पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८४७

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Com - चाहता हू, तुम भी अपने दोनों कैदी नकली बलभद्रसिह और नागर को लेकर काशिराज से मिलते हुए चुनार जाओ और काशिराज ने हम पर कृपा करके हमारे जिन दुश्मनों को कैद कर रक्खा है अर्थात् बेगम जमाली और नौरतन वगैरह को भी अपने साथ लेते जाओ। अस्तु इस समय उन्हीं के लिखे अनुसार में सेवा में उपस्थित हुआ हूँ सुरेन्द्र-( उत्कण्ठा के साथ ) तो क्या तुम उन लोगों को भी अपने साथ लेते आए हो? इन्द्रदेव-जी हाँ और उन सभों को बाहर सरकारी सिपाहियों की सुपुर्दगी में छोड आया हूं। बेगम वगैरह का हाल तो काशिराज ने महाराज को लिखा होगा? सुरेन्द्र-हॉ काशिराज ने गोपालसिह को लिखा था कि 'तुम्हारे ऐयार भूतनाथ के निशान देने के मुताबिक बलभद्रसिह के दुश्मन गिरफ्तार कर लिए गए हैं और मनोरमा का मकान भी जब्त कर लिया गया है। गोपालसिह ने यह समाचार मुझको लिखा था । इन्द्रदेव-ठीक है तो अब उन कैदियों के लिए भी उचित प्रबन्ध कर देना चाहिए जिन्हें मै अपने साथ लाया हू। सुरेन्द्र-उसका प्रबन्ध बद्रीनाथ कर चुके होंगे क्योंकि कैदियों का इन्तजाम उन्हीं के सुपुर्द है। बद्री-(इन्द्रदेव से ) उनके लिए आप तरदुद न करें क्योंकि वे लोग अपने उचित स्थान पर पहुंचा दिए गए। पन्नालाल-(सुरेन्द्रसिह स- भूतनाथ और बलभद्रसिह की तरफ बताकर ) मगर इन दोनों महाशयों में से जिनकी खातिरदारी मेरे सुपुर्द की गई यह बलभद्रसिह जी कहत हैं कि मैं महाराज का अन्न न खाऊँगा बल्कि अपने आराम की कोई चीज भी यहाँ से न लूगा क्योंकि अब यह बात मालूम हो चुकी है कि राजा गोपालसिह महाराज के पोते हैं और सुरेन्द्र- ठीक है ठीक है वास्तव में ऐसा ही होना चाहिए। (बलभदसिह से) मगर आप बहुत ही मुसीबत और कैद से, छूट कर आए है इसलिए आपके पास रुपये पैसे की जरूर कभी होगी फिर आप क्योंकर अपने लिए हर तरह का सामान जुटा सकेंगे? बलभद्र-मैं भी इसी फिक्र में डूबा हुआ था मगर ईश्वर ने बड़ी कृपा की जो मेरे प्यारे मित्र इन्द्रदेव को यहाँ भेज दिया। जव मुझे किसी तरह की तकलीफ न होगी जो कुछ जरूरत पडेगी मैं इनसे ले लूगा, फिर इसके बाद मुझे यह भी आशा है कि दुष्टों का मुकदमा हो जाने पर बेगम के कब्जे से निकली हुई मेरी दौलत भी मुझे मिल जायगी। इन्द-(हाथ जोड कर महाराज सुरेन्द्रसिह से) मरे मित्र बलभद्रसिह जो कुछ कह रहे हैं, ठीक है और आशा है कि महाराज भी इस बात को स्वीकार कर लेंगे। सुरेन्द्र-(पन्नालाल से) खैर ऐसा ही किया जाय इन्द्रदेव का डेरा बलभद्रसिह के साथ ही करा दो जिसमें ये दोनों मित्र प्रसन्नता से आपस में बातें करते रहें। इन्ददेव-(हाथ जोडकर ) में भी यही अर्ज किया चाहता था आज न मालूम किस तरह. कितने दिनों के बाद. ईश्वर ने मित्र दर्शन का सुख दिया है, सो भी ऐसे मित्र का दर्शन जिसके मिलने की आशा कर ही नहीं सकते थे और इसके लिए हम लोग भूतनाथ के बडे ही कृतज्ञ हैं। भूतनाथ-वह सब महाराज के चरणों का प्रताप है जिनके सदैव दर्शन के लोभ से महाराज का कुछ न बिगाड़ने पर भी मैं अपने को दोषी बनाए और भगवती की कृपा पर भरोसा किए बैठा हुआ हूँ। इन्द्रदेव-(महाराज की तरफ देख के ) वास्तव में ऐसा ही है। अभी तक जो कुछ मालूम हुआ है उससे तो यही जाना जाता है कि मूतनाथ ने महाराज के यहाँ एक दफे चोरी करने के अतिरिक्त और कोई काम ऐसा नहीं किया जिससे महाराज या महाराज के सम्बन्धियों को दु ख हो भूतनाथ-(लज्जा से नीची गर्दन करके ) और सो भी बदनीयती के साथ नहीं । इन्द्रदेव-आगे चलकर और कोई बात जानी जाय तो मै नहीं कह सकता, मगर भूत-ईश्वर न करे ऐसा हो। बीरेन्द्र-भूतनाथ ने अगर हम लोगों का कोई कसूर किया भी हो तो अब हम लोग उस पर ध्यान नहीं दे सकते क्योंकि रोहतासगढ के तहखाने में मै भूतनाथ का कसूर माफ कर चुका हूँ। भूत-ईश्वर आपका सहायक रहे ! इन्द्रदेव-लेकिन अगर भूतनाथ ने किसी ऐसे के साथ बुरा बर्ताव किया हो जिससे आज के पहिले महाराज का कोई सम्बन्ध न था तो उस पर भी महाराज को विशेष ध्यान न देना चाहिये। तेज-जी हाँ मगर इसमें कोई शक नहीं कि भूतनाथ की जीवनी अनेक अद्भुत अनूठी और दुखद घटनाओं से भरी हुई है। मैं समझता हूँ कि भूतनाथ ने लोगों के दिल पर अपना भयानक प्रभाव तो पैदा किया परन्तु अपने कामों की . चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९