पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६२५

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दि आपके दर्शन पाते ही कृतार्थ हो जाता है फिर मेरी क्या घात है जिसे इस सफर पर ध्यान देने की छुट्टी अपने ख्यालों के उलझन की बदौलत विल्कुल ही न मिली। वीरेन्द्र-तो मालूम होता है कि आप किसी भारी काम के लिए आये है।(हँस कर) क्या अवकी फिर दारोगा साहव को छुडा कर ले जाने का इरादा है। इन्ददेव-(शर्मिन्दगी के साथ हंस कर ) जी नहीं अब मैं उस कम्बख्त की कुछ भी मदद नहीं कर सकता जिसे गुरुभाई समझकर आपके कैदखाने से घुडाया था और आइन्दे नेकनीयती के साथ जिन्दगी बिताने की जिससे मैने कसम ले ली थी। अफसोस दिन-दिन उसकी शैतानी का पता लगता ही जाता है। वीरेन्द्र-इधर का हाल तो आपने न सुनाया होगा? इन्द्रदेव-जी भूतनाथ की जुबानी मै सब सुन चुका हूँ और इस सबब से ही हाजिर हुआ हूँ। मुझे यह देखकर बडी खुशी हुई कि लक्ष्मीदेवी को अपनायत के ढग पर आपके सामने बैठने की इज्जत मिली है और वह बहुत तरह के दुख सहने के बाद अब हर तरह से प्रसन्न और सुखी हुआ चाहती है। वीरेन्द्र-नि सन्दह मै लक्ष्मीदेवी को अपनी लड़की के समान देख रहा हूँ और उसके साथ तुमने जो कुछ नेकी की है उसका हाल भी उसी की जुबानी सुनकर बहुत प्रसन्न हूँ। इस समय मेरे दिल में तुमसे मिलने कि इच्छा हो रही थी और किसी को तुम्हारे पास भेजने के विचार में था कि तुम आ पहुँचे । बलभदसिह और भूतनाथ के मामले ने तो हम लोगों को अजब दुविधा में डाल रखा है अब कदाचित तुम्हारी जुबानी उनका खुलासा हाल मालूम हा जाय । इन्द्रदेव-निसन्देह वह एक आश्चर्य की घटना हो गई है जिसकी मुझे कुछ आशा न थी। लक्ष्मीदेवी-(इन्ददेव से ) मेरे प्यारे चाचा (क्योंकि वह इन्द्रदेव को चाचा कहके ही पुकारा करती थी) जव भूतनाथ की जुबानी आप सब हाल सुन चुके हैं तो निसन्देह मेरी तरह आपको भी इस बात का विश्वास हो गया होगा कि मेरे बदकिस्मत पिता अभी तक जीते है मगर कहीं कैद है। इन्ददेव-वेशक ऐसा ही है। वीरेन्द्र-तो क्या भूतनाथ उन्हें खोज निकालेगा? इन्द्रदेव-इसमें मुझे सन्देह है क्योंकि वह सब तरफ से लाचार छोकर मुझसे मदद माँगने गया था और उसी की जुवानी सब हाल सुन कर मैं यहाँ आया हूँ। बोलतो तुम इस काम में उसको मदद दोगे? इन्द्रदेव-अवश्य मदद दूंगा | असल तो यों है कि इस समय बलभद्रसिंह को खोज निकालने की चाह बनिस्बत . भूतनाथ के मुझको बहुत ज्यादे है और उनके जीते रहने का विश्वास भी सक्षों से ज्यादे मुझी को हुआ इसी तरह से बलभद्रसिह का पता लगाने में मेरी बुद्धि जितना काम कर सकती है,उतनी मूतनाथ की नही (ऊँची साँस लेकर) अफसोस आज के दो दिन पहले मुझे इस बात का स्वप्न में भी मुमान न था कि अपने प्यारे दोस्त बलभद्रसिंह के जीते रहने की खयर मेरे कानों तक पहुंचेगी और मुझे उनका पता लगाना होगा । वीरेन्द्र-तुम्हारे इस कहने से पाया जाता है कि बनिस्मत हम लोगों के तुमको भूतनाथ की बातों का ज्यादे यकीन हुआ है और अगर ऐसा हो है तो आज के बहुत दिन पहले तुमको या किसी और को इस बात की इतिला न देने का इलजाम भी भूतनाथ पर लगाया जायगा । इन्द्रदेव-जी नहीं, इस घटना के पहिले भूतनाथ को भी बलभदसिह के जीते रहने का विश्वास न था, हो कुछ सक सा हो गया था उस शक को यकीन के दर्ज तक पहुँचने के लिए भूतनाथ ने बहुत उद्योग किया और कही ज्योगशा समय उसका दुश्मन हो रहा है। सच तो यह है कि अगर इसके पहिले बलभद्गसिह के जीते रहने की खबर भूतनाथ देता भी तो मुझे विश्वास न होता और में उसे झूठा या दगाबाज समझता । वीरेन्द--(मुस्कुराकर) तुम्हारी बातें तो और भी उलझन पैदा करती है ! मालूम होता है कि भूतनाथ की बातों के अतिरिक्त और भी कोई सच्चा सबूत बलभद्रसिंह के जीते रहने के बारे में तुमको मिला है और तमाम वास्तव में उन दोषों का दोषी नहीं है जो कि उसकी दस्तखती चीटियों के पढ़ने से मालूम हुआ है। इन्ददेय बेशक ऐसा ही है। लक्ष्गादेवी (ताज्जुब से ) तो क्या किसी और ने भी मेरे पिता के जीते रहने की खबर आपको दी है। इन्द्रदेव-नहीं। लक्ष्मी तो आज कैसे भूतनाथ के कहने का इतना विश्वास आपको हुआ जबकि आज के पहिले उसके कहने का बमकान्ता सन्तति भाग १३ ११७