पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६३

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रनवीर-नहीं नहीं इन्होंने उसे जाने दिया सो बहुत अच्छा किया नहीं तो इन्हीं को झूठा बनाती और अपने ऊपर पूरा शक न आने देती, अब क्या वह बच कर निकल जायगी !तुम चुपचाप बैठी रहो, देखो हमलोग क्या करते हैं। कुसुम-अख्तियार आपको है, जो चाहिये कीजिये मैं किसी काम में दखल न दूंगी। रनबीर--(वीरसेन से) अब मै तुम्हारे साथ बाहर चला चाहता हू वहाँ दीवान साहब को भी बुलाकर कुछ कहूगा । वीरसेन बहुत अच्छी बात है. चलिये मगर अपनी ताकत देख लीजिये। स्नवीर-कोई हर्ज नहीं जब तक बेहोश था तभी तक वेदम था अब मैं अपना इलाज आप ही कर लूगा क्या आज मकान के अन्दर घुस कर बैठे रहने का दिन है ? वीरसेन कभी नहीं। वीरसेन के साथ रनवीरसिह बोहर आये और दीवानखाने में बैठ दीवान साहब को बुलाने का हुक्म दिया। यह बीरसेन बड़े ही जीवट का आदमी था। इसकी उम्र बीस वर्ष से ज्यादे की न होगी। यह विना माँ बाप का लडका था मॉतो इसकी जापे (सौरी) ही में मर गई थी और बाप जो यहाँ की फौज का सेनापति था इसे तीन वर्ष का छोड कर मरा था । कुसुमकुमारी के पिता ने अपने लड़के के समान इसकी परवरिश की और लिखाया पढाया ! लडकपन ही से वीरसेन का सिपाहियाना मिजाज देख इस फन की बहुत अच्छी तालीम दी गई। मरती समय कुसुमकुमारी के पिता उससे कह गए थे- 'कुसुम, तुम इसे अपने सगे भाई के समान मानना इसके बाप से मुझसे बहुत ही मुहब्बत थी। ईश्वर इच्छा से रनवीरसिह का देखते ही बीरसेन के दिल में उनकी सच्ची मुहब्बत पैदा हो गई इनके बहादुराना शान शौकत और हौसले पर वह जी जान से आशिक हा गया था । उदास मुख दीवान साहब भी आ मौजूद हुए! रनवीरसिद ने मौके मौके से दुरुस्त करके मुख्तसर में वह सब हाल. उन्हें कह सुनाया जो कालिन्दी के बारे में वीरसेन ने सुना था। वह सब हाल सुनते ही दीवान साहब की हालत विल्कुल बदल गई गम की जगह गुस्सा आ गया, कुछ सोचने के बाद क्रोध से कॉपती हुई आवाज में बीरसेन से बोले बीरसेन, मै तुम्हारा बडा अहसान मानूँगा अगर उस कमवतका सर लाकर मेरे हवाले करोगे । तीनों में देर तक बातचीत हाती रही जिसके लिखने की यहाँ कुछ ज़रूरत नहीं मालूम पडती ! सोलहवां बयान कालिन्दी को पाकर जसवन्त बहुत खुश हुआ। सब से ज्यादे खुशी तो उसे इस बात की हुई कि उसने सोचा कि कालिन्दी की सलाह और तर्कीव से इस किले को फतह करके कुसुमकुमारी और रनबीर दोनों से समझूगा । कालिन्दी को अपने खेमे में छोड पहरेवालों को समझा बुझा और महारानी के जासूस को जो गिरफ्तार किया गया था साथ ले जसवन्त घन्टा दिन चढते चढते वालेसिह के खेमे में पहुचा। उस समय खेमे के अन्दर फर्श पर अकेला बैठा हुआ बालेसिह सोच रहा था जसवन्त सलाम करके बैठ गया। .यालेसिह-आइये आइये, मैं यही सोच रहा था कि आपको बुलाऊ तो कुछ हाल चाल पूछू । जस-मै खुद हाल चाल साथ लिये हुए आ पहुचा । बालेसिह- आपके साथ यह कैदी कौन है? जसवन्त-कुसुमकुमारी का जासूस है बीरसेन के पास जाता हुआ पकड़ गया है. एक चिट्ठी तलाशीलने से मिली है. लीजिये पढ़िए। बालेसिह-(सिपाहियों की तरफ देखकर) इस कैदी को ले जाकर हिफाजत में रक्खो । (चिट्ठी पढकर) भाई जसवन्तसिह, इस चिट्ठी में जिस सुरग की राह बीरसेन को बुलाया है कहीं उस सुरग का पता लगता तो बडा ही आनन्द होता । जसवन्त-उसका पता मिलना कोई बड़ी बात नहीं, उस तरफ का एक आदमी आज मुझसे आ मिला है। बालेसिह-हो मुझे खबर लगी है कि महारानी का कोई आदमी तुम्हारे पास आया है, मगर उस पर औरत होने का शक है। जसवन्त यह कैसे मालूम हुआ ? --- 1.In