पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७६५

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दि 1 क्योंकि राजा साहब का ऐसा ही हुक्म है (हस कर ) क्योंकि राजा साहब ने सुना है कि तुम्हारा इरादा जमानिया पहुचने के पहिले ही भाग जाने का है। लीला-( अपने उछलते कलेज को राक कर ) यह उनसे किसने कहा? भैरो-मैंने लीला-और तुम्हें किसने खबर दी? भैरो-तुम्हारे दिल ने। लीला-मानो मेरे दिल के आप भेदिया ठहरे । भैरो बेशक एसा ही है। अगर तुम्हें ऐयारी का ढग पूरा पूरा मालूम होता तब तुम्हारा दिल मजबूत होता मगर तुम्हारी ऐयारी अभी बिल्कुल कच्ची है। अहा एक यात तुमसे कहना तो मैं भूल ही गया जिस रात मायारानी राजा वीरन्दसिह के लश्कर से भाग गई थी उसी रोज सर्वरा होने के पहिले ही यह खबर राजा गोपालसिह को मालूम हो गई। लीला-(कापती हुई और लडखडाती आवाज में) यह तो मुझे भी मालूम है, मगर तुम्हारे इस कहने का मतलब क्या है सो समझ में नहीं आता। भैरो मतलब यही है कि तुम अपनी सूरत साफ करो और मेरे साथ राजा साहब के पास चलो क्योंकि असली रामदीन के सामने तुम्हारा रामदीन बन रहना मुनासिब नहीं है। लीला-असली रामदीन अब कहा जल्दी में लीला इतना कह तो गई मगर फिर उसने जुबान बन्द कर ली। भैरोसिह की चलती फिरती बातों ने उसका कलजा हिला दिया और वह समझ गई कि अब मेरा नसीय मुझे धोखा दिया चाहता है मेरा भेद खुल गया और अब मेरे कैद होने में ज्यादे देर नहीं है। अब उसके दिल ने भी कहा कि वास्तव में कल ही राजा साहब को तुझ पर शक हो गया था अगर तू कल ही भाग जाती तो अच्छा था, मगर अब तेरा भागना भी कठिन है। लीला ने कुछ और सोच-विचार के भैरासिह से कहा तुम जरा निराले में चल कर मेरी एक बात सुन लो बेहतर होगा कि हम दोनों आदमी घोडा बढा कर जरा आगे निकल चलें में जो बात कहा चाहती हूँ उसे सुन कर तुम बहुत खुश होवोगे। भैरो-न ता मैं तुम्हारी कुछ सुन सकता हू और न तुम्हें छोड़ सकता है, हा एक बात तुम्हें और भी कहे देता है जिसे सुन कर तुम्हारे दिल का खुटका निकल जायगा वह यह है कि जब राजा साहब ने दीवान साहब के नाम की चीठी देकर असली रामदीन को जमानिया भेजा था तो जुबानी कह दिया था कि इस चीठी में हमने दो सौ सवार भेजने के लिए लिखा है मगर तुम केवल वीस सवार अपने साथ लाना और जिस दिन हमने मागा है उसके एक दिन बाद आना } कहो, अब तो बहुत सी बातें तुम्हारी समझ में आ गई होगी? इतना कह भैरोसिह ने लीला का हाथ पकड लिया और राजा साहब की तरफ चलने के लिए कहा मगर लीला को उधर जाना मजूर न था इसलिए उसने अपनी घोडी को न रोका और झटका देकर अपना हाथ छुडाना चाहा मगर ऐसा न कर सकी भैरोसिह न उसे खैच कर जमीन पर गिरा दिया। उस समय भैरोसिह को मालूम हुआ कि यह मर्द नहीं औरत है। भैरोसिह की यह कार्रवाई देखकर सभों के कान खडे हो गये। सवारों ने घोडा रोक दिया ।राजा साहब की सवारी (रथ) खडी हो गई कई सवार अपने घोड़े पर से कूद कर भैरोंसिह के पास चले आये और इन्द्रदेव भी रथ पर से उतर कर उसके पास जा पहुचे। आज्ञानुसार लीला की मुश्के वाध ली गई और पानी मगा कर उसका चेहरा साफ किया गया और तय लीला को सभों ने पहिचान लिया। लीला राजा गोपालसिह के पास लाई गई और भैरोसिह ने सब हाल कहा जिसे सुन राजा साहय हस पडे और बोले अब इन्द्रदेव जैसा कहें वैसा करो। इन्द्रदेव की आज्ञानुसार लीला रस्सियों से जकड कर एक खाली रथ पर बैठा दी गई और कई सवार उसकी निगरानी पर मुस्तैद किये गये। अव सवारी तेजी के साथ जमानिया की तरफ रवाना हुई। दोपहर के बाद जब सवारी जमानिया के पास पहुची तब इन्द्रदेव ने राजा साहब से धीरे धीरे कुछ कहा और रथ से उतर कर पैदल ही मैदान का रास्ता लिया और देखते देखतेन मालूम कहाँ चले गये। सवारी खास बाग के दाजे पर पहुची और राजा साहब रथ से उतर कर भैरोसिह को साथ लिए हुए वाग के अन्दर चले गये। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७५७