पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०७
देव-सुधा

अमेठी = ट्रेडी । रूछ ( रुक्ष ) = रूखा । सूछम = सूचम । सी? = शिक्षा देती हैं । छीछे = क्षीण ।

देखे न परत देव देखिबे की परी बानि, देखि-देखि दूनी दिख-आध उपजति है;

सरद उदित इंदु बिंदु-सो लगत, लखे मुदित मुखारबिंदु इंदिरा लजति है।

अदभुत ऊख-सी पियूष-सी मधुर बानि सुनि-सुनि स्रवनन भूख-सी भजति है ;

मंत्री कह्यो मैन परतंत्री कह्यो बैनन को

बिना तार तंत्री जीभ जंत्री-सी बजति है ।१४७।। नायिका का सौंदर्य ( तथा नायक का नायिका के प्रति प्रेम ) वर्णित है । बानि =स्वभाव । साध%= इच्छा । तंत्री% वीणा, सारंगी आदि तारवाले बाजे ।

कठिन कुठाट काठ कुठित कुठार कूट रूठि हठ कोठरी कपाट कपटन की।

  • नायिका की छवि देखकर नायक की यह दशा होती है कि उसका मंत्री कामदेव हो जाता है, उसके बैन परतंत्र हो जाते हैं, और उसकी जिह्वा विना तार की वीणा के समान होकर भी यंत्र की भाँति बजने लगती है,अर्थात् वह नायिका के रूप की अक्षुण्ण प्रशंसा करने लगता है।

+हठ भव रूउने ( नाराज़ होने ) रूपी कपट ( रूपी) कपाटों की जो कोठरी है, उसमें कठिन कुठाट-रूपी ऐसा काठ लगा है, जिसके गढ़ने में कुठारों (कुल्हाड़ियों) के कूट (पर्वत, समूह) गोंठले हो गए हैं। प्रयोजन यह है कि प्रेम-पात्री के साथ हठ एवं रूठना बहुत बुरु, है, और उसमें प्रायः कपट का समावेश रहता है।