पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६८३

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मगर वहा राजा साहब के बदले दारोगा को वैठे हुए पाया। मेरी सूरत देखते ही एक दफ दारागा के चेहर कारण उड गया मगर तुरन्त ही उसने अपने को सम्हाल कर मुझसे पूछा क्यों इन्दिरा क्या हाल है तू इतन दिनों तक कहा थी? मुझे उस चाण्डाल की तरफ से कुछ भी शक न था इसलिये में उसी से पूछ बैठी कि लक्ष्मीदेवी के बदले में मैं किसी दूसरी औरत को देखती हू, इसका क्या सधय है यह सुगते ही दारोगा घबड़ा उठा और बोला नही नहीं तूने वास्तव में किसी दूसरे को देखा होगा लक्ष्मीदेवी तो उस याग वाले कमरे में है। चल भै तुझे उसके पास पहुचा आऊ ! मैने खुश होकर कहा कि चलो पहुचा दा दारापा झट उठ खडा हुआ और मुझे साथ लेकर भीतर ही भीतर बाग पाले कमर की तरफ बढा। वह रास्ता विल्कुल एकान्त था। थाडी ही दूर जाकर दारागा ने एक कपड़ा मेरे मुह पर डाल दिया। आह उसमें किसी प्रकार की महक आ रही थी जिसके सबर दो तीन दफे से ज्यादे मैं सास न ल सकी और बेहोश हो गई। फिर मुझे कुछ भी खबर न रही कि दुनिया के परदे पर क्या हुआ और क्या हो रहा है। गापाल--इदिरा की कथा के सम्बन्ध में गदाधरसह (भूतनाथ) का हाल छूटा जाता है क्योंकि इन्दिरा उस विषय में कुछ भी नहीं जानती इसलिये चयान नहीं कर सकती मगर बिना उसका हाल जाने किस्से का सिलसिला ठीक न होगा इसलिय में स्वयम गदाधरसिंह का हाल बीच ही में बयान कर देना उचित समझता हूँ। इन्द्र-हा हा जखर कहिय कलमदान का हाल जाने बिना आनन्द नहीं मिलता। गोपाल-उस गुप्त सना में यकायक पहुच कर कलमदान को लूटने वाला वही गदाधरसिह था। उसने फलयमा को सोल डाला और उसके अन्दर जो कुछ कागजात थ उन्हें अच्छी तरह पढा। उसमें एक ता वसीयतनामा था जा दामोदरसिह ने इन्दिरा के नाम लिखा था और उसमें अपनो कुल जायदाद का मालिक इन्दिरा को ही बनाया था। इसके अतिरिक्त और सब कागज उसी गुप्त कुमेटी से ओर सव सभासदों के नाम लिखे हुए थे साथ ही इसके एक कागज दामादरसिह न अपनी तरफ स उस कुमटी के विषय में लिख कर रख दिया था जिसक पढ़े से मालूम हुआ कि दामोदरसिंह उस सभा के मत्री ये दामोदरसिह क खयाल से वह सभा अच्छ कामा क लिए स्थापित हुई थो आर उन आदमियों का सजा देना उसका काम था जिन्हें मेर गिता दोष सावित हान पर भी प्रापदण्डन देकर कपल अपने राज्य से निकाल दिया करत थे और एसा करने से रियाआ में नाराजी फैलती जाता था। कुछ दिनों के बाद उस सभा में बेइमानी शुरू हो गई और उसके भभासद लाग उसके जरिये स रुपया पैदा कारन लगे तभी दामादरसिह को भी इस सभा स घृणा हो गई परन्तु नियमानुसार वर उस सभा का छाड नहीं सकते थे और छोड दने पर उसी सभा द्वारा प्राण जान का डर था। एक दिन दारोगा ने सभा में प्रस्ताव किया कि बडे महाराज का मगर डालना चाहिए। इस प्रस्ताव का दामोदरसिह ने जची तरह यण्डन किया मगर दारोगा की धान सबसे भारी समझी जाती थी इसलिए दामोदरसिह की किसी भी न सुनी और बड़े महाराज को मारना निश्चय हो गया। ऐसा करने को और सह का फायदा क्योकि ये दोनों आदमी लक्ष्मीदेवी के बदलमालासिद की लडकी मुन्दर के साथभरी शादी कराया चाहते थ और बडे महाराज के रहले यह बात बिल्कुल असम्भव थी। आखिर दामोदरसिंह ने अपनी जान का कुछ ख्याल न किया ओर सभा सम्बन्धी मुख्य कागज और सभा के सभासदों ( मेम्बरों ) का नाम तथा अपना वसीयतनामा लिख कर कलगदान में बन्द किया और कलगदान अपनी लड़की के हवाले कर दिया जैसा कि आप इन्दिरा की गुवानी सुन चुके है। जब गदाधरसिह का राभा का कुल हाल जितने आदमियों को सना मार चुकी थी उनके नाम और सभा के मेम्बरों के नाम मालूम हो गये तय उसे लालच ने घेरा ओर उसो सभासदों से रुपये वसूल करन का इरादा किया। कलमदान में जितन कागज थे उसन सभों की नकल ले ली और असल कागज तथा कलमदान कहीं छिपा कर रख आया। इसके बाद गदाधरसिह दारोगा के पास गया और उससे एकान्त में मुलाकात करके बोला कि तुम्हारी गुप्त सना का हाल अब खुला चाहता है और तुम लोग जहन्नुम में पहुंचा चाहते हो वह दामोदरसिह का कलमदा तुम्हारी सभा से लूट ले जाने वाला मैं ही हू और भने उस कलमदान के अन्दर का बिल्कुल हाल जान लिया। अब वह कलमदान मै तुम्हारे राजा साहब के हाथ में देने के लिए तैयार हू। अगर तुम्हें विश्वास न हो तो इन कागजों को देखा जो मै अपने हाथ से नकल करके तुम्हें दिखाने के लिए ले आया हूँ। इतना कह कर गदाधरसिह ने कागजदारागा के सामने फेंक दिये। दारोगा के तो होश उड गये और मौत भयानक रूप से उसकी आयों के सामन नाचने लगी। उसन यहा कि किसी तरह गदाधरसिह का खपा (मार) डाले मगर यह यात असम्भव थी क्योंकि गदाधरसिह बहुत ही काइया और हर तरह से होशियार तथा चौकन्ना था अतएव सिवाय उसे चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६७७