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पृष्ठ:देवांगना.djvu/१६

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आपकी मति बनी रहे। अच्छा, अब देर क्यों? अनुष्ठान का मुहूर्त तो सन्निकट है।"

"सब कुछ तैयार है आचार्य।"

"तो चलिए।"

सब लोग चले। आगे-आगे सुखदास मार्ग बताता हुआ। पीछे राजा, आचार्य और धनंजय श्रेष्ठि, उनके पीछे कुमार, कुमार के पीछे स्त्रियाँ मंगल गान करती हुई और उनके पीछे मेहमान।

बाहर आने पर कुमार को सुखपाल पर सवार कराया गया। 16 दण्डधर सुखदास की अध्यक्षता में आगे-आगे चले। उनके पीछे स्त्रियाँ मंगल गान करती हुई चलीं। उनके पीछे 100 दासियाँ हाथ में पूजन सामग्री लेकर चलीं। उनके पीछे 100 भिक्षु 'नमोबुद्धाय', 'नमो अरिहन्ताय' का उच्चारण करते चले। पीछे हाथियों, घोड़ों, पालकियों पर समागत भद्रजन और पैदल।

राह में पुर-स्त्रियों ने अपने सिर के केशों से मार्ग की धूल साफ की, नागरिकों ने पथ पर बहुमूल्य दुशाले बिछाये। कुलवधुओं ने झरोखों से खिले फूल बिखेरे।

विविध वाद्य बज रहे थे, भिक्षु मंत्रपाठ करते चल रहे थे।

समारोह संघाराम के विशाल द्वार के सम्मुख आ विस्तृत मैदान में रुक गया। सब कोई पंक्तिबद्ध हो, स्तब्ध भाव से खड़े हो गये। सबकी दृष्टि संघाराम के विशाल सिंहद्वार पर थी, जिसके पट बन्द थे। उन्हीं को खोलकर महासंघस्थविर आने वाले थे।