पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८

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Site 1 कहानियाँ प्रायः छोटी-छोटी रियासतों के आपसी कलह की हैं । खत्री जी प्राय: अंग्रेजी राज के चित्रणों से बचते हैं । उनकी कथा अंग्रेजों की नगर सभ्यता से दूर जंगलों-पहाड़ों में रहती है । खत्री जी के कथा साहित्य में ये राजनीतिक संघर्ष प्रगट रूप से भले न हों। किंतु जो संघर्ष और हलचल हैं उनमें इन्हें देखा जाना चाहिए । ऐयारी और तिलस्मी कथा की गति वाधित होने का एक कारण इनमें चित्रित सामंती जीवन शैली भी हैं । औद्योगिक क्रांति के विकास की आवश्यकताओं और स्थितियों से · इनका सासंजस्य नहीं बैठ सका। ये वीते दिनों की कहानियाँ हो गयीं 1 आगे की कथाओं में किसान, मजदूर एवं मध्यम वर्ग ने स्थान पाया। इनके अतिरिक्त सामाजिक बुराइयाँ भी स्थान पाने लगी। विधवा, अछूत, वेश्या, राष्ट्रीय आन्दोलन आदि की समस्यायें ज्वलंत बन गयीं। इनकी कथाओं ने सामाजिक राष्ट्रीय समस्याओं को अपना क्षेत्र बनाकर नयी क्रांति की शुरूआत की। नयी क्रांति की जमीन तैयार की। अब कथा साहित्य मनोरंजन के संसार से आगे बढ़कर परिवर्तन का वाहक बना। इतना अवश्य है कि इनकी मनोदशा खत्री जी के कथा साहित्य में भी देखी जा सकती है । तिलिस्मी कथाएँ घटनामूलक होती हैं। हर क्षण कोई न कोई घटना घटती रहती है। ऐसी घटनाएँ जिनका पूर्वानुमान नहीं होता । ये घटनाएँ छोटी-छोटी होती हैं । बंधन-मुक्तिवाली होती हैं। बाबू देवकीनंदन खत्री कहते हैं-'तिलस्म वही शख्स तैयार करता है जिसके पास बहुत मालखजाना हो और जिसका कोई वारिस न हो। तब वह अच्छे अच्छे ज्योतिषियों नज़मियों से दरयाफ्त करता है कि उसके या उसके भाइयों के खानदान में भी कभी कोई प्रतापी और लायक पैदा होगा या नहीं, आखिर ज्योतिषी और नजमी इस बात का पता देते हैं कि इतने दिनों के बाद आप के खानदान में एक लड़का प्रतापी होगा, बल्कि उसकी जन्मपत्री भी लिखकर तैयार कर देते हैं । उसी के नाम से खजाना और अच्छी-अच्छी कीमती चीजों को रखकर उस पर तिलिस्मी बाँधते हैं* किंतु संतति के. अनेक भाग, भतनाथ में उनका और विस्तार खत्री जी की तिलस्म संबधी मान्यता को वाधित करते हैं। चंद्रकांता तक यह मान्यता ठीक थी। आगे तो संतानों की भीड़ लगी है। इसीलिये खत्री जी ने एक 'आजकल:....'वाली परिभाषा दी । तिलिस्मी मूलतः राजपरिवारों से संबद्ध होता है । इसमें राजपरिवारों के प्रेम, द्वन्द्व, संघर्ष आदि खुलकर काम करते हैं । केन्द्रीयसत्ता अंग्रेजों के पास रहने के कारण सीमित क्षेत्र के सामंत या राजपरिवार आपसी प्रतिद्वन्द्विता में संलग्न रहते हैं। इसमें गुप्त धन की खोज होती है। किंतु धन जैसा ही महत्वपूर्ण है राजकुमारों और राजकुमारियों का प्रेम । इस प्रेम में खलनायक-नायिकाओं की भूमिका भी रहती है । तिलिस्म को बनाने, तोड़ने, पता बताने, खोलने आदि में ज्योतिषियों, तांत्रिकों आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पुरुष पात्र तिलस्म को तोड़ते हैं। स्त्रियाँ उन्हें खोलती हैं। तिलस्म की संपत्ति के रक्षक या तो पैत्रिक संपति मानकर रक्षा करते हैं या इसके लिये नियुक्त कर्मचारी होते हैं । ये गुप्त स्थान में मंन्यामी का वेश बनाए रहते हैं। उपयुक्त अधिकारी का इंतजार करते हैं। दारोगा और मायारानी ऐसे ही पात्र हैं । तिलस्म है तोकिला.। किंतु यह मानव वाशिंदों से हीन संसार है। ऐसे किलों की चचा पुराणों, प्राचीन कहानियों आदि में मिलती है। सीता की खोजमें भटकनेवाले वानर एक ऐसे ही सोहनुमा किला में चले गये थे। जहाँ सवका प्रवेश वर्जित है। इसकी रखवाली एक तपस्विनी करती थी । यहाँ मनुष्य को छोड़कर सारी सुविधाएँ प्राप्त थीं। इससे निकलने का रास्ता नहीं है। वानरों ने आँख मूंदी। बाहर आ गए। मूंदह नयन विबर तजि जाहू । वही हुआ। वानरों ने आंखें बन्द कीं । नयन {दि पुनि देखहिं बीरा । ठाढ़े सकल सिंधु के तीरा । चंद्रकान्ता. भाग ४. बयान २० । - - !