पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१५

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दि ty . अन्ना-कुछ साचकर) जैसी चीठी दारोगा तुमसे लिखाया चाहता है वह कक्ल इस याम्य ही नहीं कि यदि राजा गोपालसिह दायी है तो लाकनिन्दा स उनका बच्चे बल्कि वह चीठी बनिरक्त उनके दारोगा के काम की ज्यादे हागी अगर पर स्वय दापी है तो। मैं-ठीक है मगर ताज्जुब की बात है कि जो राजा साहब मुझे अपनी लड़की से बढकर मानत थे व ही मेरी जान के ग्राहकवा जाय। अन्ना-कौन ठिकाना कदाचित ऐसा ही हो। मै-अच्छा तो आप क्या करना चाहिये? अन्ना-(कुछ सोधकर) चीठी तो कभी न लिखनी चाहिये चाहे राजा गोपालसिह दोषी हो या दारागा दावा ही इसमें काई सदह नहीं कि चीठी लिख देने के बाद तू मार डाली जायगी। अन्य की बात सुनकर तो लगी और समझ गई कि अब मेरी जान नहीं बचती और ताज्जुब नहीं कि दारोगा के मतलब की चीठी लिख दन के कारण मरी मा इस दुनिया से उठा दी गई हो। योडी घर तक तो अन्ना ने रोने में मेरा साथ दिशा लेकिन इसके बाद उसन सपने को सम्हाला और साचने लगी अब क्या कन्ना चाहिये। कुछ देर क बाद अन्नान मुझसे कहा कि 'येटी मुझे कुछ आशा हो रही है कि हम लागों को इस कैदखाने से निकल जाने का रास्ता मिल जायगा। मै पहिल कह चुकी है और अब नी कहती हू कि रात का (कोठरी की तर. इशारा करके ) उराबाटर में सर पर से गठरी फा देने की तरह धमाके की आवाज सुनकर मैं जाग उठी थी और जब उस कोठरी मंग, तो वास्तव में एक गरी पर निगाद पड़ी। सब मैं सोचती हूं तो विश्वास होता है कि उस काटरी में काई रत्ता दर्वाजा जरूर है जिसे सोनकर वाटर वाला उस कोठरी में आ सके या उसम स बाहर जा सके। इसके अतिरिक्त इस कोठरी में भी तरतबन्दी को दीगर है जिरार कहीं न कहीं दर्याजा दान का शक हर एप एसे आदमी को हो सकता है जिस पर हमारी तरह मुसीयत आइ हो अस्तु आज का दिन तो किसी तरह काट ले रात को मैं दांचा ढूँढन का उद्योग करूंगी। अन्ना को यातास मुझे भी कुछ बाढस हुई। थोड़ी देर बाद कामरे का दर्याजा खुला और कई तरह की बीज लिय हुए तीन आदमी कमरे के अन्दर आ पहुंचे। एक के हाथ में पानी का भग घडा लोटा और गिलास था दूसरा कपड की गठरी लिय हुए था तीसरे के हाथ में खाने की चीजें थीं। तीनों ने सब चीजे कमर में रख दी और पहिल की रक्खी हुई चीजें और चिरागदान वगैरह उठा ले गये और जात समय कह गय कि तुम लोग स्नान कर के खाओ-पीओ, तुम्हारे मतलब की सब चीजें मौजूद है। ऐसी मुसीबत में खाना-पीना किसे सूझता है परन्तु अन्ना के समझा-बुझाने से जान बचाने के लिये सब कुछ करना पडा। तमाम दिन बीत गया मध्या होने पर फिर हमारे कमरे के अन्दर खान-पीने का सामान पहुचाया गया और चिराग भी जलाया गया मगर रात को हम दोनों ने कुछ भी न खाया। कैदखाने स निकल भागने की धुन में हम लोगों का नींद विल्कुल न आई। शायद आधी रात बीती होगी जब अन्ना ने उठकर कमरे का दर्वाजा अन्दर से बन्द कर लिया जिस राह से वे लोग आते थे और इसके बाद मुझे उठन और अपने साथ उस कोठरी के अन्दर चलने के लिये कहा जिसमें से कपड़े की गठरी और मेरी मा के हाथ की लिखी हुई चीठी मिली थी। मैं उठ खडी हुई और अन्ना के पीछे-पीछे चली! अन्ना ने चिराग हाथ में उठा लिया और धीरेधीरे कदम रखनी हुई कोठरी के अन्दर गई। मैं पहिले बयान कर चुकी है कि उसके अन्दर तीन कोठरिया थीं एक में पायखाना बना हुआ था और दो कोठरिया खाली थीं। उन दोनो कोठरियों के चारो तरफ की दीवारे भी तस्तों की थी। अन्ना हाथ में चिराग लिए एक कोडरी के अन्दर गई और उन लकडी वाली दीवारों को गौर से देखने लगी। मालूम होता था कि दीवार कुछ पुराने जमान की बनी हुई है क्योंकि लकडी के तख्ते खराव हो गए थे और कई तस्तों को घुन ने ऐसा वरवाद कर दिया था कि एक कमजोर लात खाकर भी उनका बच रहना कठिन जान पड़ता था। यह सब कुछ था मगर जैसा कि देखने में वह खराव और कमजोर मानून हाती थी येमी वास्तव म न थी क्योंकि दीवार की लकडी पाच या छ अगुल से कम मोटीन होगी जिसमें से सिर्फ अगुल डेढ अगुल के लगभग घुनी हुई थी। अन्ना ने चाहा कि लात मारकर एक दो तख्तों को तोड़ डाले मगर ऐसा न कर सकी। हम दानों आदमी बड़े गौर से चारो तरफ की दीवार को दख रहे थे कि यकायक एक छोटे से कपड़े पर अन्ना की निगाह पड़ी जो तकडी के दो तख्तों के बीच में फसा हुआ था। वह वास्तव में एक छोटा रुमाल था जिसका आधा हिस्सा तो दीवार के उस पार था और आधा हिस्सा हम लोगों की तरफ था। उस कपडे को अच्छी तरह देखफर अन्ना ने मुझे कहा 'चटी देय यहा एक दर्वाजा अवश्य है। (हाथ से निशान बताकर ) यह चारो तरफ की दरार दर्जि का साफ बता रही है। कोई आदमी इस तरफ आया है मगर लौटकर जातो दफे जब उसने दर्वाजा बन्द किया तो उसका ग्रनकान्ता सन्तति भाग १६ ७०७