पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७८५

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art का इन्तजार कर रहा हो। थाडी दर में चार-पाँच औरतें मिल कर किसी लटकते बोझ को लिए हुए उसी आदमी के पास से निकल गई जिसके हाथ में चिराग था और उन्हीं के पीछ-पीछे वह आदमी भी चिराग लिए चला गया। दर्वाजा बन्द नहा हुआ मगर उसके अन्दर अधकार हो गया ( भैरोंसिह ने यह समझ कर कि शायद हम और भी कुछ तमाशा देखें दोनों कुमारों का चैतन्य कर दिया और जो कुछ देखा था बयान किया। हम कह आय है कि इस बारहदरी की पिछली दीवार के नीचे बीचोबीच में अथात चबूतरे के सामन एक छोटा जा था जिसक अन्दर भैरोसिह न जाने का इरादा किया था। इस समय यकायक उसी दाजे के अन्दर चिराग की रोशनी दख कर भैरोसिह और दोनों कुमार चौक पड़े और उठकर दरवाज के सामन जा झाककर देखने लगे। मालूम हुआ कि इस छाटे से दाजे के अन्दर एक बहुत बडा कमरा है जिसके दोनों तरफ की लोहे वाली शहतीर (घडी धरन)वर्ड बड चौकूटे खम्भों के ऊपर है और उसकी छत लदाव की बनी हुई है। उस कमरे के दोनों तरफ के खम्भों के बाद भी एक दालान है और दालान की दीवारों में कई बडे दाजे बने है जिनमें कुछ खुले और कुछ बन्द है। दोनों कुमार और भैरासिह ने दखा कि उसी कमर के मध्य में एक आदमी जिसके चहरे पर नकाच पडी थी हाथ में चिराग लिए हुए खडा छत की तरफ देख रहा है। कुछ दर तक देखन वाद वह आदमी एक खम्भे के सहारे चिराग रख कर पीछ की तरफ लौट गया। भैरोसिह और दोनों कुमार आड में खडे होकर सब तमाशा दख रह थे और जब वह आदमी चिराग रख कर हट गया तब भी यह सोचकर खडे ही रहे कि जब चिराग रख कर गया है ता पुन आवे ही गा । उस नकाबपोश को चिराग रख कर गये हुए दस बारह पल से ज्याद न बीते होंगे कि दूसरी तरफ वाले दर्वाजों के अन्दर से कोई दूसरा आदमी निकल कर तेजी के साथ इस कमरे के मध्य में आ पहुचा ओर हाथ की हवा देकर उस चिराग को युझा दिया जिस पहिला आदमी एक खम्भ के सहारे रखकर चला गया था और इसके बाद कमरे में अधकार हो जान के कारण कुछ मालूम हुआ कि दूसरा आदमी चिराग बुझा कर चला गया या उसी जगह कहीं आडदकर छिप यह दूसरा आदमी भी जिसन कमरे में आकर चिराग बुझा दिया था अपने चहरे पर स्याह नकाय डाले हुए था केवल नकाव ही नहीं उसका तमाम बदन भी स्याह कपड़े से ढका हुआ था और कद में छोटा रहने के कारण इसका पता नहीं लग सकता था कि वह मर्द है या औरत। थाडी ही देर बाद दोनों कुमार और भैरोसिह के कान में किसी के बोलने की आवाज सुनाई दी जैसे किसी ने उस अन्धेरे कमरे में आकर ताज्जुब के साथ कहा हो कि है । चिराग कौन युझा गया ? इसके जवाब में किसी ने कहा अपने का सम्हाले रहो और जल्दी से हट जाओ काई दुश्मन न आ पहुचा हो । इसके बाद चौथाई घड़ी तक न तो किसी तरह की आवाज ही सुनाई दी और न काई दिखाई ही पडा मगर दोनो कुमार और भैरोसिह अपनी जगह से न हिले। आधी घडी के बाद वह आदमी पुन हाथ में चिराग लिए आया जो पहले खम्भे के सहारे चिराग रखकर चला गया था। इस आदमी का बदन गठीला और फुर्तीला मालूम पड़ता था इसका पायजामा अगा पटूका मुडासा और नकाब ढीले कपड़े का बना हुआ था। अब की दफे वह बायें हाथ में चिराग और दाहिने हाथ में नगी तलवार लिए था शायद उसे पहले दुश्मन का ख्याल था जिसने चिराग बुझा दिया था इसलिए उसने चिराग जमीन पर रख दिया ओर तलवार लिए चारों तरफ घूम-घूम कर किसी को ढूढने लगा। वह आदमी जिसने चिराग बुझा दिया था एक खम्भे की आडम छिया हुआ था । जब ढीले कपडे वाला उस खम्भे के पास पहुचा तो उस आदमी पर निगाह पडी उसी समय वह नकाबपोश भी सम्हल गया और तलवार खैच कर सामने खड़ा हो गया। पीले कपडे वाल ने तलवार वाला हाथ ऊचा करके पूछा सच बता तू कौन है? इसके जवाब में स्याह नकाबपोश ने यह कहते हुए उस पर तलवार का वार किया कि मरा नाम इसी तलवार की धार पर लिखा हुआ है। पीले कपडे वाले ने घडी चालाकी से दुश्मन का वार बचाकर अपना वार किया और इसक बाद दोनों में अच्छी तरह लडाई होने लगी। दोनों कुमार और भैरोसिह लडाई के बड ही शौकीन थे इसलिए बड़ी चाह से ध्यान देकर उन दोनों की लड़ाई देखन लगे। नि सन्देह दोनों नकावपोश लडने में होशियार और बहादुर थे एक दूसरे क वार को बड़ी खूबी से बचाकर अपना वार करता था जिसे देख इन्दजीतसिह ने आनन्दसिह से कहा दोनों अच्छे हैं चिराग की रोशनी एक ही तरफ चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १७ ७७७