पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९०५

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Jara करने का बन्दोबस्त करन लगा। खैर इस फेर में दस-बारह दिन बीत गए और इस बीच में मुलाकात करने का कोई अच्छा मौका न मिला। पता लगाने से मालूम हुआ कि वह बीमार है और घर से बाहर नहीं निकलता ! यह बात मुझे मायाप्रसाद ने कही थी मगर मैने मायाप्रसाद से इन्दिरा के बारे में कुछ भी नहीं कहा और न राजा साहब (गोपालसिह की तरफ इशारा करके) ही मे कुछ कहा क्योकि दारोगा को बेदाग छोड दने के लिए मेरे दोस्त इन्द्रदेव न पहिले ही से तै कर लिया था अब र राजा साहब से मैं कुछ कहता तोदारोगा जरूर सजा पा जाता है लेकिन मैं यह नहीं कह सकता कि मायाप्रसाद और दारोगा को इस बात का पता क्योंकर लग गया कि इन्दिरा फलानी जगह है खैर मुख्तसर यह है कि एक दिन स्वयम् मायाप्रसाद न मुझसे कहा कि गदाधरसिह मै तुम्हें इसकी इत्तिला देता हूँ कि सर्दू नि सन्देह दारोगा की कैद में है मगर वीमार है अगर तुम किसी तरह दारोगा के मकान में चले जाओ तो उस जरूर अपनी आँखों से देख सकोगे। मेरी इस बात में तुम किसी तरह शक न करो मैं बहुत पक्की बात तुमसे कह रहा हूँ । मायाप्रसाद की बात सुन कर मुझे एक दफे जोश चढ़ आया और मैं दारोगा के मकान में जाने के लिए तैयार हो गया। मैं क्या जानता था कि मायाप्रसाद दारोगा से मिला हुआ है। खैर मै अपनी हिफाजत के लिए कई तरह का बन्दोबस्त करके आधी रात के समय कमन्द के जरिये दारोगा के लम्बे-चौडऔर शैतान की ऑत की सूरत वाले मकान में घुस गया और चोरों की तरह टोह लगाता हुआ उस कमरे में जा पहुँचा जिसमें दारोगा एक गही के ऊपर उदास बैठा हुआ कुछ सोच रहा था। उस समय उसके बदन पर कई जगह पट्टी बँधी हुई थी जिससे वह चुटीला मालूम पडता था और उसके सर का भी यही हाल था। दारोगा मुझे देखते ही चौक उठा और ऑखे-चार होने के साथ ही मैने उससे कहा, 'दारोगा साहब, मैं आपके मकान में कैद होने के लिए नहीं आया हूँ मल्कि सर्दू को देखने के लिए आया हूँ जिसके इस मकान में होने का पता मुझे लग चुका है। अस्तु इस समय मुझसे किस तरह की बुराई करने की उम्मीद न रखिए क्योंकि मैं अगर आधे घटे के अन्दर इस मकान के बाहर होकर अपने साथियों के पासन चला जाऊँगा तो उन्हें विश्वास हो जायगा कि.गदाधरसिह फंस गया और तब वे लोग आपको हर तरह से बर्बाद कर डालेंगे जिसका कि मै पूरा-पूरा अन्दोबस्त कर आया हूँ। इतना सुनते ही दारोगा खड़ा हो गया और उसने हैसकर जवाब दिया मेरे लिए आपको इस कडे प्रबन्ध की कोई आवश्यकता न थी और न मुझमें इतनी सामर्थ्य ही है कि आप ऐसे ऐयार का मुकाबला करूँ. मैं तो खुद आपकी तलाश में था कि किसी तरह आपको पाऊँ और अपना कसूर माफ कराऊँ। मुझे विश्वास है कि जब आप मेरा एक बड़ा कसूर माफ कर चुके है तो इसको भी माफ कर देंगे। गुस्से को दूर कीजिए मैं फिर भी आपके लिए हाजिर हूँ।' मैं-( बैठकर और दारोगा को बैठाकर ) कसूर माफ कर देने के लिए ता कोई हर्ज नहीं है मगर आइन्दे के लिए कसूर न करने का वादा करके भी आपने मेरे साथ दगा की इसका मुझे जरूर बड़ा रज है । दारोगा-( हाथ जोड कर) खैर जो हो गया सो हो गया. अब अगर फिर कोई कसूर मुझसे हो तो जो चाहे सजा दीजियेगा मे ओफ भी न करूंगा। मैं-खैर एक दफे और सही मगर इस कसूर के लिए आपको कुछ जुर्माना जरूर देना पड़ेगा। दारोगा-यद्यपि आप मुझे पहिले ही कगाल कर चुके है मगर फिर भी मैं आपको आज्ञा-पालन के लिए हाजिर हूँ। मै-दो हजार अशर्फी। दारोगा-(आलमारी में से एक थैली निकाल कर और मेरे सामने रख कर) बस एक हजार अशर्फी को कबूल कीजिए और मैं (मुस्कुराकर ) मैं कबूल करता हूँ और अपनी तरफ से यह थैली आपको देकर इसके बदले में सर्दू को माँगता हूँ जो इस समय आपके घर में है। दारोगा-बेशक सर्दू मेरे घर में है और मैं उसे आपके हवाले करूँगा मगर इस थैली को आप कबूल कर लीजिये नहीं तो मैं समझूगा कि आपने मेरा कसूर माफ नहीं किया । मै-नहीं-नहीं मैं कसम खाकर कहता हूँ कि मैंने आपका कसूर माफ कर दिया और खुशी से यह थैली आपको वापस करता हूँ, अब मुझे सिवाय स! के और कुछ नहीं चाहिए। हम दोनों में देर तक इसी तरह की बातें हुई और इसके बाद मेरी आखिरी बात सुनकर दारोगा उठ खड़ा हुआ और मेरा हाथ पकड़कर दूसरे कमरे की तरफ यह कहता हुआ ले चला कि आओ मैं तुमको सर्दू के पास ले चलूँ, मगर अफसोस की बात है कि इस समय वह हद दर्जे की बीमार हो रही है !खैर वह मुझे घुमाता फिराता एक दूसरे कमरे में ले गया और वहाँ मेंने एक पलग पर सर्दू को बीमार पड़ देखा। एक मामूली चिराग उससे थोडी ही दूर पर जल रहा था। (लम्बी सॉस लेकर) अफसोस मैंने देखा कि बीमारी ने उसे आखिरी मजिल के करीब पहुँचा दिया है और वह इतनी कमजोर हो रही है कि बात करना भी उसके लिए कठिन हो रहा है। मुझे देखते ही उसकी आँखें डबडबा आई और मुझे भी रुलाई आने लगी। उस समय मैं उसके पास बैठ गया ओर अफसोस के साथ उसका मुंह देखने लगा। उस वक्त दो चनकान्ता सन्तति भाग २१