पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६२९

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यद्यपि इन्द्रदेव की बात सुन कर आश्चर्य और डर से दारोगा के रोंगटे खडे हो गय मगर फिर भी न मालूम किस भरोसे पर वह बोल उठा कि मगर ऐसा नहीं हो सकता और इस कहने ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया। इन्ददेव-(दारोगा से) मालूम होता है कि तेरा घमण्ड अभी टूटा नहीं तुझे अब भी किसी की मदद पहुँचने और अपने बचने की आशा है। दारोगा-बेशक ऐसा ही है। अब इन्द्रदेव अपने क्रोध को बर्दाश्त न कर सका और उसने कोठरी के अन्दर घुस कर दारागा के बार गाल पर ऐसी चपत लगाई कि वह तिलमिला कर जमीन पर लुढक गया क्योंकि हथकडी और वेडी के कारण उसके हाथ और पैर मजबूर हो रहे थे। इसके बाद इन्द्रदेव ने नकली वलमदसिंह का बदन नगा कर डाला और अपने कमर से चमडे का एक तस्मा खोलकर मारना और पूछना शुस किया बता तू जैपाल है या नहीं और बलमद्रसिंह कहाँ है? यद्यपि तस्मे की मार खाकर नकली बलमदसिंह यिना जल की मछली की तरह तडपन लगा मगर मुँह स सिवाय हाय के कुछ न बोला। इन्द्रदेव उसे और भी मारा चाहता था भगर इसी समय एक गम्भीर आवाज ने उसका हाथ राक दिया और वह ध्यान देकर उसे सुनने लगा आयाज यह थी- होशियार होशियार ॥ इस आवाज ने केवल इन्ददेव ही को ही बल्कि उन सभों को चौका दिया जो वहाँ मौजूद थे। इन्द्रदेव कैदखाने की कोठरी में से बाहर निकल आया आर छत की तरफ सिर उठा कर देखने लगा जिधर स वह आवाज आई थी। मशाल की रोशनी बखूबी हो रही थी जिससे छत का एक सूराख जिसमें आदमी का सर बखूबी जा सकता था साफ दिखाई पडता था। सभों को विश्वास हो गया कि वह आवाज इसी में से आई है। दो चार पल तक सभी ने राह देखा मार फिर आवाज सुनाई न दी। आखिर इन्ददेव ने पुकार कर कहा 'अभी कौन बोला था ? फिर आवाज आई- हम । इन्ददेव-तुमने क्या कहा था? आवाज-होशियार होशियार। इन्द्रदेव क्यों ? आवाज-दुश्मन आ पहुँचा और तुम लोग मुसीबत में फसा चाहते हो। इन्ददेव-तुम कौन हो? आवाज कोई तुम लोगों का हिती। इन्द्र-कैसे समझा जाय कि तुम हम लोगों के हिती हो और जो कुछ कहते हा वह सच है ? आवाज-हिती होने का सयूत इस समय देना कठिन है मगर इस बात का सबूत मिल सकता है कि हमने जो कुछ कहा है वह सच है। इन्द्र-इसका क्या सबूत है? आवाज-बस इतना ही कि इस तहखाने से निकलने के सब दर्वाजे बन्द हो गये और अब आप लोग बाहर नहीं जा सकते। अब तो सभों का कलेजा दहल उठा और आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह देखने लगे । तेजसिह देवीसिंह और भैरोसिंह की तरफ देखा और वे दोनों उसी समय इस बात का पता लगाने चले गये कि तहखाने के दर्वाजे वास्तव में बन्द हो गए या नहीं इसके बाद इन्द्रदेव ने फिर छत की तरफ मुँह करके कहा, हाँ तो क्या तुम बता सकते हो कि वे लोग कौन है जिन्होंने इस तहखाने में हम लोगों को घेरने का इरादा किया है ? आवाज-हॉ बता सकत है। इन्ददेव-अच्छा उनके नाम बताओ। आदाज-कमलिनी के तिलिरमी मकान से छूटकर भागे शिवदत्त माधवी ओर मनोरमा तथा उन्हीं तीनों की मदद से छूटा हुआ दिग्विजयसिह का लडका कल्याणसिह जो इस तिलिस्मी सहखाने का हाल उतना ही जानता है जितना उसका बाप जानता था। इन्द्रदेव-वह तो चुनार में कैद था। आमाज-हॉ कैद था मगर छुडाया गया जैसा कि मैने कहा। इन्द्रदेव-तो क्या ने लोग हम सभों का नुकसान पहुचा सकते है ? आवाज-सो तो तुम्ही लोग जानो मेने कवल तुम लोगो को होशियार कर दिया अब जिस तरह अपने का बचा सको बचाओ। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १३ ६२१