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पृष्ठ:देवांगना.djvu/७९

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धान्य है, दूध है। खाओ-पिओ मौज करो। तुम्हें क्या चिन्ता!"

"किन्तु पितृव्य, हमारा कुछ कर्तव्य भी है। तुम्हें उसमें सहायता देनी होगी।"

"कहो, क्या करना होगा?"

"हमारे शत्रु हैं।"

"तो मेरे लड़के को बता दो, वह उनकी खोपड़ी तोड़ देगा।"

"परन्तु वे बड़े बलवान् हैं, काम युक्ति से लेना होगा।"

"फिर जैसे तुम कहो।"

"हमें छिपकर रहना होगा।"

"तो हमारे गाँव में रहो।"

"वहाँ नहीं छिप सकेंगे, राजसैनिकों को पता चल जायगा।"

"तब क्या किया जाय?" मंजु ने प्रश्न किया।

"राजमाता ने जो आदेश दिया है वही।"

"ठीक है, तो मुझे एक बार मन्दिर में जाना होगा।"

"किसलिए?"

"ताली और बीजक लेने, परन्तु एक बात है।"

"क्या?"

"मेरे पास आधा ही बीजक है। शेष आधा सिद्धेश्वर के पास है। वह भी लेना होगा। बिना उसके हम उस कोषागार में नहीं पहुँच सकेंगे।"

"तब हमें एक बार काशी चलना होगा। तुम अपनी वस्तु लेना और मैं सिद्धेश्वर से वह बीजक लूँगा।"

बूढ़े ने कहा—"मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा।"

"तुम्हें अब हम नहीं छोड़ेंगे पितृव्य।'

"तो पहिले गाँव चलो। खा पीकर, टंच होकर रात को काशी चलेंगे।"

"यही सलाह ठीक है।"

तीनों व्यक्ति उसी खोह की राह निकलकर गाँव की ओर चल दिए।