भी तुम खूप समझते होगे कि अभी तफतुम पूरी तरह से मेरे सब्जे में हो और तुम्हारो वह प्यारी चीज भी भरे कब्जे में है जिसका इशारा में पहिल कर चुका हूँ अस्तु मै हुक्म देता है कि तुम उठो और मेरे साथ चलो । भूत-खैर चलो मैं चलता हूँ। इतना कहकर भूतनाथन आसमान की तरफ देखा और एक लम्बी सॉस ली। इस समय दिन अनुमान पहर भर के चढ चुका था और धूप में हरारत क्रमश बढती जाती थी। भूतनाथ को साथ लिये हुए वह विचित्र मनुष्य पूरब की तरफ रवाना हो गया। नौवां बयान दिन बहुत ज्यादे ग्रढ चुका था जब कमलिनी अपना काम करक सुरग की राह से लौटी और किशारी कामिडी तथा तारा को भैरोसिह के साथ बातचीत करते पाया । कमलिनी लाडिली और देवीसिंह बहुत प्रसन्न हुए और क्यों न होते, जिस आदमी की मेहनत ठिकाने लगती है उसकी खुशी का अन्दाजा करना उसी आदमी का काम है जो कठिन मेहनत कर के किसी अमूल्य वस्तु का लाभ कर चुका हो।सोरी कामिनी ओर ताग का इस तरह पाना कम खुशी की बात न थी जिनक मिलन के विषय में आशा की भी आशा टूटी हुई थी। विशोरी कामिनी और तारा जमीन पर पडी बातें कर रही थी क्योंकि उनमें उठने की सामर्थ्य बिल्कुल न थीं उन्होंने अपने बचाने वालों की तरफ खास कर के कमलिनी की तरफ अहसान शुक्रगुजारी और मुहब्बत भरी निगाहों से देर तक देवकीनन्दन खत्री समग्र