पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९६४

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गये। लौडी दर्वाजा बन्द करके दूसरी राह से बाहर चली गई और कमलिनी ने इन दोनों को उचित स्थान पर बैठा कर पानदान आग रख दिया और मेरोसिह से कहा आप लोग तिलिस्म की सैर कर आये और मुझे पूछा भी नहीं । भैरो-महाराज खुद ही कह चुके है कि शादी के बाद औरतों को मी तिलिस्म की सैर करा दी जाय और फिर तुम्हारे लिए तो कहना ही क्या है, तुम जब चाहे तिलिस्म की सैर कर सकती हो। कम-ठीक है, मानों यह मेरे हाथ की बात है ! भैरो-हई है। कम-(हस कर ) टालने के लिए यह अच्छा ढग है ! खैर जाने दीजिए, मुझे कुछ ऐसा शौक मी नहीं है. हा यह बताइए कि वहा क्या-क्या कैफियत देखने में आई? मैने सुना कि भूतनाथ वहा बड़े चक्कर में पड़ गया था और उसकी पहली स्त्री भी वहा दिखाई पड़ गई। भैरो-वेशक ऐसा ही हुआ । इतना कहकर भैरोसिह ने कुल हाल खुलासा बयान किया और इसके बाद कमलिनी ने इन्द्रजीतसिंह से कहा "खैर आप बताइए कि शादी की खुशी में मुझे क्या इनाम मिलेगा?' इन्द-(हस कर ) गालियों के सिवाय और किसी चीज की तुम्हें कमी ही क्या है जो में हूँ? कम-(भैरो से) सुन लीजिये मेरे लिए कैसा अच्छा इनाम सोया गया है !(कुमार से हस कर) याद रखियेगा. इस जवाब के बदले में मैं आपको ऐसा छकाऊगी कि खुश हो जाइयेगा ! भैरो-इन्हें तो तुम छका ही चुकी हो. अब इससे बढ़ के क्या होगा कि चुपचाप दूसर के साथ शादी कर ली और इन्हें अगूठा दिखा दिया। अब तुम्हें ये गालियां न दें तो क्या करें ! कम-(मुस्कुराती हुई ) आपकी रायमी यही है ? भैरो-वेशक । कम-तो बेचारी किशोरी के साथ आप अच्छा सलूक करते है। भैरो-इसका इलजाम तो कुमार के ऊपर हो सकता है। कम हा साहब मर्दो की मुरौक्त जो कुछ दिखाए थोड़ा है, में किशोरी बहिन से इसका जिक्र काँगी ! भैरो-तब तो अहसान पर अहसान करोगी। इन्द-(भैरो से ) तुम भी व्यर्थ की छेडछाड मचा रहे हा. मला इन बातों से क्या फायदा? भैरो-व्याह-शादी में ऐसी बातें हुआ ही करती हैं। इन्द्र-तुम्हारा सिर हुआ करता है !(कमलिनी स) अच्छा यह बताओ कि इस समय तुमने मुझे क्यों याद किया? कम-हरे राम ! अव क्या मैं ऐसी भारी हो गई कि मुझसे मिलना भी बुरा मालूम हाता है ? इन्द्र-नहीं नहीं, अगर मिलना बुरा मालूम होता तो में यहा आता ही क्यों ? पूछता है कि आखिर कोई काम भी है या कम-हा है तो सही। इन्द-कहो! कम-आपको शायद मालूम होगा कि मेरे पिता जब से यहा आये हैं उन्होंने अपने खाने पीने का इन्तजाम अलग रक्या है अर्थात् आपके यहा का अन्न नहीं खाते और न कुछ अपने लिए खर्च कराते हैं। इन्द्र-हा मुझ मालूम है। कम-अब उन्होंने इस मकान में रहने से भी इनकार किया है। उनके एक मित्र ने खेने वगैरह का इन्तजाम कर दिया है और वे उसी में अपना डरा उठा ले जाने वाले हैं। इन्द-यह भी मालूम है। कम-मेरी इच्छा है कि यदि आप आज्ञा दें ता लाडिली का साथ लेकर मे भीउसी डरे में चली जाऊ । इन्द- क्यों तुम्हें यहा रहने में परहेज ही क्या हो सकता है? कम-नहीं नहीं, मुझे किस बात का परहज होगा मगर यों ही जी चाहता है कि दो चार दिन मैं अपने बाप के साथ ही रह कर उनकी खिदमत कर! इन्द्र-यह दूसरी बात है. इसकी इजाजत तुम्हें अपने मालिक से लेनी चाहिर नै कोन हू जो इजाजत दू कम-इस समय वे तो यहाँ हैं नही अस्तु उनक बदले में मैं आप ही को अपना मालिक समझती हूँ। ? 7 1 देवकीनन्दन खत्री समग्र