पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८६७

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ari के लिए महाराज स यह सन्दूकडी तुम्हें दिलाया चाहते हैं । मैं भी यह सोचकर प्रसन्न था और चाहता था कि मुकदमा फैसला होने के पहिले ही इनाम मागने का मुझे कोई मौका मिल जाय, मगर इस तस्वीर ने जिसे मैं अभी देख चुका हूँ मेरी हिम्मत तोड दी और पुन अपनी जिन्दगी से नाउम्मीद हो गया हू । देवी-तो उस सन्दूकडी से और इस तस्वीर से क्या सम्बन्ध ? भूत-वह सन्दूकडी अपने पेट में जिस भेद को छिपाये हुए है उसी भेद को यह तस्वीर प्रकट करती है। इसके अतिरिक्त मैं सोचे हुए था कि अब उसका कोई दावेदार नहीं है मगर अब मालूम हो गया कि उसका दावेदार भी आ पहुचा और उसी ने यह तस्वीर नकाबपोश के आगे पेश की। देवी-क्या तुम यह नहीं बता सकते कि उस सन्दूकडी और इस तस्वीर में क्या भेद है ?. भूत-(लम्बी साँस लेकर) अब मैं आपसे कोई बातछिपा न रक्खूगा मगर इतना समझ रखिये कि उस भेद को सुनकर आप अपने ऊपर एक तरवुद का बोझा डाल लेंगे। देवी-खैर जो कुछ होगा सहना ही पड़ेगा और तुम्हारी मदद भी करनी ही पडेगी मगर सबक पहिले मैं यह जानना चाहता हूँ कि उस भेद से हमारे महाराज का भी कुछ सम्बन्ध है या नहीं 1 भूत-अगर कुछ सम्बन्ध है भी तो केवल इतना ही कि उस भेद को सुनकर वे मुझ पर घृणा करेंगे नहीं तो महाराज से और उस भेद से कोई सम्बन्ध नहीं। मैने महाराज के विपक्ष में कोई बुरा काम नहीं किया जो कुछ बुरा किया है वह सिर्फ अपने और अपने दुश्मनों के साथ । देवी-जब महाराज से उस भेद का कोई सम्बन्ध ही नहीं है तो मैं हर तरह से तुम्हारी मदद कर सकता हू, अच्छा तो यह बताओ कि वह कौन सा भेद है? भूत-इस समय न पूछिये क्योंकि हम लोग विचित्र स्थान में कैद है ताज्जुब नहीं हम दोनों की बातें कोई किसी जगह छिप कर सुनता हो हॉ मैदान में निकल चलने पर ज़रूर कहूगा । देवी-अच्छा यह तो बताओ कि उस आदमी की सूरत भी तुमने अच्छी तरह देख ली या नहीं जिसने यह तस्वीर नकाबपोश के आगे पेश की थी। भूत-हा उसकी सूरत मैन बखूबी देखी थी मैं उसे खूब पहिचानता है, क्योंकि दुनिया में मेरा सबसे बडा दुश्मन यही है और उस अपनी ऐयारी का घमंड भी है। देवी--अगर यह तुम्हारे कब्जे में आ जाए तो? भूत-जरूरउसे फसाने बल्कि मार डालने की फिक्र करुगा मैं तो उसकी तरफ से बिल्कुल बेफिक्र हो गया था मुझ इस बात की रत्ती भर उम्मीद न थी कि वह जीता है। देवी-खैर कोई चिन्ता नहीं जैसा होगा देखा जायगा तुम अभी से हताश क्यों हो रहे हो । भूत-अगर वह सन्दूकडी मुझे मिल जाती और उसके खुलने की नौबत न आती तो देवी-वह सन्दूकडी मैं तुम्हें दिला दूंगा और उसे किसी के सामने खुलने भी न दूंगा उसकी तरफ से तुम बेफिक्र रहो। भूत-(मुहब्बत से देवीसिह का पजा पकड के ) अगर एसा करो तो क्या बात है । देवी-ऐसा ही होगा। खैर अब यह सोचना चाहिए कि इस समय हम लोगों का क्या करना उचित है मै समझता हू कि सुबह होने के साथ ही हम लोग इस हद के बाहर पहुचा दिये जायेंगे। भूत-मरा ख्याल भी यही है लेकिन अगर ऐसा हुआ तो आपकी और मेरी स्त्री के बारे में किसी बात का पता न लगेगा। देवीसिह और भूतनाथ इस विषय पर बहुत दर तक बात चीत और राय पक्की करते रहे और यहा तक कि सवेरा हो गया कई नकाबपोश उस कमरे को खोलकर भूतनाथ तथा देवीसिह के पास पहुचे और उन्हें बाहर चलने के लिए कहा। तीसरा बयान महाराज से जुदा होकर देवीसिह और बलभद्रसिह से विदा होकर भूतनाथ ये दोनों ही नकाबपोशों का पता लगाने के लिए चले गये। बचा हुआ दिन और तमाम रात तो किसी ने इन दोनों की खोज न की मंगर दूसरे दिन सवेरा होने के साथ ही इन दोनों की नलपी हुई और थोड़ी ही देर में जवाब मिला कि उन दोनों का पता नहीं है कि कहा गये और अभी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० ८५९