पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५८८

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- सामान था और उसकी चाल बहुत ही गम्भीर तथा निडर बहादुर्रा की सी थी। ढाल तलवार और एक खञ्जर के सिवाय और कोई हर्बा उसके पास दिखाई न देता था। इस विचित्र आदमी के आते ही ताज्जुब के साथ ही साथ डर भी समों के दिल पर छा गया और बावाजी ने घबराई आवाज में इस आदमी से पूछा आप कौन है ? आदमी-हम जिन्न है। बाबा-मै नहीं समझता कि जिन किस कहते है। आदमी-जिन्न उसका कहते है जो सब जगह पहुंच सके भूत भविष्य वर्तमान तीनों का हाल जाने काई ही उस पर असर न कर और जो किसी के मारने से न भरे। बाया-(ताज्जुब से) तो क्या ये सब गुण आप में है? जिन्न-येशक । यावा-मैं कैसे समझू जिन-आजमा के देख लो। बाबाजी तो उस जिन्न से बातें कर रहे थे मगर मायारानी और शेरअलीखों का डर के मारे कलेजा सूख रहा था। मायारानी तो औरत ही थी मगर शेर अलीखॉ बहादुर होकर भी डरके मारे कॉप रहा था इसका सबब शायद यह हो कि मुसलमान लोग जिन्न का होना वास्तविक और सच मानते हैं। जो हो भगर बाबाजी अर्थात दारोगा को जिन को बात का विश्वास नहीं हो रहा था फिर भी जिस समय उसने कहा कि आजमा के देख लो तो उस समय दारोगा भी बेचैन हो गया । और सोचने लगा कि इसे किस तरह आजमावे ? जिन्न-शायद तुम सोच रह हो कि इस जिन्न को किस तरह आजमावे क्योंकि तुम्हारे पास कोई जरिया आजमाने का नहीं है अच्छा हम खुद अपनी बात का सबूत देते हैं ला सम्हल जाओ । इतना कहकर उस जिन्न ने अपना बदन झाडा और अगडाई ली इसके बाद ही उसके तमाम बदन में से आग की चिनगारिया निकलने लगी और इतनी ज्यादा चमक पैदा हुई कि समों की आखें चौघिआने लगी। यह चिनगारिया और चमक उस फौलादी जे! और जाल में से निकल रही थी जा वह अपन बदन में पहिः हुए था। यह हाल देख कर मायारानी शरअलीखा और पाचों आदमी घवडा गये मगर दारोगा को फिर भी विश्वास न हुआ तिलिस्मी खजर की तरह उसके जर्र और जाल में भी किसी प्रकार का तिलिस्मी असर ख्याल करके उसने अपने दिल को समझा लिया और कहा। दारोगा-खेर इससे कोई मतलब नहीं आप यह कहिये कि यहा क्यों आये है ? जिन्न-(चिनगारियों और चमक को बन्द कर के ) तुम लोगों की हरमजदगी का तमाश्म देखने और तुम लोगों के कामों में विघ्न डालने के लिए। दारोगा-यह तो मै खूब जानता हू कि तुम न तो जिन्न हो और न शैतान ही बल्कि कोई धूर्त ऐयार हो यह सामान जो तुम्हारे बदन पर है तिलिस्मी है और सहजम तुम्हें कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता मगर साथ ही इसके यह भी समझ रक्खो कि मैं तिलिस्म का दारागा हू और चालीस वर्ष तक तिलिस्म का इन्तजाम करता रहा हू । जिन्न (जार से हस कर ) देईमान हरामखोर उल्लू का पट्ठा कहीं का । दारोगा-(गुस्से स) यस जुबान सम्हाल कर बातें करो। जिन-अबे जर दूर हो सामने से। चालीस वर्ष तक तिलिस्म का इन्तजाम करता रहा ऐसे ऐसे बेईमान और मालिक की जान लेने वाले भी अगर तिलिस्मी कारखाने को जानने की डींग हॉकें तो बस हो चुका। बस अब बेहतरी इसी में है कि तुम यहाँ से चले जाओ और जो किया चाहते हैं उसका ध्यान छोडो नहीं तो अच्छा न होगा। इतना कह कर उसने शेरअलीखॉ मायारानी और उन पाचों आदमियों की तरफ देखा जो इस मकान में पहिले आये दारोगा ने क्षण भर तो कुछ साचा और फिर शेरअलीखा की तरफ देख के बोला, "क्या एक अदना ऐयार मक्कारी करके हम लोगों का बना बनाया खेल चौपट कर देगा? देख क्या रह हो !मारो इस कम्बख्त को बचकर जाने न पावे। शेरअलीखा पहिले तो कुछ सहमा हुआ था मगर दारोगा की यातचीत ने उसे निडर कर दिया और जिन्न का खयाल छाड उसने भी कुछ कुछ यकीन कर लिया कि यह कोई ऐयार है। आखिर उसने म्यान से तलवार निकाल ली और उन पाचों आदमियों की तरफ जो जमीन खोदने के लिए आये थे कुछ इशारा करके जिन्न के ऊपर हमला किया। जिन्न ने देवकीनन्दन खत्री समग्र ५८०