पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९१

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राजा बीरेन्द्रसिह की इच्छानुसार कैदियों को भी साथ लिए हुए सब कोई तहखाने के बाहर हुए। कैदियों को कैदखाने भेजा औरतें महल में भेज दी गई और उनकी हिफाजत का विशेष प्रबन्ध किया गया क्योंकि अब राजा बीरेन्द्रसिह को इस बात का विश्वास न रहा कि रोहतासगढ किले के अन्दर और महल में दुश्मनों के आने का खटका नहीं है क्योंकि तहखाने के रास्तों का हाल दिन-दिन खुलता ही जाता था। इन्द्रदेव को राजा बीरेन्दसिह ने अपने कमरे के बगल में डेरा दिया और बडी इज्जत के साथ रक्खा। आज की बची हुई रात सोच-विचार और तरद्द ही में बीली। शेरअलीखा भूतनाथ और कल्याणसिह का हाल भी सभों को मालूम हुआ और यह भी मालूम हुआ कि कल्याणसिह और उसके कई आदमी कैदखाने में बन्द है। दूसरे दिन सवेरे राजा बीरेन्द्रसिह ने कैदखाने में से कल्याणसिह को अपने पास बुलाया तो मालूम हुआ कि रात ही 7 को होश में आने के बाद कल्याणसिह ने जमीन पर सिर पटक कर अपनी जान दे दी। बीरेन्द्रसिह नेउसकी अवस्था पर शोक प्रकट किया और उसकी लाश की इज्जत के साथ जलाकर हडिडया गगाजी में डलवा देने का हुक्म दिया और यही हुक्म शिवदत्त की लाश के लिए भी दिया। पहर दिन चठन के बाद जब राजा वीरन्दसिह स्नान और सध्या पूजा से छुट्टी पा' कुछ जल खाकर निश्चिन्त हुए तो महल में अपन आन की इत्तिला करवाई और उसके बाद इन्द्रदेव को साथ लिए हुए महल में जाकर एक सजे हुए सुन्दर कमरे में बैठे। उनकी इच्छानुसार किशारी कामिनी कमला कमलिनी लाडिली और लक्ष्मीदेवी अदब के साथ सामने बैठ गई। किशारी का चेहरा उसके बाप के गम में उदास हो रहा था राजा बीरेन्द्रसिह ने उसे समझाया और दिलासा दिया। इसी समय तारासिह ने राजा साहब के पास पहुच कर तेजसिह भूतनाथ, सर्यसिह और बीरूसिह के आने की इत्तिला की और मर्जी होने पर ये लोग राजा वीरेन्द्रसिह के सामने हाजिर हुए तथा सलाम करने के बाद हुक्म पाकर जमीन पर बैठ गये। इन लोगों के आने का समों को इन्तजार था शिवदत्त और कल्याणसिह की कार्रवाई तथा उनके काम में विघ्न पड़ने का हाल सभी कोई सुना चाहते थे। वीरेन्द-( भूतनाथ स) सुना था कि शेरअलीखा को तुम अपने साथ ले गए थे? भूत-जी हा, शेरअलीखा को मैं अपने साथ ले गया था और साथ लेना भी आया, तेजसिह की आज्ञा से वे अपने डेरे पर चले गए जहा रहते थे। वीरेन्द-(तेजसिह से) कृष्णाजिन्न तुमको अपने साथ क्यों ले गए थे? तेज-कुछ काम था जो मैं आपसे किसी दूसरे समय कहूँगा आप पहिले सऍसिह और भूतनाथ का हाल सुन वीरेन्द्र-अच्छी बात है आज के मामले में नि सन्देह सऍसिह ने बडी मदद पहुँचाई और भूतनाथ की होशियारी ने भी दुश्मनों का बहुत कुछ नुकसान किया। तेज-जिस तरफ से दुश्मन लोग इस तहखाने के अन्दर आये थे भूतनाथ और शेरअलीखा उसी मुहाने पर जाकर बैठ गए और भाग कर जाते हुए दुश्मनों को खूब ही मारा, यहा तक कि एक भी जीता बच कर न जा सका। इन्द्र-( सर्पूसिह से ) अच्छा तुम अपना हाल कह जाओ। इन्द्रदेव की आज्ञा पाकर सर्पूसिंह ने अपना और भूतनाथ का हाल बयान किया। मनोरमा और धभूसिह का हाल सुनकर सब कोई हसने लगे, इसके बाद भूतनाथ ने मनोरमा को अपने लडके नानक के साथ घर भेजकर शेरअलीखा के पास आभा कल्याणसिह और उसके आदमियों का मुकाबिला करना, फिर शेरअलीखा कोअपनेसाथ लेकर सुरग के मुहाने पर जाकर बैठना और दुश्मनों का सत्यानाश करना इत्यादि बयान किया। इसके बाद तेजसिंह ने एक चीठी राजा वीरेन्दसिह के हाथ में दी और कहा "कृष्णाजिन्न ने यह चीठी आपके लिए दी है।' राजा बीरेन्द्रसिह ने यह चीठी ले ली और मन में पढ जाने के बाद इन्द्रदेव के हाथ में देकर कहा- आप इसे जोर से पढ जाइये जिसमें सब कोई सुन लें ! इन्द्रदेव ने चीठी पढ कर सभों को सुनाई। उसका मतलब यह था - इत्तिफाक से आज इस तहखाने में पहुच गया और किशोरी की जान बच गई। सर्पूसिह और भूतनाथ ने नि सन्देह बडी मदद की सच तो यों है कि आज उन्हीं के बदौलत दुश्मनों ने नीचा देखा, मगर भूतनाथ ने एक काम बड़ी बेवकूफी का किया अर्थात् मनोरमा को नानक के हाथ में दे दिया और उसे घर ले जाकर असली बलभदसिह का पता लगाने के लिए कहा। यह भूतनाथ की भूल है कि वह नानक को किसी काम के लायक समझता है यद्यपि नानक के हाथ से आज तक कोई काम ऐसा न निकला जिसकी तारीफ की जाय, वह निरा बेवकूफ और गदहा है, कोई नाजुक काम उसके हाथ में देना भी भारी भूल है। मनोरमा को उसके हाथ में देकर भूतनाथ ने बुरा किया। नानक कमीने को मालिक के लीजिए। EN चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६८३