पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७८२

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नियमानुसार सभों के साथ मैं भी चेहाश हो गया। उस समय से इस समय तक का हाल मुझे कुछ भी मालूम नहीं है, मैं बिल्कुल नहीं जानता कि उसके बाद क्या हुआ और मैं किस अवस्था में होकर क्यों इस तरह अपने को यहा पाता हू? पन्द्रहवां बयान - भैरोसिह की बातें सुन कर दोनी कुमार देर तक तरह-तरह की बातें सोचते रहे और तब उन्होंने अपना किस्सा भैरासिह से कह सुनाया। बुढिया वाली बात सुन कर भैरोसिह हस पडा और बोला, मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है कि वह बुढिया कौन और कहा है यदि अब मै उसे पाऊ तो जरूर उसकी बदमाशी का मजा उसे चखाऊ। मगर अफसोस ता यह है कि मेरा ऐयारी का बटुआ मेरे पास नहीं है, जिसमें बड़ी-बडीअनमाल चीजें थीं। हाय वे तिलिस्मी फूल भी उसी बटुए में थे जिनके देने से मेरा बाप भी मुझे टल्ली बताया चाहता था मगर महाराज ने दिलदा दिया। इस समय बटुए का न हाना मेरे लिए बड़ा दुखदाई है क्योंकि आप कह रहे है कि उन लड़कों ने एक तरह की बुकनी उड़ा कर हमें बेहोश कर दिया । कहिए अब मै क्योंकर अपने दिल का हौसला निकाल सकता हू इन्द्र-नि सन्देह उस बटुए का जाना बहुत ही बुरा हुआ? वास्तव में उसमें बड़ी अनूटी चीजें थीं मगर इस समय उनके लिए अफसोस करना फजूल है हा इस समय में दो चीजों से तुम्हारी मदद कर सकता है। भैरो-वह क्या? इन्द्र-एक तो यह दवा हम दोनों के पास मौजुद है जिसके खाने से बेहाशी असर नहीं करती और वह मै तुम्हें खिला सकता हू, दूसरे हम लोगों के पास दो-दो हर्वे मौजुद है बल्कि यदि तुम चाहो ता तिलिस्मी खजर भी दे सकता है। भैरो-जी नहीं तिलिस्मी खजर मैन लूगा क्याकि आपके पास उसका रहना तब तक बहुत ही जरुरी है जब तक आप तिलिस्म ताडने का काम समाप्त न कर ले। मुझे बस मामूली तलवार दे दीजिये मैं अपना काम उसी से चला लुगा और वह दवा खिला कर मुझे आज्ञा दीजिए कि मै उस बुढिया के पास से अपना बटुआ निकालन का उद्योग करु। दोनों कुमारों के पास तिलिस्मी खजर के अतिरिक्त एक-एक तलवार भी थी। इन्द्रजीतसिह ने अपनी तलवार भैरोसिह को दी और डिविया में से निकाल कर थोडी सी दवा भी खिलाने के बाद कहा "मैं तुमसे कह चुका है कि जब हम दोनों भाई इस बाग में पहुंचे तो चूहेदानी के पल्ले की तरह यह दर्वाजा बन्द हो गया जिस राह से हम दोनों आये थे और उस दज पर लिखा हुआ था कि यह तिलिस्म टूटने लायक नहीं है। भैरो-हा आप कह चुके हैं। आनन्द-(इन्द्रजीत से) भैया मुझे तो उस लिखावट पर विश्वास नहीं होता। इन्द्रजील-यही मै भी कहने को था क्योंकि रिक्तग्रन्धा की बातों से तिलिस्म का यह हिस्सा भी टूटने योग्य जान पड़ता है ( भैरोसिह से ) इसी से मैं कहता हूं कि इस बाग में जरा समझ बूझ के धूमना । भैरो-खैर इस समय तो मै आपके साथ चलता हू चलिए बाहर निकलिए। आनन्द-(भैरो से ) तुम्हें याद है कि तुम ऊपर से उतर कर इस कमरे में किस राह से आए थे? भैरो-मुझे कुछ भी याद नहीं। इतना कह कर भैरोसिह उठ खड़ा हुआ और दोनों कुमार भी उठ कर कमरे के बाहर निकलने के लिए तैयार हो गये। सोलहवां बयान तीनों आदमी कमरे के बाहर निकल कर सहन में आय उस समय कुमार को मालूम हुआ था कि यह कमरा बाग के पूरय तरफ वाली इमारत के सब से निचले हिस्स में बना हुआ है और इस कमरे के ऊपर और भी दो मजिल की इमारत है मगर वे दोनो मजिले बहुत छोटी थीं और उनके साथ ही दोनों तरफ इमारतों का सिलसिला घरावर चल गया था। दिन चढ आया भा और नित्यकर्म न किए जाने के कारण कुमारों की तबीयत कुछ भारी हो रही थी। जिस तरह इस तिलिस्म में पहिले दूसरे वाग के अन्दर नहर की बदौलत पानी की कमी न थी उसी तरह इस बाग में भी नहर का पानी छोटी नालियों के जरिये चारों आर घूमता हुआ आता और दस-पाच मेवोंके पेड़ भी थे जिनमें बहुतायत के साथ मेवे लगे हुए थे। दोनों कुमार और भैरोसिह टहलते हुए बाग के बीचो-बीच से उसी कदम्ब के पेड़तले आए जिसके नीचे पहिले-पहल देवकीनन्दन खत्री समग्र