पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५५७

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GYI दूसरा पत्थर उसके दूसरे घूटने पर इस जोर स लगा कि वह चलने लायक न रहा इसके बाद देवीसिह का चलाया हुआ फिर एक पत्थर उसकी दाहिनी कलाई पर बैठा और तलवार उसके हाथ से छूट कर जमीन पर गिर पडी। विचित्र मनुष्य की कलाई नकाबपोश की लडाई में पहिले ही चोट खा चुकी थी अयकी दफे तो वह ऐसी बेकाम हुई कि उसे विश्वास हो गया कि कई महीने तक तलवार का कब्जा न थाम सकेगी। वह घबराहट के साथ देवीसिह की तरफ दख ही रहा था कि देवीसिह का चलाया हुआ एक और पत्थर आया जिसने उसका सिर तोड दिया और उसने त्योरा कर जमीन पर गिरते गिरते यह सुना देखा राजा बीरेन्द्रसिंह के ऐयार की करामात । देवीसिह तुरन्त उस विचित्र मनुष्य के पास पहुचे जो जमीन पर यहोश पड़ा हुआ था। अपने बटुए में से बेहोशी की दवा निकाल कर उसे सुघाई और उसके हाथ पैर बाधने के बाद पुन भूतनाथ के पास आये और बोले "तुम मेरी इस कार्रवाई से किसी तरह की चिन्ता मत करो और देखा कि मैं इस कम्बख्त को कैसा छकाला हूँ।। भूत में आपकी जितनी तारीफ करूँ थाडी है। कोई जमाना ऐसा था कि ऐसे दुष्ट लाग मर नाम से कॉपा करते थे परन्तु अब ता यात ही उल्टी हो गइ। अव यह जय मेरे सामने आता है तो 'बालि बन कर आता है अर्थात् इसकी सूरत देखते ही मरी ताकत फुर्ती और चालाकी हवा खाने चली जाती है या इसी दुष्ट का साथ देती है। अच्छा तो अब मुझे क्या करना चाहिये? हा इस बात पर भी विचार कर लेना कि मरी इज्जत अर्थात् मेरी स्त्री इसके कब्जे में है न मालूम इसने उसे कहा कैद कर रक्खा है । देवी-(आश्चर्य से मूतनाथ का मुंह देख के ) खैर पहिले यह बताओ कि यह कौन है इससे तुमसे कब मुलाकात हुई और क्या हुआ? भूतनाथ ने यह ता नहीं बताया कि वह विचित्र मनुष्य कोन है मगर जिस समय से वह मिला और उसके बाद जो जो हुआ सब पूरा पूरा कह सुनाया और देवीसिह आश्चय के साथ सुनते रहे। देवीसिह कुछ देर तक सोचते रहे। भगवनिया के छूट जाने का उन्हें बहुत रज था क्योंकि उन्हें या भूतनाथ को इस बात की खबर नहीं थी किभगवनिया भूतनाथ के कब्ज से निकल कर नकाबपाश के कब्जे में जा फंसी है। देवीसिह इस बात पर दर तक गौर करते रहे कि नकाबपोश कौन होगा तारा की किस्मत क्या चीज होगी जो गठरी में थी और वह घूमती फिरती नकाबपाश के कब्जे में कैसे जा पहुँची ? देवीसिह को विश्वास तो था कि तारा की किस्मत के विषय में भूतनाथ स बड कर साफ काई नहीं समझा सकता मगर साथ ही इसके यह भी निश्चय था कि भूतनाथ अपने मुँह से इन भेदों को इस समय कदापि न खोलगा और ऐसा करने के लिए जोर देने से उसे कष्ट होगा। देवी- अच्छा भूतनाथ यह बताओ कि तुम मुझ पर विश्वास कर सकते हो ? मै इस दुष्ट के पजे से तुम्हें छुडाने का उद्योग कऊँगा। तुम इस बात की चिन्ता न करो कि मैं इस मार डालूगा या बहुत दिनों तक कैद कर रक्षूगा क्योंकि ऐसा करने से तुम्हारी स्त्री को कष्ट हागा और यह यात मुझे मजूर नहीं है । भूत-मैं शपथ-पूर्वक कहता हूँ कि अपनी जिन्दगी का सबस नाजुक और कीमती हिस्सा आपके हवाले करता हूँ आप जैसा चाहें उसके साथ बर्ताव करें मगर मेरी एक प्रार्थना अवश्य स्वीकार करें। देवीसिह - वह क्या? भूत-यही कि इस भेद के विषय में मेरी जुबान से कुछ कहलाने का उद्योग न करें और तहकीकात करने पर जो कुछ भेद आपको मालूम हो उन भेदों को भी विना मेरी इच्छा के राजा वीरेन्द्रसिह उनके दोनों कुमार, राजा गोपालसिह तारा और कमलिनी पर प्रकट न करें। बस इससे ज्यादे कुछ न कह कर आशा करता हूँ कि मुझे अपना कनिष्ठ भ्राता समझ कर इस दुष्ट के पजे से छुटकारा दिलावेंगे। हा एक बात कहना भूल गया वह यह है कि इस दुष्ट को कैद करके आप बेफिक्र न रहियेगा इसके-मददगार लोग बड ही शैतान और पाजी है। देवी-जो कुछ तुमने कहा मुझे मजूर है मैं वादा करता हू कि जब तक तुम आज्ञा न दोगे तुम्हारे भेद अपने दिल के अन्दर रक्खूगा और उद्योग करूँगाजिसमें तुम्हारी आत्मा निरोग हो और तुम स्वतन्त्र होकर विचार कर सका-अच्छा एक काम करो। भूत-कहिये। देवी-इस दुष्ट को तो मैं अपने कब्जे में करता हूँ, जहा मुनासिब समझूगा ले जाऊगा तुम यहा से जाओ कल सवरे तालाब वाले तिलिस्मी मकान में जिसे दुश्मनों ने खराव कर डाला है मुझसे और कमलिनी से मुलाकात करो इस बीच में अगर हो सके तो श्यामसुन्दरसिह को खोज निकालो और उसे भी अपने साथ उसी जगह लेते आओ फिर जो कुछ मुनासिब हागा किया जायगा । भूत-(चौक कर ) तो क्या ये सब बातें आप कमलिनी से कहेंगे? चन्द्रकान्ता मन्तति भाग ११ ५४९