पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५९०

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मुनासिब समझो करो।' शेर-सुनिये वह दूसरी बात तो आपने कही ही नहीं। - जिन-अब इस समय उसके कहने की काई जरूरत नहीं मालूम पड़ती है फिर देखा जायेगा। इतना कह जिन्न तो वहाँ से रवाना हो गया और इन सभों को परेशानी की हालत में छोड़ गया। मायारानी और दारोगा की इस समय अजब हालत थी। मौत की भयानक सूरत उनकी आँखों के सामने दिखाई दे रही थी, तमाम बदन सनसना रहा था सर में चक्कर आ रहे थे और पैरों में इतनी कमजोरी आ गई थी कि खडा रहना मुश्किल हो गया था यहाँ तककि दोनों जमीन पर बैठ गये और अपनी बदकिस्मती का इन्तजार करने लगे। जिन्न के चले जाने के बाद शेरअलीखाँ ने मायारानी की तरफ देखके कहा- शेर-तूने तो केवल एक ही कलक का टीका अपने माथे पर दिखाया था जिस पर मैने इसलिये विशेष ध्यान नहीं दिया कि तू मेरे दोस्त की लडकी है मगर अब तो एक ऐसी बात मालूम हुई है जिसने मुझे तडपा दिया मेरे कलेजे में दर्द पैदा कर दिया और रजोगम का पहाड मेरे ऊपर डाल दिया। अफसोस बलभदसिह मेरा लगोटिया दोस्त और लक्ष्मीदेवी मेरी मुहबोली लडकी 'हॉ राजा गोपालसिंह से मुझसे कोई ऐसा सरोकार न था सिवाय इसके यह मेरे दोस्त का दामाद था। नि सन्देह यह सब काम इसी कम्बख्त दारोगा की मदद से किया गया होगा ! मुन्दर-(खडी होकर ) बड़े अफसोस की बात है कि तुमने एक मामूली आदमी की झूठी बातों पर विश्वास कर के मेरी तरफ कुछ भी ध्यान न दिया और न अपनी तथा उसकी बर्बादी का ही कुछ ख्याल किया जिसके साथ तुमने कई काम करने के लिए कसमें खाई थी । शेर-खैर मैं थोडी देर के लिए तेरी बात मान लेता है कि वह एक मामूली आदमी और झूठा भी था मगर इस बात का पता लगाना कौन कठिन है कि इस वक्त इस किले के अन्दर बलभद्रसिह है या नहीं। मुन्दर-उस बनावटी जिन्न ने तुम्हें धोखा दिया जब उसने देखाकि वह अकेले हमलोगों को गिरफ्तार नहीं कर सकता तो यह चालबाजी खेली जिसमें तुम मेरे बाप बलभदसिह का पता लगाने के लिये जिसे मरे हुए एक जमाना बीत गया है इस किले वालों से मिल कर गिरफ्तार हो जाओ और अपने साथ हम लोगों को भी बर्बाद करो। अगर तुमको उसकी सचाई पर ऐसा ही दृढ विश्वास है तो हम लोगों को इस किले के बाहर पहुधा दो और तब जो जी में आवे करो। शेर-जब मुझे उसकी बातों पर विश्वास ही है तो तुझे यहाँ से राजी खुशी के साथ क्यों जाने दूगा जिसने हजारों आदमियों को धोखे में डालकर बर्बाद किया और मुझे प्रतापी राजा वीरेन्द्रसिह के साथ दुश्मनी करने के लिये तैयार किया? मुन्दर-तुमने मुफ्त में मेरा साथ देना स्वीकार नहीं किया तुमने मेरे बाप बलभद्रसिह की दोस्ती पर खयाल नहीं किया बल्कि तुमने उस दौलत की लालच में पड़कर मेरा साथ दिया जिसने तुम्हें अमीर ही नहीं बल्कि जिन्दगी भर के लिये लापरवाह कर दिया- मेरे बाप बलभद्रसिह के साथ तुमको मुहब्बत थी यह बात तो मै तबसमयूं जब मेरी दौलत मुझे वापस कर दो। यह भला कौन भलमनसी की बात है कि मेरी कुल जमा पूजी लेकर मुझे कगाल बना दो और अन्त में यो धोखा देकर बर्बाद करो । शेर-(हँसकर) यह किसी बडे बेवकूफ का काम है कि अपने घर में आई दौलत को फिर निकाल बाहर करे तिस पर भी ऐसे नालायक की दौलत जिसने एक नहीं बल्कि सैकड़ों खून किये हो । मुन्दर-(कोध में आकर ) तो क्या तुम अपने मन की ही करोगे? शेर-बेशक । मुन्दर-अच्छा तो मै जाती है जो तुम्हारे जी में आवे करो। देवकीनन्दन खत्री समग्र ५८२