पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७६३

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छठवां बयान 1 दिन दोपहर से कुछ ज्यादे ढल चुका था,जब जमानिया में दीवान साहब को रामदीन के आने की इत्तिला मिली। दीवान साहब न रामदीन को अपने पास बुलाया और उसने दीवान साहब के सामने पहुच कर गोपालसिह की चीठी उनक हाथ में दी तथा जब वे चीठी पढ चुके तो अगूठी भी दिखाई। दीवान साहब ने नकली रामदीन से कहा महाराज का हुक्म हम लोगों के सर आखों पर तुम अगूठी को पहिन लो और हम लागों को अपने हुक्म का पावन्द समझो !सवारी और सवारों का इन्तजाम दोघडी के अन्दर हो जायगा। तुम यहा रहोग या सवारों के साथ जाओगे?" रामदीन ने कहा 'मै सवारों क साथ ही राजा साहब के पास जाऊगा मगर इस समय चार आदमियों को खास बाग के अन्दर पहुधा कर उनके खाने पीने का इन्तजाम कर देना है जैसा कि हमारे राजा साहब का हुक्म है।' दीवान-(ताज्जुब स) खास याग के अन्दर? रामदीन-जी हा दीवान-और वे चारों आदमी है कहा पर? रामदीन-उन्हें में बाहर छोड आया हूँ ! दीवान-(कुछ सोच कर) खैर जो राजा साहब ने हुक्म दिया हो या जो तुम्हारे जी में आवे करो अब हम लोगों को तो रोकने-टोकने का अधिकार ही नहीं रहा। रामदीन सलाम करके उठ खडा हुआ और अपने चारों साथियों का लेकर तिलिस्मी बाग के अन्दर चला गया जहा इस समय विल्कुल ही सन्नाटा था। अगूठी के खयाल से उसे किसी ने भी नहीं रोका और मायारानी बेखटके अपने ठिकाने पहुच गई तथा लुकने छिपने और दरवाजों को बन्द करने लगी। अब हम रामदीन के साथ राजा गोपालसिह की तरफ रवाना होते है और देखते है कि बनी बनाई बात किस तरह चौपट हाती है। सध्या होने से पहिले खाने पीने का सामान चार रथ और दो सौ सवारों को लेकर नकली रामदीन पिपलिया घाटी की तरफ रवाना हुआ और दूसरे दिन दोपहर के याद वहा पहुचा। आज ही सध्या होने के पहिले राजा गोपालसिह यहा पहुचने वाले थे यह बात रामदीन की जुबानी सभों को मालूम हो चुकी थी और सभी आदमी उनके आने का इन्तजार कर रहे थे। सध्या हो गई चिराम जल गया, पहर रात गई दो पहर रात गुजरी आखिर तमाम रात बीत गई मगर राजा गोपालसिह न आये इसलिए नकली रामदीन के ताज्जुब का तो कहना ही क्या ? सनके दिल में तरह तरह की बातें पैदा होन लगी, मगर इसके अतिरिक्त जितने फौजी सवार तथा लोग साथ आये थे उन सभों को बहुत ताज्जुब हुआ और वे घडी-घडी राजा साहब के न आने का सबब उससे पूछने लगे, मगर रामदीन क्या जवाब देता? उसे इन बातों की खबर ही क्या थी ! दूसरे दिन सध्या के समय राजा गोपालसिह घोडे पर सवार यहा आ पहुचे, मगरअकले थे साईस तक साथ में न था सिपाहियाना ठाठ से बेशकीमत कपड़ों के ऊपर तिलिस्मी कवच,खजर और ढाल तलवार लगाये बहुत ही सुन्दर तथा राआवदार मालूम होते थे। सभों ने झुक कर सलाम किया और नकली रामदीन ने आगे बढ कर घोड़े की लगाम थाम ली तथा उसकी गर्दन पर दो चार थपकी देकर कहा 'आश्चर्य है कि आपके आने में पूरे आठ पहर की देर हो गई और फिर भी अकेले ही हैं। यह सुन कर राजा साहब ने कई पल तक रामदीन का मुहं देखा और तब कहा हा किशोरी,कामिनी और लक्ष्मीदेवी वगैरह ने हमारे साथ आने से इन्कार किया इसलिए हम अकेले ही आये है और हम्गरे जाने में रात भर की देर' है। इस समय हम किसी काम को जाते है सवेरे यहा आयेगे तब तक तुम सभों को इस घाटी में टिके रहना होगा। रामदीन-घोड़ों का दाना तो सिर्फ एक दिन का आया था, और सवार लोग भी गोपाल-खैर क्या हर्ज है घोडे चराई पर गुजारा कर लेंगे और सवार लोग रात भर फाका करगे। इतनाकह कर राजा गोपालसिह ने घोडे की बाग मोडी और जिधर से आये थे उसी तरफ तेजी के साथ रवाना हो गर्य। रामदीन चुपचाप ज्यों का त्यों खड़ा उनकी तरफ देखता ही रह गया और जब वे नजरों की ओट हो गये तब उसने चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७