पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७८६

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पडती है दूसरी तरफ सिवाय तलवार की चमक के कोई सहारा वार बचाने के लिए नहीं हो सकता ऐसे समय में इस खूपी के साथ लडना मामूली काम नहीं है । इसी बीच यकायक स्याह नकाबपोश ने अपने हाथ की तलवार जमीन पर फेंक दी और एक खम्भे की आड़ घूमता हुआ खजर खींच और उसका कब्जा दबा कर बोला, 'अब तू अपने को किसी तरह नहीं बचा सकता। नि सन्देह वह तिलिस्मी खजर था जिसकी चमक से उस कमरे में दिन की तरह उजाला हो गया। मगर पीले नकाबपोश ने भी उसका जवाब तिलिस्मी खजर ही से दिया क्योंकि उसके पास भी तिलिस्मी खजर मौजूद था। तिलिस्मी खजरों से लड़ाई अभी पूरी तौर से होने भी न पाई थी कि एक तरफ से आवाज आई, पील मकरन्द ले जाने। न पावे | अब मुझे मालूम हो गया कि भैरोसिह के तिलिस्मी खजर और बटुए का चोर यही है देखों इसकी कमर से वह बटुआ लटक रहा है अगर तुम इस बटुए के मालिक बन जाओगे तो फिर इस दुनिया में तुम्हारा मुकाबला करने वाला कोई भी न रहेगा क्योंकि यह तुम्हारे ही ऐसे ऐयारों के पास रहने योग्य है। यह एक ऐसी बात थी जिसने सबसे ज्यादे भैरोसिह को चौका ही नहीं दिया बल्कि बेचैन कर दिया। उसने कुअर इन्द्रजीतसिह से कहा बस आप कृपा करके अपना तिलिस्मी खजर मुझे दीजिये मैं स्वय उसके पास जाकर अपनी चीज ले लूगा, क्योंकि यहा पर तिलिस्मी खजर के बिना काम न चलेगा और यह मौका भी हाथ से गवा देने लायक नहीं इन्द्र-हाँ धेशक ऐसा ही है, अच्छा चलो मैं तुम्हारे साथ चलता है । आनन्द-और मैं? इन्द्रजीत-तुम इसी जगह खड़े रहो, दोनों भाइयों का एक साथ वहा चलना ठीक नहीं अकेला में ही उन दोनों के लिये काफी हू। देखने लगे। . आनन्द-फिर भैरोसिह जा कर क्या करेंगे? तिलिस्मी खजर की चमक में इनकी आख खुली नहीं रह सकती। इन्द्रजीत-सो तो ठीक है। भैरो-अजी आप इस समय ज्यादे सोच विचार न कीजिए । आप अपना खजर मुझे दीजिये बस मै निपट लूगा। इन्द्रजीतसिह ने खजर जमीन पर रख दिया और उसके जोड़ की अगूठी भैरोसिह की उगली में पहिरा देने बाद खजर उठा लेने के लिए कहा। भैरोसिह ने तिलिस्मी खजर उठा लिया और उस छोटे दर्वाजे के अन्दर जाकर बोला मैं भैरोसिह स्वय आ पहुचा ! भैरोसिह के अन्दर जाते ही दर्वाजा आप से आप बन्द हो गया और दोनों कुमार ताज्जुम से एक दूसरे की तरफ

  • सत्रहवा भाग समाप्त

चन्द्रकान्ता सन्तति अट्ठारहवां भाग पहिला बयान कह सकते हैं कि तारासिह के हाथ में नानक का मुकदमा दे ही दिया गया। राजा वीरेन्द्रसिह ने तारासिह के इस काम पर मुकर्रर किया था कि वह नानक के घर जाय और उसकी चाल चलन तथा उसके घर के सच्चे-सच्चे हाल की तहकीकात करके लौट आवे मगर इसके पहिले कि तारासिह नानक की चालचलन और उसकी नीयत का हाल जाने, उसने नानक के घर ही की तहकीकात शुरू कर दी और उसकी स्त्री का भेद जानने के लिए उद्योग किया जर नानक की स्त्री सहज ही में तारासिह के पास आ गई तो उसे उसकी बदचलनी काविश्वास हो गया और उसने चाहा कि किसी तरह नानक की स्त्री को टाल दे और इसके बाद नानक की नीयत का अन्दाजा करे मगर उसकी कार्रवाई में उस समय विज पड़ गया जब नानक की स्त्री तारासिह के सामने जा बैठी और उसी समय बाहर से किसी के चिल्लाने की आवाज आई। हम कह चुके है कि नानक के यहा एक मजदूरनी थी। वह नानक के काम को चाहे न हो मगर उसकी स्त्री के लिए उपयुक्त पात्र थी और उसके द्वारा नानक की स्त्री का सब काम चलता था। मगर इस तारासिह वाले मामले में नानक की स्त्री श्यामा की बातचीत हनुमान छोकरे की मारफत हुई थी इसलिए मीच वाले मुनाफे की रकम में उस मजदूरनी के हाथ झझी कौड़ी भी न लगी थी जिसका उसे बहुत रज हुआ और वह दोस्तों के बदले में दुश्मनी करने पर उतारू हो गई। इसलिए कि श्यामारानी को उससे किसी तरह का पर्दा तो था ही नहीं, उसने मजदूरनी से अपना भेद तो सब कह दिया । देवकीनन्दन खत्री समग्र ७७८