पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८११

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माया-मैन इसे कैद में रखकर हद्द स ज्यादे तकलीफ दो तब तो इसने तिलिस्म का कुछ हाल कहा ही नहीं अब 'क्या कहे यस इसे मार डालना ही मुनासिब है। इसके जवाब में उसी बारामद पर से जिस पर से वह आदमी लुढक कर नीचे आया था किसी ने कहा, तिलिस्म का हाल जानन का शोक अभी तक लगा ही हुआ है ? इस बात की खबर नहीं कि अब तुम लोगों के मरन में केवल सात घटे की देर रह गई है। सभों ने चाककर उधर की तरफ दया और पुन एक आदमी का उसी बरामदे में टहलता हुआ पाया मगर अबकी दफ इस आदमी का चेहरा नकाव से खाली था और एक जलती हुई मोमबत्ती बायें हाथ में मौजूद थी जिससे उसका रोबीला चेहरा साफ-साफ दिखाई दे रहा था। मायारानी और उसके साथियों को यह देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि यह दूसरा आदमी भी राजा गोपालसिह मालूम होता था बल्कि बनिस्बत पहिले आदमी के ठीक राजा गोपालसिह मालूम होता था। इस कैफियत ने मायारानी का कलेजा हिला दिया और वह डर स कॉपती हुई उसको इस तरह देखने लगी जैसे काई व्याध जगल में अकस्मात् आ पड हुए शेर की तरफ देखता हो। सभी को अपनी तरफ ताज्जुब के माथ देखत देख उस आदमी ने पुन कहा 'न तो वह राजा गोपालसिह है और न उसकी जुवानी तिलिस्म का कोई भेद ही तुम लोगों को मालूम हो सकता है। अर ओ कम्बख्त मायारानी तू तोवर्षों मेरे साथ रह चुकी है क्या तू भी मुझ नहीं पहिचानती राजा गोपालसिह मैं हूँ या वह है? तू उसके नाटे कद को नहीं देखता ? अगर वह गोपालसिह होता तो क्या उस तिलिस्मी तमचे की एक गोली खाकर गिर पडता। भला मुझ पर भी एक नहीं पचास गोली चला दख क्या असर होता हे।" नये गोपालसिइ की इस बात ने मायारानी की रही सही ताकत भी हवा कर दी और अब उसे अपने सामने मौत की सूरत दिखाई देन लगी । यद्यपि उसने इस गोपालसिह पर भी तिलिस्मी तभचा चलान का इरादा किया था मगर अब उसके हाथों में इतनी ताकत नरही कि तमचे में गोली डाल कर चला सके उसी की तरह उसके साथी भी घबडा कर इस नये राजा गोपालसिह की तरफ देखने और अपने मन में सोचने लगे 'व्यर्थ इस मायारानी के फेर में पड कर यहाँ आये।' इस नये गापालसिह ने पुन पुकार कर मायारानी से कहा हा हा सोचती क्या है, तिलस्मी तमचा चला और तमाशा देख या कह तो भै स्वय तेरे पास चला आऊँ !और भीमसेन वगैरह तुम लोग क्यों इसके फेर में पड कर अपनी-अपनी जान दे रहे हो क्या तुम समझ रहे हौ कि यह तिलिस्म की रानी हो जाएगी और तुम्हें अपना हिरसेदार बना लेगी कदापि नहीं, अब इसकी जान किसी तरह नहीं बच सकती और मैं अभी नीचे आकर तुम सभों का काम तमाम करता हूँ। हाँ अगर तुम लोग अपनी जान बचाना चाहते हो तो मै तुम्हें कहता हूँ कि मायारानी का खयाल न करक उसे इसी जगह छोड दो और तुम लोग उत सफद सगमर्मर के चबूतरे पर भाग कर चले जाओ खबरदार दूसरी जगह मत खडे होना और मेरे नीचे आने के पहिले ही यहाँ से हट कर उस चबूतर पर चले जाना नहीं तो पछताओगे ! इतना कह कर नए गोपालसिह ने मोमबत्ती नीचे फेंकदी और पीछे की तरफ हट कर उन लागों की नजरों से गायब हो गए। अब मीमसेन और माधवी वगैरह को निश्चये हा गया कि मायारानी क किए कुछ न होगा और इसका साथ करके हम लोगों ने व्यर्थ ही अपन को आफत में ला फंसाया। इस तिलिस्मी बाग तथा राजा गोपालसिह की माया का पता नहीं लगता अन्तु अव मायारानी का साथ देना और गोपालसिह की बात न मानना नि सन्देह अपना गला अपने हाथ से काटना है। इतना सोचते-सोचते ही वे लोग गोपालसिह के कहे मुतायिक उस सगमर्मर के चबूतरे पर चले गए जो उनसे थाडी ही दूर पर उनके पीछे की तरफ पडता था । होना ता ऐसा हो चाहिए था कि गोपालसिह की बातों से डर कर मायारानी भी उन लोगों के साथ ही साथ उसी सगमर्मर वाल चबूतर पर चली जाती मगर न मालूम क्या सोच कर उसने ऐसा न किया और वहां से भाग कर उन फौजी सिपाहियों की भीड़ में जा छिपी जो इस बाग में खडे हुए इनकी बातें सुन नहीं सकत थे मगर ताज्जुब के साथ सब कुछ देख जुर रहे थे। वह सगमर्मर का चबूतरा जिस पर भीमसेन वगैरह चले गए थे उनके जाने के थोड़ी ही देर बाद इस तेजी के साथ जमोन के अन्दर धंस गया कि उन लोगों को कूद कर भागने की माहलत न मिली। कुछ देर बाद उन सभों को न मालूम कहाँ उलट कर वह चबूतरा फिर ऊपर चला अग्या और ज्यों का त्यों अपने स्थान पर जम गया । इस समय केवल सुबह की सुफेदी ही ने चारो तरफ अपना दखल नहीं जमा लिया था बल्फि आसमान पर पूरब तरफ सूर्य की लालिमा भी कुछ दूर तक फैल चुकी थी इसलिए उस चबूतरे पर जाने वाले भीमसेन और माधवी वगैरह का जो हाल हुआ वह माधवी के फोजी सिपाहियों ने भी बयूबी देख लिया। अपने मालिक और उनके साथियों की यह दशा देख फोजी सिपाही घबडा गए और चाहन लगे कि यदि कहो रास्ता मिल जाय तो हम लोग भी यहा स भाग कर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १: ८०३