पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६७९

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हि - गदाधरसिह जब जमानिया में आए थे तो अकेले न थे वल्कि अपने तीन चार चलों को भी साथ लाये थे अस्तु अपने उन्हीं चेलों को साथ लेकर वे उस गुप्त कमेटी का पता लगाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने मेरे पिता से कहा कि इस शहर में रघुबरसिंह नामी एक आदमी रहता है जो बडा ही शैतान रिश्वती और येईमान है में उसे फसाकर अपना काम निकालना चाहता हूँ मगर अफसोस यह है कि वह तुम्हारे गुरुभाई अर्थात तिलिस्मी दारोगा का दोस्त है और तिलिस्मी दारोगा को तुम्हारे राजा साहब बहुत मानत है खैर मुझे ता उन लोगों का कुछ खयाल नहीं है मगर तुम्हें इस बात की इत्तिला पहले से ही दिये देता हूँ। इसके जवाब में मेरे पिता ने कहा कि उस शैतान को मैं भी जानता हूँ यदि उसे फॉसने से कोई काम निकल सकता है तो निकालो और इस बात का कुछ ख्याल न करो कि वह मेरे गुरुभाई का दोस्त है। इसके बाद मेरे पिता और गदाधरसिह बहुत देर तक आपुस में सलाह करते रहे और दूसरे दिन गदाघरसिह ने लोगों के देखने में महाराज से विदा होकर अपने घर का रास्ता लिया। गदाघरसिह के जाने के बाद मेरे पिता भी उन्हीं लोगों का पता लगाने के लिए घूमने-फिरने और उद्योग करने लगे। एक दिन रात के समय मेरे पिता भेष बदल कर शहर में घूम रहे थे, अकस्मात घूमते-फिरते गगा किनारे उसी ठिकाने जा पहुंचे जहाँ (गोपालसिह की तरफ इशारा कर) इन्हें दुश्मनों ने गिरफ्तार कर लिया था। मेरे पिता ने भी एक डोंगी किनारे पर बँधी हुई देखी। उस समय उन्हें कुँअर साहब की बात याद आ गई और वे धीरे-धीरे चल कर डोंगी के पास जा खड़े हुए। उसी समय कई आदमियों ने यकायक पहुँच कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। वे लोग हाथ में तलवारें लिये और अपने चेहरों को नकाब से ढके हुए थे। यद्यपि मेरे पिता के पास भी तलवार थी और उन्होंने अपने आपको बचाने के लिए बहुत कुछ उद्योग किया बल्कि दो एक आदमियों को जख्मी मी किया मगर नतीजा कुछ भी न निकला क्योंकि दुश्मनों ने एक मोटा कपड़ा बडी फुर्ती से उनके सर और मुंह पर डालकर उन्हें हर तरह से बेकार कर दिया। मुख्तसर यह कि दुश्मनों ने उन्हें गिरफ्तार करने के बाद हाथ-पैर बांध के डोंगी में डाल दिया डोंगी खोली गई और एक तरफ को तेजो के माथ रवाना हुई। पिता के मुंह पर कपडा कसा हुआ था इसलिये वे देख नहीं सकते थे कि डोंगी किस तरफ जा रही है और दुश्मन गिनती में कितने है। दो घण्टे तक उसी तरह चले जाने के बाद वे किश्ती के नीचे उतारे गये और जबर्दस्ती एक घोडे पर चढाये गये दोनों पैर नीचे से कस के बाँध दिये गए और उसी तरह उस गुप्त कुमेटी में पहुँचाए गये जिस तरह कुँअर अर्थात गोपालसिह वहाँ पहुंचाए गय था उसी तरह मरे पिता भी खम्भे के साथ कम के वॉच दिए गये और उनके मुँह पर से वह आफत का पर्दा हटाया गया। उस समय एक भयानक दृश्य उन्हें दिखाई दिया। जैसा कि कुँअर ने उनसे ययान किया था ठीक उसी तरह का सजा सजाया कमरा और वैसे ही बहुत से नकाबपोश बडे ठाठ क साथ बैटे हुए थे। पिता ने मेरी माँ का भी एक खम्न के साथ बंधी हुई और उस कलमदान को जो मेरे नाना ने दिया था सभापति के सामने एक छोटी सी चौकी के ऊपर रक्खे देया। पिता को बडा ही आश्चर्य हुआ और अपनी स्त्री को भी अपनी तरह मजबूर देख कर मारे क्रोध के कॉपने लगे मगर कर ही क्या सकते थे साथ ही इसका उन्हें इस बात का भी निश्चय हो गया कि वह कलमदान भी कुछ इसी सभा से सम्बन्ध रखता है। समापति ने मेरे पिता की तरफ देख कर कहा 'क्यों जी इन्द्रदेव तुम तो अपने को बहुत होशियार और चालाक समझते हो हमने राजा गोपालसिह की जुवानी क्या कहला भेजा था? क्या तुम्हें नहीं कहा गया था कि तुम हम लोगों का पीछा न करो ? फिर तुमने ऐसा क्यों किया? क्या हम लोगों से कोई बात छिपी रह सकती है खैर अब बताओ तुम्हारी क्या सजा की जाय? देखो तुम्हारी स्त्री और यह कलमदान भी इरा समय हम लोगों के आधीन है बेईमान दामोदरसिह ने तो इस कलमदान को गढ़े में डालकर हम लोगों को फंसाना चाहा था मगर उसका अन्तिम वार खाली गया। इसके जवाब में मेरे पिता ने गमीर भाव से कहा नि सन्देह मै आप लोगों का पता लगा रहा था मगर बदनीयती के साथ नहीं बल्कि इस नीयन से कि मै भी आप लोगों की इस सभा में शरीक हो जाऊं। 1 हो ? बईमान सभापति ने हंसकर कहा बहुत खासे अगर ऐसा ही हम लोग धोखे में आने वाले हाते तो हम लोगों की सभा अब तक रसातल को पहुंच गई होती। क्या हम लोग नहीं जाते कि तुम हमारी सभा के जानी दुश्मन दामादरसिह ने तो हम लोगों को चौपट करने में कुछ बाकी नहीं रक्खा था मगर बड़ी खुशी की बात है कि यह कलमदान हम लोगों को मिल गया और हमारी सभा का भद छिपा रह गया सभापति की इस बात से मेरे पिता को मालूम हा गया कि उस कलमदान में निसन्देह इसी सपा का भेद यन्द है अस्तु उन्होन मुस्कुराहट के साथ सभापति की बातों का यों जवाब दिया मुझे दुश्मन समझना आप लागों की मूल है अगर मैं सभा का दुश्मन हाता तो अब तक आपलोगों को जहन्नुम म पहुँचा दिये होता। मै इस कलमदान को खोल कर इस सपा के भेदों से अच्छी तरह जानकार हो चुका हूँ और इन भेदों को एक दूसरे कागज पर लिख कर अपने एक मित्र को भी दे चुका है। मै पिता ने केवल इतना ही कहा था कि सभापति नेजितकी आवाज से जाना जाता था कि घबडा गया है पूछा क्या चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६७१