पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५२

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इतनी बड़ी लडाई और कोलाहल का चुपचाप निपटारा हाना असम्भव थाप गुलशोर मार काट और धरो-पकड़ो की आवाज न मकार के बाहर तक रावर पहुँचा दी। पहर वाले सिपाहियों में से एक सिपाही ऊपर चढ़ आया और यहाँ का हाल देख घबडा कर नीचे उतर गया और अपने साथिया को खबर की। उसी समय यह यात चारों तरफ फैल गई और थोड़ी ही देर में राजा वीरेन्द्रसिह के बहुत से सिपाही शेरअलीखा के कमरे में आ मौजूद हुए। उस समय लड़ाई खत्म हो चुकी थी और शेरअलीखा तथा भूतनाथ जिसने पुन अपने चेहरे पर नकाब डाल ली थी यहोश जमी और मरे हुए दुश्मनों को खुशी की निगाहों से देख रहे थे। शेरअलीखा ने राजा बीरेन्द्रसिह के आदमियों को देख कर कहा तहखाने की एक गुप्त राह से राजा वीरेन्द्रसिह का दुश्मन कल्याणसिह इतने आदमियों को लेकर बुरी नीयत से यहाँ आया था मगर (भूतनाथ की तरफ इशारा करके ) इस बहादुर की मदद से मेरी जान बच गई और राजा वीरेन्दसिह का भी कुछ नुकत्तान न हुआ। अब तुम लोग जहा तक जल्द हो सके,जिनमें जान है उन्ह फैदधाने भेन्याने का और मुर्दो के जलवा देने का बन्दोबस्त करो और इस कमर का भी साफ करा दो। ! इसके बाद उस कोठरी मे जिसमें स कल्याणसिह और उसके साथी लोग निकले थे,ताला बन्द करके शेरअलीखा भूतनाथ का हाथ पकड हुए कमरे के बाहर सहा में निकल आया और एक किनार खड़ा होकर बातचीत करने लगा। शेरअली-इस समय आपके आ जाने से केवल मरी जान हो नहीं बची बल्कि राजा वीरेन्द्रमिह का भी बहुत कुछ फायदा हुआ हा यह तो कहिए आप यहा कसे आ पहुचे? किसी रोकाही । भूत-मुझे कोई भी नहीं रोक सकता । राजसिंह ने मुझे एक एसी चीज दे रखी है जिसकी बदौलत में राजा बीरेन्द्रसिह की हुकूमत के अन्दर महल छोड़कर जहा आहे वहा जा सकता हूं कोई रोकने वाला नहीं। महा मेरा आना केसे हुआ इसका जवाब भी देता हूं। मुझे और इन्द्रदेव के एयारससिद को किसी तरह इस बात की खयर लग गई कि राजा शिवदत्त और कल्याणसिह कैद से छूट गये है और बहुत से लडाको को लेकर तहखाने के रास्ते से रोहतासगढ़ में पहुच फसाद मचाया चाहते है। इस खबर ने हम दोनों का हाशियार कर दिया। ततिह तो दुश्मनों के साथ भेष बदले हुए तहखाने में जा घुसा और मैं बाहर से इन्तजाम कर के लिए आया था। यह न समझियगा कि मैं सीधा आप ही के पास चला आया नहीं म हर तरह का इन्तजाम करन याद यहाँ आया । इस समय इस किले के अन्दर वाली फौज लडने के लिए तैयार और मुस्तैद है बहादुर लोग चौकन्ने और महल के सर दर्याजों पर मुस्तैद है तो गाले उगलने को लिए तैयार है और ऐयारों को जाल भी हर तरफ फैले हुए है। मगर इस बात की खबर मुझे कुछ भी नहीं है कि तहखाने के अन्दर क्या हो रहा है या क्या हुआ शेरअली-वेशक तहखाने के अन्दर दुश्मनों ने जर महरा उत्पात मचाया होगा। अफसोस आज ही के दिन राजा बीरेन्द्रसिह वगैरह को तहखाने के अन्दर जाना था। भूत-इस खबर ने तो मुझे और भी बदहवास कर रखा है। क्या करू तहटाने का कुछ भी भेद मुझे मालूम नहीं है और न उसके पेचीले तथा मकडी के जाले की तरह उलझन डालने वाले रास्तों की ही मुझे अच्छी तरह खबर है नहीं तो इस समय मै अवश्य तहखान के अन्दर पहुंचता और अपनी बहादुरी तथा ऐयारों का तमाशा दिखलाता । शेरअली-येशक ऐसा ही है। इस समय मेरा दिल भी इस खयाल से बेचन हो रहा है कि तहखाने के अन्दर जापार राजा साहब की कुछ भी मदद नहीं कर सफता। अभी थोड़ी ही देर हुई जब मेरे दिल में यह बात पैदा हुई कि जिस राह से कल्याणसिह और उसके मददगार इस कमरे में आये है उसी राह से हम लोग भी तहखाने के अन्दर जाकर काई काम करें मगर बडे ताज्जुर की बात है कि यह रास्ता बन्द हो गया। लेकिन जहा सफ मैं खयाल करता हूँ कि यह काम कल्याणसिह के किसी पक्षपाती का नहीं है। भूत-मै भी ऐसा ही समझता हू। (कुछ सोच कर ) हा एक बात और भी मेरे ध्यान में आती है। शेरअली-वह क्या? भूत-यह तो निश्चय हो ही गया कि इस हम लोग किसी तरह तहखाने के अन्दर जाकर मदद नहीं कर सकते और न इस किले में रहने में ही किसी तरह का फायदा है। शेरअली-येशक एसा ही है। भूत-तब हमको खोह के उस मुहाने पर पहुंचना चाहिये जिस राह से दुश्मन लोग इस तहखाने में आये है। ताज्जुब नहीं कि दुश्मन लोग अपना काम करको या भाग के उसी राह से तहखाने के बाहर निकलें। यदि ऐसा हुआ तो नि सन्देह हम लोग कोई अच्छा काम कर सकेंगे। देवकीनन्दन खत्री समग्र ६४४